कभी
भी न भूलने वाली वह भयावह काली रात
पच्चीस अगस्त २०१० रात के ठीक नौ
बजे जगह रसौली गोरखपुर से लखनऊ आते समय बाराबंकी से थोड़ी दूर पहले ही यह जगह पड़ती
है, पहले शायद कभी ध्यान भी नहीं दिया होगा आते-जाते समय कब ये जगह निकल जाती मालूम
नहीं पर अब... !! अब तो जीवन पर्यन्त इस नाम को, इस जगह को कभी नहीं भूल सकते !!
हमारी नानी हमलोगों के साथ ही रहती
थीं हमारी दादी के यहाँ, हमारा पूरा परिवार नानी को बहुत प्यार करता था हमारी अम्मा
तो हमलोगों से ज्यादा ध्यान नानी का रखती थीं हर जगह अपने साथ ले जाती थीं घर के
सभी बुजुर्ग लगभग खत्म हो चुके थे सिर्फ नानी रह गईं थीं इकलौती, बहुत बूढी हो
चुकी थीं कुर्सी पर बैठे-बैठे दिनभर चाय मांगती रहती थीं “ ए बहिनी तनी चह्वा दे
दे ” एक दिन उनके कप के गिरने की आवाज आई (स्टील के कप में ही वो चाय पीती थीं)
सभी दौड़ कर उनके पास गये तो वो कुर्सी पर बैठे ही एक तरफ को झुक गईं डॉक्टर ने
देखा तो ब्रेन हैम्रेज बताया लेफ्ट साइड पैरालाइज्ड हो चुका था हॉस्पिटल में ऐडमिट
हो चुकी थीं | हमारे पास छोटी बहन का फोन आया कि हालत ठीक नहीं है तुम तुरंत आ जाओ
हम उस समय लामार्टिनियर स्कूल के कार पार्किंग में अपनी कार में बैठे हुए थे
प्रंकित का रिहर्सल चल रहा था पन्द्रह अगस्त के फंक्शन के लिये जैसे ही प्रंकित
आये, हम रोते हुए कार ड्राइव करके अपने घर नाका-हिंडोला पहुंचे कार्तिकेय भी सी.एम्.एस
से आ गये उस समय न कोई ट्रेन थी न बस, कार में ही कुछ कपड़े डाले कार्तिक को बैठाया मेरी
मम्मी जी (सास) बाहर तक छोड़ने आईं कार्तिक के लिये कुछ खाने का सामान व कोल्ड
ड्रिंक देने, हमारा ध्यान तो इस सब में था नहीं बस ये डर था कहीं देर न हो जाये मन
ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे हे भगवान अनर्थ न होने देना हमें मिलवा ज़रूर
देना | प्रंकित तो जा नहीं सकते थे वो अपनी दादी के पास ही रुक गये | खुद ही
ड्राइव करके गोमती नगर तक पहुंचे ही थे कि छोटे बहनोई का फोन आ गया कि दीदी मनोज
वहीँ मिल जाएगा उनका ड्राइवर, जो किसी काम से लखनऊ आया हुआ था खैर वो मिल गया रात
होते-होते गोरखपुर पहुँच गये सीधा हॉस्पिटल पहुंचे नानी को देखकर जान में जान आई
सभी लोग वहीँ थे अम्मा पिता जी भाई बहन भाभियाँ,बहनोई | नानी बेड पर थीं,अम्मा
रोये जा रहीं थीं हमने नानी का हाथ पकड़ा भगवान को धन्यवाद कहा जो हमें मिला दिया
उनका हाथ पकड़ कर चूम लिया और कहा “ए नानी देखो हम आ गईली आँख खोलो बाँयाँ हाथ तो
उनका चल नहीं रहा था तो दाहिनी हाथ की अंगुली से अपने आँख का पलक ऊपर की तरफ उठा
दीं और हमको और कार्तिकेय को देख लिया एक ही आँख से बिचारी देखे जा रही थीं और कुछ
बोल नहीं सकती उनकी आँखों से अश्रु बह रहा था हम सब ने वह समय कैसे काटा शब्दों
में व्यक्त करना आसान नहीं इस समय लिखते समय दिल चीत्कार कर रहा है डॉक्टरों का ये
कहना था कि ये तो चमत्कार हो गया, ये जी कैसे गईं और पिता जी से कहा कि आप के पूरे
परिवार के प्यार ने इन्हें बांध कर रखा है वर्ना कोई उम्मीद नहीं थी जबतक भी जी
