Wednesday 19 October 2011

हमारे भारत देश को खतरा है ...........!!!!!

`कहा जाता है कि परिवार समाज का ढाँचा होता है परिवार से समाज बनता है,समाज से देश और देश से दुनिया | हम विश्व-बंधुत्व की बात करते हैं, राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं,सामाजिक व्यवस्था की बात करते हैं, पारिवारिक दायित्व, संतुलन और सामंजस्य की बात करते हैं पर हम हैं कहाँ ? सब-कुछ क्या ठीक व सुचारु रूप से चल रहा है ? जहाँ देश व विश्व-एकता के मूल्यों का दर बढ़ा है वहीँ सामाजिक व पारिवारिक एकता के मूल्यों का दर गिरा है | रिश्तों का मूल्य घटता जा रहा है | कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है जहाँ विज्ञान ने सफलता हासिल की है वहीँ खुद मानव की आवश्यकताओं ने मनुष्य को स्वार्थी, निकम्मा, भाव-विहीन और अँधा पशु बना दिया है | आज के इस भागते युग में आम आदमी भी आम नहीं रह गया है, अपनी-अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में ही दिन व्यतीत करता जा रहा है | अगर कोई पुत्र अपने माता-पिता की देखभाल करता भी है तो वह या तो मजबूरी में या फिर लालच में, बहुत ही खरी बात है पर बिल्कुल सटीक व सही | कोई सहर्ष स्वीकार नहीं करेगा पर यही हकीकत है वह दिल से या खुशी-खुशी अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता |
                       आज देश ने तरक्की तो बहुत कर ली है पर उस तरक्की की नींव ही खोखली होती जा रही है | हमारा 'भारत-वर्ष' जहाँ सभ्य समाज की मिसाल माना जाता था आज वो सभ्यता कहाँ है ? जहाँ 'अतिथि देवो भवः' वहाँ अतिथि बोझ बन गया है, अपने-पराये का भेद करना मुश्किल है | जहाँ एक तरफ तो हिन्दू, मुस्लिम से, सिक्ख, ईसाई से अन्तर्जातीय- विवाह कर रहा है, इससे ये तो साबित होता है कि हम विचारों से बहुत ऊपर उठ चुकें हैं, जाति का बंधन नहीं रहा, हम-सब एक ईश्वर की संतान हैं, हम सबका मालिक एक है जातिवाद हट चुका है जो आज से लगभग हमारे अनुभव के अनुसार २०-२५ वर्ष पहले नहीं था | ये बहुत ही अच्छी बात है और बाहरी देशों की तरह हमारा देश भी अब जाति का बंधन नहीं मानता पर क्या एक परिवार में एक ही पिता की चार संतानें एक होकर रह पा रहीं हैं ? नहीं २०-२५ वर्ष पहले ये संभव था, सहज था, आम बात थी | कोई परिवार से अलग होता ही नहीं था | कोई मजबूरी हो,बाहर नौकरी-पेशा हो तो अलग बात थी पर चार भाई अलग होने की सोच ही नहीं सकते थे,ऐसी सोच ही नहीं विकसित थी पर आज के युग में ये ज़रूरत बन चुकी है | कोई किसी के साथ समझौता नहीं करना चाहता, त्याग की भावना तो रह ही नहीं गई | हर आदमी अपने लिए, अपने स्वार्थ के लिए, अपने सुख के लिए केवल जीना चाहता है | ये तो थी एक परिवार की बात, आम आदमी में जब परोपकार व त्याग की भावना रह ही नहीं गई तो फिर उसके अंदर सहन-शक्ति भी कहाँ बच पाई उसके रस्ते में जो भी आ रहा है, या जो उसकी बातें नहीं मान रहा है, तुरंत तमन्चा निकाल कर सामने वाले को मौत के घाट उतार दे रहा है | ये है हमारे देश की स्वतंत्रता जिसके लिये बापू ने अनशन किया था | जिस सुखद भविष्य की इच्छा से बापू ने अहिंसा की राह पर चलकर देश को आज़ादी दिलवाई क्या वो देश सुरक्षित है ? अपने ही घर वालों से ? जो आपस में ही मार-काट कर रहें हैं ? क्रोध, हिंसा व बेइमानी का राज हो गया है ? जिस देश में स्वतंत्रता-सेनानी, स्वतंत्रता-संग्राम में अपनी जान दाँव पर लगा देते थे वहाँ अब 'स्वान्तःसुखाय' का शासन चल रहा है | शायद कुछ ज्यादा ही स्वतंत्रता सबको दे दी गई | हर आदमी के पास हथियार कहाँ से आ जाता है ? वो अपनी सुरक्षा के लिये हथियार रखता है या फिर लोगों में खौफ बाँटने के लिये ? सरकार को चाहिए कि हर आम व्यक्ति के पास
से तमन्चा,औजार,हथियार सब जब्त कर लिये जायें | पहले परिवार की व्यवस्था को सुधारा जाए फिर समाज और फिर देश, तभी हमारी आज़ादी सुरक्षित व कायम रह सकती है वर्ना हम अपने ही परिवार में, समाज में, देश में असुरक्षित हैं | पारिवारिक मूल्यों को, मानवीय मूल्यों को, रिश्तों के मूल्यों को सर्वप्रथम बढ़ावा दिया जाये फिर सब अपने-आप व्यवस्थित होता चला जायेगा, वर्ना आगे की आने वाली जनरेशन में हर बच्चा जन्म लेते ही मार दिया जायेगा या फिर वो बड़ा होकर अपने स्वार्थ के लिये अपने ही परिवार का खात्मा कर डालेगा | हमारे 'भारत-वर्ष' को बाहरी देशों से कम, आन्तरिक लोगों से ज्यादा खतरा है |