रहीं हैं ये इनका विल पॉवर है जा भी सकती हैं, कुछ दिन और रुक भी सकती हैं कुछ कहा
नहीं जा सकता सबने खूब सेवा की हमसब बहने उनके कान में खूब मन्त्र बोले सब
बारी-बारी से चालीसा व जाप करते रहे जब हालत थोड़ा सुधर गई तब पिता जी ने हमे कहा
बेटी तुम जाओ प्रंकित को छोड़ कर आई हो और कार्तिकेय के स्कूल का भी नुक्सान हो रहा
है हमसब हैं यहाँ तुमसे कुछ छिपा तो है नहीं जैसा भी होगा तुम्हे फोन से हाल-चाल
देते रहेंगे हम वापस लखनऊ आ गये |
मन में डर तो बना ही था कि कभी भी
कोई अप्रिय न्यूज़ आ सकती है ११ आगत को सुबह १० बजे वह अप्रिय खबर आ ही गई जिसके
बारे में मालूम तो था पर शायद मन तैयार नहीं था पिता जी ने हमें मना कर दिया कि
मिल तो चुकी न अब फिर बच्चों के साथ इस बारिश में आने से क्या फायदा उस दिन मेरी
सास ने मुझे बहुत सहारा दिया बच्चे स्कूल थे वही चाय बना कर लाई दोपहर का खाना भी
उन्होंने ही बनाया हमें तो सुध-बुध नहीं थी यहाँ पर सभी को मालूम था कि हमलोगों की
नानी क्या थीं हमलोगों के लिये पूरे टाइम फोन पर भाई लोग सब विविरण देते रहे यहाँ
तक कि घाट पर से पंडित के मंत्रोच्चारण की आवाज सुनाई देती रही और हम फूट-फूट कर
रोते रहे अपनी अम्मा के लिये कि वो अब कैसे रहेंगी नानी के चले जाने से मेरी अम्मा
कितनी अकेली हो गईं |
दस बारह दिन बीतने के बाद भी
नॉर्मल नहीं हो पा रहे थे | बहन ने बताया कि २५ को हवन है उसमे तुम ज़रूर आना सभी
रिश्तेदार पूछ रहे थे कि बेबी नहीं आईं, ये आखिरि काम है तुम आने की कोशिष करना
हमने कहा ठीक है | उन्ही दिनों हमने भातखंडे में सितार से एम्.ए में एडमिशन लिया
था रोज बारह से एक जाते थे क्लास अटेन्ड करने जब बच्चे स्कूल में होते थे | २४ को
रक्षाबंधन की छुट्टी थी कार्तिकेय का टेस्ट चल रहा था पर जब डायरी देखा तो २५ को
कोई टेस्ट नहीं था हमारे दूसरे नंबर वाले जीजा जी भी आये हुए थे उनके एक मित्र भी
थे, संयोग बनता चला गया और हमलोग २४ को तडके कार से निकल लिये प्रंकित को भी ले लिया
| जीजा जी के मित्र ही ड्राइव कर रहे थे बारिश बहुत हो रही थी एक जगह रास्ते में एक
गाड़ी जो अचानक से रुक गई ये स्पीड संभाल नहीं पाए एकदम पास जाकर ब्रेक लगाईं जिससे
कार भिड गई हम थोड़ा उनपर नाराज़ भी हुए कि डिस्टेंस ले कर चलाइए हमारी कार का पूरा
बोनट आधा ऊपर उठ गया था हम अपनी कार जल्दी किसी को देते नहीं थे खुद ही धुलाई सफाई
करते थे एक-एक स्क्रैच बचाते थे गाड़ी को चोट लगी हमें दर्द हुआ बहुत दुःख हुआ खैर
अयोध्या में भी बहुत टाइम लग गया कांवर वाले सब तीर्थयात्री भरे थे जैसे-तैसे
गोरखपुर पहुँच गये अम्मा के पास गये होनी को कोई टाल नहीं सकता बहुत समझाया कि अब
हमसब तुम्हारे बच्चे हैं तुम्हारे साथ, हाँ नानी की कमी तो कोई भी पूरी नहीं कर
पायेगा पर एक न एक दिन तो सबको जाना है देखो नानी इतनी महान आत्मा थी किसी को
परेशान नहीं की हम आठ भाई-बहन, सबकी शादी बाल-बच्चे देख कर गई किसी भी कार्य में
व्यवधान नहीं डाली आखिर तक रुकी रहीं बात-चीत तो चल ही रही थी पर हमें बीच में