      ''ऐ मेंरे वतन के लोगों,ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी''
                                                                                                                                                                                                                                                                                       
 डा. प्रीति गुप्ता
लखनऊ                                                                                                                                                

Saturday 8 October 2011

"मनैया "

                                        मनैया जो ठाकुरगंज गाँव के पुरोहित की इकलौती बेटी है ,जहाँ-जहाँ उसके बाबा कथा बाँचने जिस भी घर जाते ,साथ में मनैया भी उछलती -कूदती जाती | अभी वो १० साल की ही है | बाबा के साथ-साथ अब उसे भी पोथी पढ़नी आ गई है | स्कूल तो कभी वो गई ही नहीं पर फिर भी उसे अक्षरों का पूरा ज्ञान है |
                                    गाँव के सभी लोग उसे प्यार से 'छोटी पंडितानी ' कहते और वह ये सम्मान भरा नाम सुनकर खुशी से गद्गद हो जाती | 'छोटी पंडितानी ' में उसे अपना आदर नज़र आता था ,क्योंकि उसे मनैया नाम ज्यादा अच्छा नहीं लगता | जब उसने अपने बाबा से पूछा कि बाबा आपकी पोथी में कहानियों में इतने अच्छे -अच्छे नाम हैं फिर भी मेरा नाम आपने मनैया क्यों रख दिया ? इस नाम का कोई मतलब ही नहीं मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता , तब उसके बाबा ने बताया कि बिटिया तू बड़ी भाग्यवान है हमारी कोई संतान नहीं हो रही थी दूर गाँव में एक देवी जी का पवित्र स्थान है जिसे " मन्नत-मैया '' के नाम से जाना जाता है | हम और तुम्हारी माई 
हमदोनों को किसी ने बताया कि " मन्नत-मैया " से जाकर मन्नत माँगो वो अवश्य पूरी करेंगीं अगर तुम्हारा मन सच्चा है और वाकई में तुम सच्चे दिल से संतान की कामना रखते हो तो तुम्हारी मन्नत खाली नहीं जायेगी | बस फिर क्या तुम्हारी माई के बार-बार आग्रह करने पर हमलोग चले गये  " मन्नत-मैया " के स्थल पर और निर्जल रहकर पूरी एक रात और एक दिन हमदोनों ने वहाँ पूजा-अर्चना की ,मन्नत माँगी और फिर वापस आ गये | ठीक नौं महीने बाद " मन्नत-मैया " ने तुम्हे हमारी गोद में दे दिया और उन्हीं  " मन्नत-मैया " के नाम पर हमने तुम्हारा नामकरण भी कर दिया इसी वजह से तुम्हारा नाम  ' मनैया ' पड़ गया |
                           इतना सब कुछ सुनने के बाद मनैया को अपने नाम से बेहद प्यार हो गया जिसमे माई एवं बाबा का इतना दुलार भरा था | मनैया बहुत ही भोली एवं भली लड़की थी | चंचल एवं हँसमुख साधारण से परिवार में जन्मी बिना स्कूली शिक्षा के ही पूरी तरह शिक्षित थी | समय रहते मनैया की माई ने मनैया को सारे घरेलू हुनर सिखा रख्खा था अँगीठी - फूँकना,   आटा-गूंथना , कुँए  से पानी भर के लाना , आँगन-लीपना , गाय को चारा -पानी देना , कभी-कभी तो जब मनैया के बाबा घर पर नहीं होते तो मनैया खुद ही दूध भी दुह लेती थी | मनैया से उसकी माई और बाबा दोनों ही प्रसन्न रहते उसके बाबा तो उसे साक्षात्  " मन्नत-मैया " समझते, उसका दोनों पैर छूते , बहुत दुलार करते थे |    
                                    समय बीतते देरी थोड़ी न लगती है वह भोली-भाली १० साल की मनैया अब लगभग उन्नीस साल की हो चुकी थी | माई और पुरोहित बाबा को अब मनैया के हाथ पीले करने की चिंता सताने लगी | मनैया से जब भी उसकी माई ब्याह के बारे में बात करतीं तो वह बिलकुल उदास हो जाती , उसे अपने बाबा और माई को छोड़कर कहीं जाने की बात ही खटकने लगती वह रुआँसी होकर 'काली' ( उसकी गाय ) के पास जाकर बैठ जाती और उससे मन ही मन ढेरों सवाल करती और ये भी कहती कि 'काली' अगर मुझे मजबूरन जाना ही पड़ा तो तू मेरी बूढ़ी माई और बाबा का ख्याल रखना | 'काली' पुरोहित की पुरानी गाय से जन्मी बछिया थी बिलकुल