उठकर फिर कार लेकर बनने देने जाना पड़ा क्योंकि दूसरे ही दिन वापसी थी रक्षाबंधन की
वजह से सभी वर्क्शॉप बन्द थे बड़ी मुश्किल से एक मिली उसने कहा लेबर बुलवानी पड़ेगी पैसे ज्यादा
लगेंगे हमने कहा ले लेना कल गाड़ी हमें हर
हाल में चाहिए ये काम भी हो गया दूसरे दिन यानि २५ को सभी जल्दी उठ कर पूजन की
तैयारी में लग गये पंडित जी आ गये हवन शुरू हो गया वर्कशॉप से फोन आ गया मैडम गाड़ी
रेडी है आकर ले जाइये वहाँ सब खुद ही इतने परेशान है भाई लोगों से कहा नहीं पिता
जी को बताया और प्रंकित एवं जीजा जी के साथ निकलने लगे तो पंडित जी ने किसी को भेज
कर हम तीनों के हाथ से हवन सामग्री अलग निकलवा कर रखवा लिया कार्तिकेय तो अपना हवन
कर ही रहे थे, हम कार की वजह से इतना व्यस्त हो गये चूँकि दोपहर में ही निकलना था
लखनऊ के लिये | कार ले आये जबतक हवन समाप्त हो चुका था अब सभी ब्राह्मण को भोजन
कराया जा रहा था दान वाला कार्यक्रम भी हो चुका था | अंदर आये सारे रिश्ते दार
ननिहाल के तरफ के ए बेबी इधर आओ हमारी शादी के बाद से किसी ने देखा ही नहीं था
२१,२२ वर्ष बाद सभी देख रहे थे दोनों बच्चों को भी देखा सबने बुला कर बात किया
आशीर्वाद दिया कहा तुम्हारे दोनों बच्चे राजकुमार हैं और दोनों बच्चे सफ़ेद कुर्ते
पैजामे में थे सबसे मिलने मिलाने के बाद अम्मा के पास गये कहा अम्मा अब हमें
निकलना है अम्मा को तो जैसे होश ही नहीं हमारा हाथ पकड़ ली चौंक गई अरे तुम भी अभी
जा रही हो अभी कैसे जा सकती हो हमने कहा नहीं अम्मा कार्तिक का टेस्ट छूट जायेगा
अगर आज नहीं गये तो, बहुत मुश्किल से निकल कर आये हैं दोनों बच्चों का स्कूल चल
रहा है फिर आयेंगे तो लंबा रुकेंगे तुम्हारे साथ, अम्मा के अंदर इतनी शक्ति ही
नहीं थी कि ज्यादा कुछ बोल पायें रो-रो कर बेहाल थीं हमने उन्हें गले से लगा लिया
और उनको इतना असहाय टूटा हुआ देखकर सुबक पड़े कहा अपना ध्यान रखना अम्मा, पिता जी
का चरण स्पर्श किया तबतक बहनों ने खाना पैक कर दिया था और ये भी कहा था कि जबतक
सभी पंडित जी भोजन न करले तब तक कुछ न खाना हमलोग फोन से बता देंगे तुम्हे | वही
जीजा जी किसी ड्राइवर को बुलवाए थे किराये पर आउटर्स तक अपनी बाइक से साथ-साथ
छोड़ने आये और ड्राइवर को पैसे दिए और कहा ये हमारी बेटी है बहुत संभाल कर ले जाना
स्पीड मत बढ़ाना दोनों भाइयों ने भी कहा था कि ६०,७० से ऊपर मत जाना और जीजा जी ने
ये भी कहा हमसे बेबी तुम इसको पैसे मत देना हमने अचछा-खासा दे दिया है किराया भी
दे दिया और नाश्ते पानी का भी दे दिया जीजा जी वाकई में हमें अपनी बड़ी बेटी मानते
है कहा बेटा यहाँ काम नहीं होता तो मै लखनऊ तक तुमलोगों को पहुचने आता और इतने
भावुक हो गये रो पड़े साथ में उनका बेटा भी था उद्देश्य, हमने उद्देश्य को बोला कि
अब पापा को लेकर घर जाओ बहुत थक गये होंगे वो लोग भी जाते समय हाथ हिलाते रहे और हमलोग
भी, शाम के चार बज रहे थे थोड़ी घबडाहट भी हो रही थी नया ड्राइवर है हमलोग अकेले है, भगवान भरोसे चल दिए | स्वतंत्र –चेतना के संपादक, आर.सी.गुप्त हमारे जीजा जी लगते