काली जिस वजह से उसका नाम ही काली पड़ गया और मनैया एवं काली लगभग साथ ही साथ बड़ी हुईं | मनैया को काली से बेहद लगाव था | माई तो कहतीं कि चल जब तू विदा होकर जायेगी तो तेरे साथ ही तेरी काली को भी विदा कर देंगें और हुआ भी वही | गाँव के जमींदार साहब का इकलौता पुत्र 'नंदन' बड़ा  ही होनहार लड़का था वह पढ़-लिखकर बैरिस्टर बाबू  बन चूका था | उसकी माँ बचपन में ही चल बसीं थीं | दादी ने बड़े लाड़ व प्यार से पाला था | जमींदार साहब ने अपने बेटे के प्यार में दूसरी शादी भी नहीं की | जमींदार साहब ने खुद ब खुद ही पुरोहित से बात की | मनैया को वो बचपन से जानते हैं सो उन्होंनें अपने मन की बात पुरोहित से कर दी | पहले तो पुरोहित चौंके कि इतने बड़े जमींदार और कहाँ हम पुजारी , कथा बाँचकर गृहस्थी चलाते हैं हम कैसे अपनी कन्या इन्हें सौंप पायेंगे ? ये इतने बड़े आदमी और हमारे पास सिर्फ मनैया एवं काली के और कोई लक्ष्मी नहीं जो हम इन्हें दान दें पायें | जमींदार साहब बड़े दिलवाले थे उनहोंने कहा कि आप के पास लक्ष्मी नहीं तो क्या हुआ सरस्वती तो है आपकी सरस्वती हमारी लक्ष्मी हुई | यह सुनकर पुरोहित के आँख से आँसुओं की धारा बह निकली उनहोंने तुरंत जमींदार का पैर पकड़ लिया और कहा कि मैं बहुत ही भाग्यवान हूँ और उससे भी भाग्यवान मेंरी बिटिया जो आप जैसे नेक इंसान के घर जा रही है | जमींदार साहब ने पुरोहित को उठाकर गले से लगा लिया ये कहते हुए कि पंडित होकर मेंरे पैरों में मत पड़ो पुरोहित मुझे पाप चढेगा |
                         शुभ-लगन में नंदन से मनैया का ब्याह बड़े धूमधाम से हो गया और जैसा कि मनैया की माई ने कहा था कि काली को भी मनैया के साथ विदा कर देंगें सो काली भी मनैया के साथ विदा हो गई | जमींदार के यहाँ नंदन की दादी ने मनैया की आवाभगत की , बड़े प्यार व सम्मान के साथ अपने घर ले आईं | मनैया को तो एक और बाबा मिल गये थे जो पुरोहित से भी ज्यादा ध्यान रखते मनैया का एवं दादी भी मनैया से बहुत लाड़ करतीं थीं | मनैया ने अपने कुशल व्यहार से सबके मन में अपने लिए विशेष जगह बना ली थी | नंदन जो पहले इतना उदास सा रहता था किसी से बात-चीत नहीं करता था,  माँ के न होने का दर्द जो उसने सहा है इसी वजह से वह ज्यादा खुशमिजाज व हँसी-मजाक नहीं करता था | पर विवाह के बाद वह धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगा | उसका स्वभाव मधुर हो गया उसे लोगों से मिलना-जुलना बातचीत करना अच्छा लगने लगा | अब उसे घर में रौनक दिखने लगी | मनैया सबका ख्याल रखती थी | बीच-बीच में अपनी माई व बाबा से मिल आती  उनका भी ध्यान रखती व अपने ससुराल का भी ध्यान रखती बड़ा अच्छा तारतम्य बिठा रखी थी दोनों घरों के बीच एवं हर रिश्ते की मजबूती को बाँधे रखी थी |
                                      विवाह हुए लगभग एक वर्ष हो गया बैरिस्टर नंदन को केस के सिलसिले में अक्सर शहर जाना पड़ता था | कभी-कभी तो वह रात तक घर पहुँच जाते थे पर अक्सर  उन्हें शहर में केस खत्म न होने की वजह से रुक जाना पड़ता था इधर मनैया इंतज़ार करती और जब नंदन बाबू आ जाते तो झट हाथ मुह धुलाकर पहले पति को खाना खिलाती फिर खुद खाती | इसी बीच नंदन की बुआ अपने बेटे शिवम के साथ गाँव आ गईं कुछ दिन रहने एवं शिवम के लिए गाँव के ही एक रिश्तेदार  के यहाँ लड़की देखने | हालाँकि बुआ तो शहर में रहती थीं | शिवम के साथ उसकी छोटी  बहन  भी आई थी  पायल वो अभी १० साल की थी | उसकी छुट्टियाँ शुरू हुई थीं तो वो लोग आ गये चूँकि नंदन के विवाह पर नहीं आ पाये थे | दादी से मनैया की बहुत तारीफ़ सुन रखी थीं इसीलिए भी उनको बहू को देखने  तो आना ही था | मनैया की तारीफें सुनकर ही तो वो भी राजी हो गईं कि शिवम की भी शादी गाँव की ही लड़की से करेंगे क्यूंकि शहर की लड़कियाँ बड़ी मॉडर्न होती हैं | बुआ को मनैया बहुत पसंद आई , पायल भी मनैया भाभी से जल्दी ही घुल मिल गई पर शिवम थोड़ा धीरे -धीरे घुला-मिला  चूँकि वह बड़ा था ,मनैया