हैं उनका फोन आया तो आश्चर्य चकित हो गये कि इस बार तुम एक दिन भी नहीं रुकी और
मिली भी नहीं जा रही हो वो अक्सर बहुत-अच्छे मन्त्र बताते रहते है उस दिन भी
उन्होंने दुर्गाशप्तशती के कुछ मन्त्र बोले बहुत अच्छा लगता है उनको सुनना, बहुत
ही मधुर वाणी है उनकी कह रहे थे जब नानी के बारे में सोच कर दुःख लगे तो इस मन्त्र
को पढ़ना इसी तरह सबसे बातें करते हुवे आधा रास्ता पार हो गया घर से भी बराबर सभी
लोग संपर्क बनाये हुए थे | ड्राइवर भी खूब अच्छे से बात करते हुए आराम से चल रहा
था अपने गाँव की बात कर रहा था कि हमारी पत्नि पहले हमारे अम्मा बाबूजी को खाना
खिलाती है तब अपने खाती है सुन कर डर खत्म हो रहा था कि परिवार वाला है थोड़ा
संस्कारी भी है आधा दूर आ ही गये हैं कुछ घंटों की बात है बस, घर से फोन आ चुका था कि बच्चों को खाना खिला
सकती हो अब, तो हमने उस ड्राइवर (उसका नाम बजरंगी था) से कहा कि अयोघ्या में रोक
देना तो पहले चाय पियेंगे फिर खाना खायेंगे अयोघ्या निकलता जा रहा है वो कार रोक
ही नहीं रहा है बच्चों ने जिद किया तो ना जाने कहीं ढाबे से बहुत दूर ले जाकर
अँधेरे में कार रोका और कहा कि हम चाय भिजवा रहे हैं हमने कहा यहाँ कहाँ चाय
मिलेगी यहाँ तो सब अँधेरा पड़ा है तुम तो कार इतनी आगे ले आये तो कहा नहीं हम भिजवा
रहे हैं दस मिनट,पन्द्रह मिनट हमारी बहन व जीजा जी लगातार बात करते रहे कि वो जैसे
ही आये उससे बात करवाओ करीब आधे घंटे में चाय लेकर एक छोटा सा लड़का आया हमने उससे
पैसे पूछा तो उसने कहा मिल गया वापस गिलास लेकर चला गया थोड़ी देर बाद बजरंगी आया
हमने पूछा इतनी देर क्यों लगा दी तो बोला खाना खाने लग गया था तो हमने कहा कार फिर
वहीँ लगाते न यहाँ अँधेरे में इतनी दूर क्यों लगाये हमारे भी बच्चे भूखे हैं तुम
भी इसी में से ले लेते इतना खाना है टाइम भी इतना लग गया फिर जीजा जी ने उसे फोन
पर डाटा कि अब कहीं रुकना मत | वहाँ से जो इसने कार चालना शुरू किया कार की स्पीड
बढ़ा दी सारा खाना गिरा पड़ा जा रहा है हम बार-बार कहे जा रहे है कि हमें कोई जल्दी
नहीं है आराम से चलो तो कहने लगा आप घबड़ाइये नहीं हम आज से ड्राइवरी नहीं कर रहे
है बहुतो की गाडियाँ चलाई हैं फिर कहने लगा आपके कार की हेडलाईट सही नहीं है ठीक
से दिखाई नहीं दे रहा फिर हमलोगों ने रिलायंस पेट्रोल पम्प पे एक हज़ार की
एक्स्ट्रा प्रीमियम पेट्रोल भरवाया जबसे कार ली २००६ से तबसे यही पेट्रोल लिया कभी
सादा नहीं लिया | प्रंकित ने हमसे धीरे से कहा कि मम्मा हम आगे बैठने जा रहें हैं
इसे कंट्रोल करेंगे इसने शायद ड्रिंक कर लिया है गाड़ी लहरा रही है हमारा तो मन हुआ
कि उसे वहीँ छोड़ दे और हम और प्रंकित मिल कर ड्राइव कर लेंगे पर रात हो गई थी
इसलिए रिस्क नहीं लिया हमें क्या पता था कि रिस्क उसे ले जाने में है | प्रंकित
आगे बैठ गया उसकी ड्राइविंग से दहशत भी हो रही थी स्पीड कंट्रोल नहीं कर रहा और
प्रंकित को तमाम बाते समझाने लगा ऐसे गेयर बदलते है प्रंकित बोला तुम चुप-चाप
ड्राइव करो हमें आती है तुम ध्यान से चलो और स्पीड कम करो ऑल्टो कार और स्पीड १२०
रात का समय हाइवे अभी बन रहा था जगह-जगह डाइवर्ज़ंन रात में ट्रके चलती हैं वो भी
नशे में धुत होकर चलाते हैं चिंता बढती जा रही थी बजरंगी तो जैसे हवा से बातें
करने लगा हम ड्राइविंग सीट के पीछे बैठे थे कार्तिकेय का सर हमारी गोद में था
क्योंकि कार्तिक सो रहे थे प्रंकित आगे ड्राइवर के बगल में बैठे थे | जैसे-जैसे
बजरंगी का नशा चढ़ता जा रहा था कार की स्पीड और बढती गई राईट को गया तो ट्रक आ रही
थी चूँकि डाईवर्जन था इसलिए ट्रक भी इधर ही आ रही थी फिर लेफ्ट को ले लिया इतनी
स्पीड में कार थी उसने क्या सोच कर लेफ्ट लिया मालूम नहीं शायद ट्रक से टक्कर को
बचाने के लिये पर लेफ्ट साइड में अँधेरा था आगे क्या कुछ मालूम नहीं कार इतनी जोर
किसी चीज़ से टकराई कार्तिकेय हमारी गोद से नीचे गिर गया और उसका सर ड्राइविंग सीट
के नीचे चला गया उसे निकालने के लिये हम नीचे झुके मेरा राईट शोल्डर ड्राइविंग सीट
से भिड गया पर कार्तिक का सर हाथ से निकाल कर उसे ऊपर किया और गाड़ी तो अभी टकराती
जा रही थी आगे अभी देखा नहीं था क्या हो रहा है बस प्रंकित की आवाज़ सुनाई दी !ओह
गौड ! जब आगे देखा तो प्रंकित का पूरा चेहरा खून से भरा हुआ,बजरंगी स्टेयरिंग पर
औंधा पड़ा कान इकदम शून्य हो गये थे सायं-सायं कार की पूरी छत टूट कर आगे गिर गयी
थी कार्तिक तो बेहोश था नाक से खून बहा जा रहा था प्रंकित बाहर निकला उसका सफ़ेद
कुरता पूरा लाल खून आ कहाँ से रहा है मालूम नहीं जब कार्तिक को गोद उठाने के लिये
राईट हैण्ड आगे बढाने की कोशिष की हाथ ही नहीं हिला लेफ्ट से उसे गोद में लिया कार
का दरवाज़ा तो अपने आप खुल गया था लेफ्ट साइड का प्रंकित ज़ख़्मी होते हुवे भी हमें
उतरने में मदद की पर बाहर निकल कर खड़े नहीं हो पाए धडाम से कार की सीट पर ही गिर
गये गश व चक्कर आ गया फोन तो हाथ में ले लिया था लेटे-लेटे बाई हाथ के अंगूठे से
डैडा यानि dada टाइप किया सबसे आसानी
से जो नम्बर मिल सके प्रंकित के डैडी का नम्बर अँधेरे में कुछ दिख तो रहा नहीं था
पर भगवान की कृपा से नंबर लग गया पद्मेश जी ने फोन उठा लिया हम इतना ही बोल पाए घर
से किसी को भेजिए एक्सीडेंट हो गया है इमरजेंसी है और आप तुरंत कोई फ्लाईट ले कर आ
जाइए कार्तिक का कुछ समझ में नहीं आ रहा है इतना ही बोल पाए फिर आँख बन्द होने लगी
प्रंकित ने हमें हिला कर आँख खोले रखने को कहा बोला मम्मा तुम किसी भी कीमत पर आँख
मत बन्द करना खोले रहो..फिर सीट पर से उठाने की कोशिष करने लगा उसे डर था कि हम
बेहोश न हो जाये हम उठ तो गये जैसे झूम रहे हों कार का सारा पेट्रोल भी गिर रहा था
बस किसी तरह से कार से दूर होने का प्रयास करने लगे एवं हाइवे पर डर कि इतनी
गाडियाँ आ रहीं है फिरसे टक्कर न मार दे तबतक काफी लोग इकत्रित हो चुके थे रसौली
गाँव के आस-पास के थे सभी उन लोगों को देखकर फिर मन भयभीत हो गया थोड़ी बहुत