का पद तो बड़ा था पर उमर में वह शिवम से भी छोटी थी | बैरिस्टर बाबू भी १० साल बड़े थे मनैया से | नंदन को फिर शहर जाना पड़ा | अबकी बोलकर गया था कि दो-चार दिन लग जायेंगे इस लिए इंतज़ार मत करना | बल्कि बुआ नंदन को टोकी भी थीं कि इतनी कच्ची उम्र की बहू को ज़्यादा दिन के लिए अकेली न छोड़ा करो बिचारी घबड़ा जायेगी | नंदन ने कहा बुआ मैं इसी कोशिश में लगा हूँ कि मेरा काम हो जाय तो मैं भी शहर में ही मनैया के साथ ही रुकने का बंदोबस्त कर लूँ कि बार-बार आना-जाना न पड़े पर दादी व बाबूजी की देखभाल भी तो ज़रुरी है | बुआ क्या बोलतीं सही तो कह रहा था नंदन | मनैया सर पर आँचल डाले पर्दे की आड़ में खड़ी सब सुन रही थी और अश्रु भरे आँखों से नंदन को जाते हुए देख रही थी | नंदन के जाने के बाद पायल ने मनैया भाभी का खूब दिल बहलाया , गाना सुनाया ,अपना नृत्य दिखाया , भाभी भी उसके साथ नृत्य करने लगी अचानक बीच में शिवम आ गया , मनैया सकुचाते हुए किनारे बैठ गई | शिवम ने कुछ कहा नहीं चुपचाप चला गया | फिर मनैया व पायल नाचने , गाने लगीं | इसी बहाने मनैया नंदन की याद को भूल गई थोड़ी देर के लिए | नंदन की बुआ , पायल , शिवम एवं दादी शिवम के लिए लड़की देखने उनके रिश्तेदार के यहाँ चले गये | सबको लड़की पसंद आ गई शिवम से पूछा तो कुछ खास नहीं महत्व दिया कहा अगर सभी को पसंद है तो मुझे भी पसंद है और लड़के वालों की तरफ से हाँ हो गयी | मनैया की माई और पुरोहित बाबा भी आये नंदन की बुआ से मिलने | शिवम के पापा तो नहीं आ सके थे शहर में उन्हें काम बहुत था ऑफिस का | सो दादी व बुआ ने रिश्ता तय कर दिया | दादी बहुत खुश थीं कि नाती की बहू भी उनके पसंद की आ रही है | शिवम को शहर जाना था जल्दी क्योंकि काम का नुक्सान हो रहा था | उसने अपनी माँ से कहा अब चलो घर , तो पायल ने कहा भईया  मैं अभी नानी के यहाँ और रुकना चाहती हूँ, मुझे मनैया भाभी के साथ बहुत अच्छा लगता है | शिवम ने तुरंत मनैया को देखा अचानक दोनों की नज़रें मिल गईं मनैया झेंप गई , तब शिवम ने कहा ठीक है पायल तुम यहीं रहो जब तुम्हारी छुट्टियाँ समाप्त हो जायेंगीं तब मैं फिर तुम्हे लेने आ जाउंगा | पायल खुश हो गई और मनैया भी खुश हो गई | शिवम माँ के साथ शहर चला गया | पायल भी खेलते-खेलते थक कर सो गई , फिर मनैया रोज की तरह बाबू जी को दूध का गिलास दिया और दादी के पास जाकर उनका पैर दबाया , जब दादी सो गईं तब मनैया भी अपने कमरे में आकर सो गई |
                                    मनैया के घर से खबर आया कि पुरोहित जी को खाँसी का दौरा पड़ा है , तुम्हे तुरंत घर बुलाया है | जमींदार साहब ने तुरंत अपनी बग्घी निकलवाई और मनैया को भेज दिया | जब-तक मनैया घर पहुँची तब-तक पुरोहित जी चल बसे...मनैया बहुत रोई ,बहुत दुखी हुई | माई के गले से चिपटकर रोती रही , सब गाँव वालों ने आकर 'क्रिया-करम ' किया जमींदार साहब भी आये थे | नंदन बाबू का कुछ पता ही नहीं चला  खबर भेजा , पर कोई जवाब ही नहीं आया | मनैया बहुत टूट गई थी | अपने-आपको बहुत ही असहाय और निराधार समझ रही थी | जी-जान से जिसको प्यार करती थी वो बाबा उसे छोड़कर चल बसे ...माई अकेली हो गई | माई का दुःख मनैया से सहा नहीं जा रहा था ऐसे में वो माई को क्या बताये कि नंदन बाबू का कुछ पता नहीं चल रहा है , क्या करे , फिर उसे जमींदार साहब के साथ  ससुराल लौटना पड़ा , पायल व दादी अकेली जो थीं | दुसरे ही दिन शिवम भी आ गया पायल को लिवा जाने के लिए ,पायल चौंक गई कि इतनी जल्दी कैसे आ गये | शिवम को मनैया के बाबा के बारे में पता लगा और ये भी पता लगा कि नंदन का कुछ अता-पता नहीं है , तो उसे मनैया से थोड़ी सहानुभूति सी हो गई और मनैया का दुःख वो समझने लगा | उसने मनैया से कहा आप परेशान मत होइये नंदन भैया जल्दी ही आ जायेंगे | हम भी जाकर शहर में पता लगाएंगे | इतना सुनकर मनैया को थोड़ी बहुत तसल्ली हो गई | दुसरे दिन शिवम पायल को लेकर चला गया |
                                      धीरे-धीरे एक महीना होने को आ गया और नंदन का कुछ पता  ही नहीं मनैया तो बेहाल सी हो गई नंदन से उसका अटूट रिश्ता जो था | वो बहुत प्यार करती थी अपने पति को , उनके कपड़ों को महकती ,उनकी तस्वीर निहारती , खोई-बिखरी रहती | अपने सारे अच्छे रंग-बिरंगे कपड़े व गहनें उतार कर रख दी कि जब नंदन आयेंगे तभी पहनेंगे | जिन-जिन कपड़ों में नंदन ने उसकी तारीफ़ की थी कि तुम बहुत अच्छी लगती हो इन कपड़ों में उन-उन कपड़ों को उसने सहेज कर रख रखा था कि नंदन के आने पर पहनेगी पर एक महीना हो गया नंदन नहीं आये | मनैया अब पहले वाली मनैया नहीं , बिलकुल उदास-उदास सी रहने लगी | दादी एवं जमींदार बाबू करें तो क्या करें उनसे भी मनैया का दुःख देखा नहीं जाता और बेटे की चिंता अलग सताती कि क्या बात है कोई खबर क्यों नहीं किया नंदन ने  कहीं किसी परेशानी में तो नहीं ? शिवम फिर आया दो दिन बाद कि नंदन भैया का कोई पता नहीं लग पा रहा है  मनैया बिल्कुल ही निराश हो गई और फूट-फूट कर रोने लगी दादी अपने कमरे में सो रहीं थीं और जमींदार बाबू घर पर नहीं थे ,इधर-उधर कुछ अपने बेटे के बारे में पता ही करने गये थे | मनैया का इस तरह से फूट-फूट कर रोना शिवम के दिल पर हथौड़े की तरह लग रहा था उससे सहन नही हो रहा था मनैया का ये दर्द , वो क्या करे, कैसे भाभी का दिल बहलाए, कैसे खुश रखे, उसके दिमाग ने जो कहा वो किया | उसने अचानक मनैया को खींचकर सीने से लगा लिया , मनैया तो बेसुध सी थी , रोती ही जा रही थी ,उसे ये भी होश नहीं कि ,उसे शिवम ने सीने से लगा रखा है या नंदन ने वो बदहवास सी रो रही थी | शिवम उसे उसके कमरे में ले गया और अचानक मनैया के साथ वो सब कुछ कर डाला जो उसे नहीं करना चाहिए था | मनैया छुड़ाती रही अपने-आपको बहुत बचाने की कोशिष पर नाकामयाब रही ....| शिवम के मन में ये सब कुछ पहले से था या अचानक हुआ | क्या वो मनैया से धीरे-धीरे प्यार करने लगा था या उसके मन में सिर्फ वासना जाग उठी थी थोड़ी देर के लिए ? मनैया क्या करती .....| दुसरे दिन शिवम बिना किसी से कुछ कहे शहर चला गया | मनैया ने निश्चय किया कि अब ज़िंदगी भर शिवम का मुह नही देखेगी और वह अपना एक और दर्द किसके साथ बांटे ? बूढ़ी दादी , जो पहले ही नंदन के ग़म में बीमार हुई जा रही हैं , या फिर अपनी बेहाल माई  से , जो बाबा के जाने के ग़म में डूबी हुईं हैं , उनलोगों को और दर्द कैसे दें ? रहे जमींदार बाबू , तो उनसे कहने की हिम्मत कहाँ से जुटाये ? इतनी बड़ी बात , वो भी इतनी शर्मनाक ? वो करे तो क्या करे ? नंदन आ जाता तो वो सबकुछ उसे बता देती , एक वही तो था , जिससे वो सबकुछ बता सकती थी , एकसाथ तीन-तीन दर्द और अब कैसे सहे ? शहर से नंदन की बुआ भी लौटकर नहीं आईं , न पायल आई हाल-चाल लेने ? बाद में पता चला कि शिवम ने शादी करने से मना कर दिया और वो रिश्ता जो पक्का हुआ था , टूट गया | मनैया माई से मिलने तो जाती , पर कुछ कहती नहीं , थोड़ी देर वहाँ रुककर फिर ससुराल आ जाती | उधर मनैया के पति को गये हुए डेढ़ महीने हो गये और इधर मनैया को पता चला कि वो डेढ़ माह के गर्भ से है | एक खुशी की लहर सी दौड़ आई , मनैया की ज़िंदगी में जीने का एक रास्ता तो मिला नंदन न सही उसकी निशानी तो सही जिसके सहारे वो जी लेगी |
                                           छः महीने बाद अचानक नंदन लौटा घर , बढ़ी हुई दाढी , मूंछे और लंबे-लंबे बाल , एक गंदी सी कमीज व पतलून डाले हुए काफी दुबला भी हो गया था | मनैया तो उसे देखकर पहचान ही नहीं पाई , नंदन भी खामोश घर के अंदर पाँव रखा | जमींदार साहब तो जैसे रो पड़े और नंदन को गले से लगाते हुए कहा कि मैं तो समझा था कि तुम अब इस दुनिया में ...' ऐसा मत बोलिए बाबूजी आपके हाथ जोड़ती हूँ '....   