ज्वेलरी भी पहन रखे थे उस समय क्या मनोदशा हो रही थी ब्रेन सिर्फ खराब सोच रहा था
कुछ भी अच्छा नहीं एक माँ दो बच्चों के साथ बिल्कुल असहाय बीच सड़क पर रात में
दुर्घटना ग्रस्त हो पड़ी है क्या करे क्या न करे बड़े बेटे का खून बहा जा रहा है
छोटा बेटा जग नहीं रहा कोई मानसिक स्थिति का अंदाज़ा लगा सकता है भला .. , पर कहा गया
है न कि अच्छा किया कहीं जाता नहीं है वहाँ जितने भी लोग इकत्रित हुवे थे सभी भले
सज्जन थे वो लोग जल्दी-जल्दी हमलोगो को कार से अलग करने का प्रयास करने लगे
कार्तिक को एक ने गोद में उठा लिया और आगे-आगे चलने लगा हमने उसे चीखकर रोका भी कि
कहाँ मेरे बच्चे को लिये जा रहे हो उसने मेरी एक न सुनी हमें भी कुछ लोगों ने पकड़
कर जल्दी –जल्दी ले जाने लगे फोन भी उन्ही लोगों ने ले लिया अब सबके फोन भी आने
लगे वही लोग रिसीव भी किये इतना ही सुन पाए कहते हुवे कि ड्राइवर नहीं बचा है और
छोटे बच्चे की हालत सीरियस है हम इतना सुन कर जोर-जोर से रोने लगे हरे राम ये क्या
हो गया प्रंकित को भी वही लोग पकड़ के चल रहे थे रोड क्रोस करा कर नीचे गाँव में ले
गये एक डाक्टर के यहाँ वहाँ लाईट नहीं आ रही थी बहुत छोटा सा कमरा था जैसे गांव
में होता है उस डाक्टर के पास कोई सामान नहीं था और उसने साफ़-साफ़ कह दिया हम कुछ
नहीं कर पाएंगे सब जगह से धडाधड फोन आने शुरू हो गये गोरखपुर से भी हमारे फॅमिली
डाक्टर ने उस गांव के डाक्टर से बात कर लिया फिर उसने प्रंकित के फेस से खून साफ़
किया कार्तिक को लिटा दिया गया था और हम हे भगवान हमारे बच्चों को बचा लो हम
प्रंकित के डैडी को क्या मुह दिखायेंगे लगातार रोये जा रहे थे सब गांव की बूढी
औरतें व बच्चे आ गये थे हाथ से पंखा कर रहीं थीं हमें चुप करा रहीं थीं चुप हो जा
बिटिया धीरज रखो हम उन लोगों को ऐसी दयनीय दृष्टि से देख रहे थे कि जैसे सबकुछ
उन्ही लोगों के हाथ में हो लखनऊ से हमारे देवर लोग चल चुके थे गोरखपुर से भी कार
से भाई, बहन, बहनोई चल चुके थे फैजाबाद में हमारे मित्र राजीव ओझा जी भी पोस्टेड
थे दैनिक जागरण में उन्हें भी घरवालों ने फोन कर दिया जल्दी से जल्दी जो भी पहुँच
पाए एस पी सिटी, पुलिस इंस्पेक्टर मिडिया सभी वहाँ डाक्टर के यहाँ पहुँच गये
हमलोगों को कार में लेकर बाराबंकी इमरजेंसी हॉस्पिटल ले गये कहा घबड़ाईये नहीं हम
आपके गोरखपुर के डाक्टर के रिलेटिव भी है तो अपनी फॅमिली की तरह ही समझिए | हॉस्पिटल
में जबतक इन्जेक्शन वगैरह दिया जा रहा था तबतक देवर लोग भी पहुँच गये और उनलोगों
से कहा कि हमलोग लखनऊ तुरंत लेकर जा रहे हैं जबतक कार्तिक भी होश में आ गया था
इन्जेक्शन से कौन सा दिया मालूम नहीं, प्रंकित का चेहरा अब भी साफ़ नहीं था खून आता
जा रहा था मेरी चिंता भी बढती जा रही थी जितना केयर वो लोग कर पाए कर दिए थे
इंजेक्शन से थोड़ी राहत मिली थी फिर देवर लोग अपनी गाड़ी में लेकर वहाँ हमारी कार के
पास आये देखा वहाँ पूरी पुलिस फ़ोर्स लगी है कार तक जाना संभव नहीं था फिर एस पी
सिटी से परमिशन लेकर कार का सारा सामन देवर ने घर की गाड़ी में लोड करवाया प्रंकित