रूँधे  गले से बीच में ही मनैया बोल पड़ी | दादी भी चलने-फिरने में असमर्थ जब कमरे में ये सब आवाजें सुनीं  तो  दीवाल का सहारा लेते हुए बाहर आँगन तक आ ही गईं | कहने लगीं हमारी साँसें इसीलिए रुकी थीं कि जबतक नंदन नहीं आता हम कैसे जाते ,बिना नंदन से मिले ? हम जानते थे कि हमारे जिगर का टुकड़ा सही सलामत है ,एक न एक दिन वापस जरूर आएगा| फिर बाबू जी खुद ही छड़ी उठाकर गये नाई को बुलाकर लाये, उसने तुरंत वहीं आँगन में नंदन की दाढी साफ़ की बाल छोटे किये | नंदन नहा-धोकर साफ़ हो गया | मनैया खाना लगा दी खाने के बाद नंदन ने बताया कि बाबू जी मैं बहुत बुरा फँस गया था , एक केस के सिलसिले में न  जाने मुझसे कैसे-कहाँ  गलती हो गई और मुझे छह महीने हवालात में काटनी पड़ी , मेंरी किसी ने नहीं सूनी | वहाँ सिर्फ पैसा बोलता है , झूठ बिकता है ,झूठ खरीदा जाता है और पैसा ही शहर-वासियों का ईमान-धरम सब-कुछ है ,पैसा ही भगवान है | दादी बीच में ही बोल पड़ीं बेटा अब तू सबकुछ भूल जा , नए सिरे से ज़िंदगी शुरू कर , अब तेरे घर भी नन्हा-मेहमान आने वाला है | ये सब मनैया के पुण्यों का फल है , जो तू आज सही-सलामत अपने घर लौट आया |
                                           मनैया अब पति के पास जाये भी तो कैसे ...दिल पर जो इतना बड़ा बोझ है | एक तरफ नंदन के आने की खुशी तो दूसरी तरफ बीते ज़िंदगी में उसके साथ जो घटनाएं घटीं , उसका दुःख क्या-क्या नंदन को बताए , बाबा का ग़म , नंदन के न आने की पीड़ा और अपने साथ हुए बलात्कार की व्यथा , कैसे सबकुछ एकसाथ बता दे , नंदन तो खुद ही इतनी परेशानियाँ उठाने के बाद यहाँ वापस आ पाया है | जब वह धीरे-धीरे अपने दुःख से उबर जायेगा तब उसे बता देंगें ,इन्ही सब उधेड़बुन में मनैया थी , तबतक नंदन ने पीछे से कंधे पर हाथ रखते हुए कहा , क्या बात है , कहाँ खो गई , कुछ बताओगी नहीं अपने बारे में , कैसे रही , क्या-क्या सोचती रही मेंरे बारे में और ये छोटे मेहमान ...इनके बारे में तो कोई अंदाज़ा ही नहीं था | बड़ी खुशी हो रही है घर लौटकर....खुशियाँ मेंरा इंतज़ार कर रहीं थीं | मनैया कुछ न बोल सकी ,उसकी आँखों से आँसूं निकल पड़ा | धीरे-धीरे नौ महीनें निकल गये , मनैया को एक प्यारा सा बेटा हुआ | मनैया की माई भी आई कहने लगीं कि आज तुम्हारे बाबा ज़िंदा होते तो कितने खुश होते नाना बनकर ....और सबकी आँखों से आँसूं छलछला पड़े | फिर दादी ने बात संभाली ये कहके कि कोई बात नहीं मनैया की माँ तुम तो ' नानी ' बन गई न चलो लड्डू खिलाओ फिर सब हँसी-खुशी में वातावरण बदल गया | जमींदार साहब पोते को पाकर बहुत खुश और दादी पर पोते को पाकर बहुत खुश हुईं | नंदन ने पूछा दादी बुआ क्यों नहीं आईं ? तो दादी ने कहा , कहलवाया तो था पर न जाने क्यों वहाँ से कोई नहीं आया | तुम्हारे न रहने पर शिवम जरूर एक- दो बार आया था | शिवम का नाम सुनते ही मनैया थर-थर काँपने लगी और फिर नंदन से नज़र नहीं मिला पा रही थी | सारा पिछला बीता हुआ दृश्य उसको याद आ गया उसके रोंगटे खड़े हो गये , सबके जाने के बाद नंदन ने उससे पूछा क्या बात है मनैया , तुम्हारी तबियत तो ठीक है न मनैया , क्यूँ परेशान लग रही हो ? तब मनैया ने थोड़ी हिम्मत बनाई और कहा , मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ| जब आप आये थे तब आप स्वस्थ नहीं थे और अब सब ठीक हो रहा है , मेंरे दिल पर बहुत बड़ा बोझ है जो मैं सिर्फ आपसे ही कह सकती हूँ ..तब -तक बीच में काली की आवाज़ आई ..बाँ ...आ... आ.. आ.. आ...  बाँ.... अ ..आ...आ.... | मनैया उठकर काली के पास गई उसको सहलाई पानी दिया दस - पाँच मिनट उसके पास बैठकर वापस चली आई | जब मनैया के साथ कोई नहीं था तब मनैया काली से ही तो अपने मन की बातें करती थी सिर्फ काली जानती थी कि मनैया बेगुनाह है और वो ये  भी जानती थी कि मनैया की बेगुनाही साबित नहीं हो पायेगी क्योंकि ये लोग ठहरे ज़मींदार शायद इसीलिए काली बीच में चीख पड़ी वो बेजुबान अगर बोल सकती तो बोल कर यह बात मनैया को अपने पति से बताने के लिए मना कर देती पर वह बाँ - बाँ करने के अलावा कुछ कर नहीं सकती |            
                                       मनैया ने माहौल देखा और पति का प्यार पाकर उस वाकये को उसने नन्दन से बता दिया और फूट-फूट कर रो पड़ी | नन्दन की त्यौरियाँ चढ़ गईं उसने कहा तुमने इतने दिनों से इस बातको  छिपाये रखा दादी से, बाबूजी से किसी से नहीं बताया क्यों ? तुम्हे तो डूब कर मर जाना चाहिये इतना बड़ा कलंक माथे पर लगाये जिन्दा कैसे  हो ?  मनैया को काटो तो खून नहीं ये  क्या हो गया नन्दन को अभी तो अच्छा-खासा था और मेरे साथ सहानुभूति रखने के बजाय मुझको भला-बुरा कह रहा है , वह अपने-आप पर और अपने बच्चे पर तरस खाकर रोने लगी | नन्दन कमरे से बाहर निकल गया और सीधा बाबूजी के कमरे में गया | सुबह होते-होते दादी को भी सारी बातें पता लग गईं और बाहर आँगन में बैठ कर बड़बड़ानें लगीं कि तभी शिवम बार-बार आने लगा था और इसकी वजह से उसने भी यहाँ आना छोड़ दिया मेरे शिवम पर इल्जाम लगा रही है , तभी क्यों नहीं कहा ? जमींदार साहब ने कुछ नहीं कहा , अपने कमरे में चले गये| न जाने नन्दन से क्या बात-चीत हुई , नन्दन मनैया को और उसके बच्चे को बिना कुछ कहे-सुने उसके मायके ले जाकर उसकी माई के पास छोड़ दिया अंतिम शब्द यही बोला  'यह बच्चा मेंरा नहीं है ' मनैया के तो जैसे होशहवास उड़ गये वह निस्तब्ध सी खड़ी रोते हुए बच्चे को लेकर नन्दन को जाते हुए आखिरी बार देख रही थी.....बच्चे के रोने की आवाज सुनकर मनैया की माई बाहर आई और अचानक मनैया और उसके बच्चे को देखकर अवाक सी रह गई कि क्या हुआ सब-कुछ ठीक तो है न मनैया कुछ न बोल सकी सिवाय इतना कि 'एक पिता ने अपने बच्चे को अपनाने से इन्कार कर दिया ' माई ये बच्चा बिन बाप का हो गया | माई तो सर पकड़ कर बैठ गई , अगल-बगल वाले सब तमाशा देख रहे थे| मनैया निर्दोष होते हुए भी सजा की हक़दार बनी और उसका बच्चा बड़ों की गलतियों का शिकार हो गया | निर्दोष बच्चे का क्या कसूर , समाज तो उसे पाप समझेगा.....मनैया ने सच बताया जिसकी सजा उसे मिल गई ,यदि कुछ न बताती तो कुछ भी न बिगड़ता पर उसके दिल पर बोझ रहता वो अपने पति से सच्चा प्यार जो करती थी इसी वजह से बता दी पर पति ......?? पति ने तो छह महीना कहाँ काटा , कैसे बिताया... ?  मनैया ने  नहीं पूछा जो भी पति ने बताया ,सही या गलत ,मनैया ने तो स्वीकार कर लिया पर पति क्यों नहीं स्वीकार कर पाया ? क्योंकि वह पुरुष है ?  वही दादी जो रातदिन मनैया की तारीफ़ करती थीं , जब बात अपने खून पर आई तो अपने खून को माफ कर दिया ,और दुसरे के खून को झुटला दिया ....?  नन्दन ने सजा शिवम को न देकर मनैया को दे डाला व अपने ही बेटे को.....? इतना बड़ा स्वाभिमानी ?  जमींदार साहब सरस्वती को लक्ष्मी बनाकर ले गये थे और अब न वो लक्ष्मी रही न सरस्वती ?  कलंकिनी बन चुकी है ,किसने उसे कलंकिनी बनाया ? अगर मनैया चुप रह जाती तो आज उसे लक्ष्मी का , देवी का सम्मान मिलता पर सच्चे प्यार में धोखा खाकर वो, बाताकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली , औंधे-मुह गिर पड़ी ....
                                                    आज उसे गाँव में कोई भी छोटी पंडितानी नहीं कहता बल्कि ये कहता कि अच्छा हुआ ये सब देखने से पहले ही पुरोहित जी चल बसे | मनैया गाय का दूध बेचकर अपने बच्चे को पाल रही है | दूसरे दिन काली भी रस्सी तुडाकर वापस मनैया के गाँव आ गई , मनैया उसका गर्दन पकड़कर खूब रोई कहने लगी काली तुमने मुझे रोका था पर मैं ही पति के प्यार में पागल समझ नहीं पाई | मनैया की माई को अब आँख से ठीक दिखाई नहीं देता रो-रो कर उनकी आँखें चली गईं | इतने मन्नत से जिस बची को माँगा था उसके जीवन में इतना दर्द ? इतनी बड़ी सजा क्यूँ ? मनैया भी  चारपाई पर लेटे अपने बच्चे के साथ आसमान में सिर गड़ाए सोच रही है कि आखिर 'मन्नत-मैया' ने मुझे भेजा ही क्यूँ ? फिर मेंरे बाबा को .....और अब मुझे ......, इस हालत में देखकर क्या  'मन्नत-मैया' बहुत खुश हो रही होंगीं ? क्या पिछले जन्म के पापों का परिणाम है ? इन्ही सब सवालों के घेरे में पड़े हुए सोचते-सोचते कब मनैया की आँख लग गई पता ही नही चला ..............!