का ऐप्पल का लैपटॉप,आइपॉड पर्स सब सुरक्षित था ड्राइवर के बारे में पूछा तो वहाँ
के लोगों ने बताया कि वो जिन्दा था बेहोश हो गया था पुलिस को देखकर किसी तरह भाग
गया हमने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया कि ड्राइवर बच गया | हमलोगों को लखनऊ
पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा हॉस्पिटल ले जाये गये पता चला दाहिनी हाथ में
फ्रैकचर है दाहिने पैर में दो तीन जगह से खून रिस रहा था प्रंकित का सर ठीक था
चेहरा पूरा शीशों से छिल गया था नाक होंठ गर्दन मुह के अंदर तक महीन शीशे घुस गये
थे एक साइड का पूरा आइब्रो गायब हो गया था उसके कपड़े उतरवा दिए गये कार्तिक का
चेकअप हुआ उसे नाक के अंदर कहाँ चोट लगी है समझ नहीं आ रहा था अभी तो सबका जांच
होना बाकी था | हमलोग घर लाये गये सभी लोग इकट्ठे हो गये सभी अपनों को देखकर फिर
रो पड़े बाबू जी मम्मी जी (सास,ससुर )व घर के अन्य सदस्य सभी सांत्वना देने लगे कि
चलो जान बच गई तुम सब सुरक्षित घर आ गये भगवान का लाखों शुक्र है बड़े चाचा ससुर जी
कार्तिक के पास ही लेट गये उसे सदमें से बाहर लाने का प्रयास करने लगे कि किसी तरह
ये कुछ भी बोले गुमसुम सा पड़ा था डरा व सहमा हुआ हमें छोड़ नहीं रहा था | थोड़ी देर
बाद सभी चले गये कि अब तुम लोग आराम करो | हमें कहाँ आराम आने वाला हम तो बस
प्रंकित के सिरहाने बैठ कर अपने आप को कोसने लगे कि क्यों हमने बच्चों के साथ इतना
बड़ा रिस्क लिया मौत के मुह में डाल दिया सब मेरी गलती है हडबड तडबड गये और आये
किसी की बात नहीं मानी मासूम से बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड किया मेरा इतना
सुन्दर राजकुमार जैसा बेटा पूरा चेहरा खराब हो गया सब मेरी वजह से बहुत धिक्कारा
अपने आप को और बेटे के चेहरे पर से छोटे-छोटे शीशे अब भी निकल रहे थे उन्हें बीनकर
टेबल पर रखते जा रहे थे बिना पलक झपके जैसे अब कुछ होने न देंगे अपने बच्चों को
चाहे कुछ हो जाये तीन बजे बहन का फोन आया कि हमलोग तुम्हारी कार तक पहुँच गये हैं
और सब देख रहे हैं कार देखकर तो लग ही नहीं रहा है कि इसमें कोई बचा होगा बेबी, साक्षात नानी ने तुम लोगों की जान बचाई है | उसने कहा अपनी ज्वेलरी सब चेक कर लो
कुछ कार में रह तो नहीं गया ..हमने कान देखा तो एक बाली नहीं थी एक सेट फोन भी
नहीं था ..उन लोगों ने बहुत ढूंडा नहीं मिला पर कार से स्पीकर, स्क्रीन जो अभी कुछ
दिन पहले ही लगवाया था कार्तिक के लिये, कार के पेपर्स वगैरह निकाल कर ले आये लगभग
पाँच साढ़े पाँच तक वो लोग घर आ गये घर आकर शब्बो ने बताया कि जब गांव वालों ने
कार्तिक की हालत बताई तो अम्मा व हम सब, नानी के फोटो के सामने हाथ जोड़कर रोने लगे
कि हे नानी बचा लो कार्तिक को ..... ! चलो अब तुम चिंता मत करो हमलोग आ गये है और