--------------------------------------समाप्त ----------------------------------------
                                                                                


उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान ,लाखनऊ  द्वारा  प्रकाशित 
समस्त  भारतीय भाषाओँ की प्रतिनिधि  पत्रिका 
'साहित्य  भारती ' 
त्रैमासिक 
जनवरी -मार्च , २०१० 
में यह कहानी प्रकाशित हो  चुकी है  
प्रतिक्रियाएं निरंतर प्राप्त हो रहीं हैं ...

हमें विश्वास है आप सब भी  यह कहानी पढ़ने के बाद 
अपनी  राय अवश्य देंगें 
धन्यवाद 
डा प्रीति गुप्ता  

  

Tuesday 4 October 2011

कुछ कहना है .....

एक कहानी सी उपज रही है मालूम नहीं उसमे कितने पात्र हैं क्या शुरुआत है क्या कहानी है क्या अंत है पर फिरभी एक कहानी जैसा मन हो रहा है |अंदर ही अंदर कुछ चल रहा है | बड़ा ही मार्मिक एवं कारुणिक सा कुछ ...
अजीब से चित्र अजीब से किरदार मेरे साथ-साथ हैं | चलते -बैठते-उठते बात करते ,कुछ काम करते विचारों में मंत्रणा चल रही है वो सब पात्र मेरे अगल ही बगल जैसे महसूस हो रहे हैं | मेरे अंदर ही या तो जी रहे हैं या छटपटा रहे हैं वो भी शायद कविताओं की तरह बाहर आना चाहते हैं अंदर की गहराई से बहुत आवाजें आ रही हैं जो मुझे एकांत में कुछ कहानीनुमा लिखने को व्याकुल कर रहीं हैं | इस भागते हुए समय में घर-गृहस्थी बच्चे जिम्मेदारियाँ ,इसी सब में वक्त बीत जाता है एकांत कहाँ मिलता है और दिल की गहराई को छूने के लिए एकांत की गहराई का भी होना उतना ही आवश्यक है | जितनी गहरी बात है ,वो एकांतिक माहौल उस बात को और भी मर्मस्पर्शी बना देता है |
          मेरे लिए वो एकांत रात्रि का मध्यकाल होता है जब चारों ओर सन्नाटा हो ,सारी दुनिया सो रही हो ,सिर्फ झिंगुरों की आवाजें कानों में पड़ रहीं हों तभी मेरा रचनाकाल होता है उस समय कोई अजीब सी शक्ति मुझसे कुछ लिखवा लेती है वो अदृश्य चेतना कहाँ से आती है मस्तिष्क को शब्दों की दुनिया में ले जाकर भावों के साथ पिरो देती है और लेखनी चल पड़ती है | जो भी लिखा है अबतक ,लिखने के लिए नहीं लिखा वरन महसूस होता है उस अनुभव को किसी से भी कहा नहीं जा सकता जो दिल से निकलकर सीधा कागज पर ठहर जाती है | बस यही मेरी विधा है या वो कविता बन जाती , छंद बन जाती ,या गीत | कभी हमने उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जैसी मन में आती हैं वैसी ही आप सभी के सामने पहुंचतीं हैं कोई भी बाहरी ,बनावटी साज-श्रृंगार नहीं करतीं |
                                               आशा है आप सभी को शब्दों की सादगी एवं सरलता पसंद आएगी |
                      जब ह्रदय काव्य गढ़ता है ,तब कोई दूसरा कविहृदय ही इसे समझ सकता है ,ऐसी मेरी मान्यता है | 

मेरी सच्चाई

मेरी सच्चाई
मुझे शक्ति देती है ,
मेरी पवित्रता 
मेरा आत्म-विश्वास बढ़ाती है ,
ईश्वर की पूजा 
मुझे शक्ति प्रदान करती है ,
मेरी धैर्यता 
मेरा मार्ग-दर्शन कराती है |