अब तुम थोड़ी देर के लिये सो जाओ | कितने घंटों से आँख ने एक झपकी तक नहीं ली थी सो थोड़ी देर के लिये नींद भी आ ही गई | फोन की घंटियों से नींद खुल गई एकदम से उठना चाहे पर अपने आप को हिला भी नहीं पाए सारी रिब्स जैसे अकड़ गई हों हाथ और कंधा तो उठा ही नहीं मेरी चीख सुनकर और सब भी उठ गये सभी अख़बारों में न्यूज़ आ गई थी हर जगह से फोन आने शुरू हो गये लोग भी आने शुरू हो गये |हमारी हालत देखकर हमारे भाई बहन व बहनोई ने यह निर्णय लिया कि सभी को वापस गोरखपुर ले चला जाये वही अच्छे से देखरेख हो पायेगी वर्ना अकेले दोनों बच्चों के साथ ये क्या कर पाएंगी फिर उन्ही रास्तों से होकर गुजरना मन में इतना बुरा-बुरा ख्याल आ रहा था कि जैसे काल ने घेर रखा है फिर बुलावा भेजा है रही सही कसर पूरी निकालने के लिये..पर अपने हाथ में कुछ था नहीं और हमारा ब्रेन अभी कुछ भी सोचने समझने कि स्थिति में नहीं था बुरी तरह से सदमे में था सबलोग साथ थे धीरे-धीरे संभाल कर चला रहे थे कि कोई जर्क न पड़े प्रंकित के चेहरे को धूप से भी बचाना था कार्तिक तो गुमसुम था ही हम तीनों को कहाँ कहाँ चोटें आईं हैं ये भी नहीं पता था जब असहनीय दर्द होता तब मालूम पड़ता | शाम तक गोरखपुर पहुँच गये |
इतना अच्छा लग रहा था इतने सुरक्षित महसूस कर रहे अब लग रहा था कि मेरी जिम्मेदारी खत्म ये लोग सब देखभाल कर लेंगे, दूसरे दिन से सारी टेस्टिंग वगैरह शुरू हो गयी रिब्स में कई जगह चोटें आ गयी थीं राईट शोल्डर की बोन डिसलोकेट हो गयी थी एवं उसी बांह में फ्रैक्चर भी था धुन्सी हुई चोटें कई जगह आईं थीं प्रंकित को भी कई जगह चोटें आई थीं उसके चेहरे की पूरी सफाई हुई बहुत सारे शीशे अब भी चिपके हुवे थे कई घंटे तक निकाले गये धूप से बचना, पसीने से बचना बहुत सारी हिदायतें सबको अपनाते हुए हम लोग वहाँ डेढ़ दो महीने बिताए, वही कहावत मेरी छोटी बहन वंदना कहती रहती जब भी हम रोते ..कि “ ये दिन भी गुज़र जायेगा “ पिताजी से पूछते कि क्यों ऐसा हुआ पिता जी ..तो वो कहते कि देखो तुम इतना हडबडाई थी एक टेस्ट बचाने के चक्कर में सारे ही छूट गये कभी-कभी बड़ों की बात मान लेनी चाहिए चलो इसे भी भगवान का प्रसाद मान कर ग्रहण करो जो होना था वो तो हो गया आगे से घ्यान रखना बच्चों को लेकर थोड़ा सावधानी बरता करो अब उनकी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है भगवान ने बचा लिया कि कुछ नहीं हुआ जिस हिसाब से ये लोग गाड़ी की हालत बता रहे हैं सुनकर रोआं काँप जाता है अब सब चिंता छोड़कर आराम करो | हम तो रात में जब आँख बन्द करके सोने चलते तो कानों में वही गाड़ी की चरमराती हुई आवाज़ सुनाई पड़ती और पैर अपने आप नींद में ही उठ जाते ब्रेक लगाने के लिये, सदमा सोने नहीं देता....यह प्रक्रिया बहुत दिनों तक चलती रही | वहाँ सभी ने बहुत सेवा की खूब अच्छी देखभाल की | थोड़ा ठीक होने पर वापस भाई के साथ लखनऊ आ गये दिल बेहद कमज़ोर हो चुका था बहुत कुछ छूट चुका था भात्खंडे भी एवं दूरदर्शन भी हमारी प्रिय कार हमसे बिछड चुकी थी पर इतना सब होने के बाद भी हम अपने बच्चों के साथ थे उनके पास थे और आगे से बच्चों के साथ कभी भी कोई भी रिस्क न लेने का प्रण कर चुके थे एवं अपने से बड़ों का कहना ज़रूर मानेंगे | वो दिन था और आज का दिन अब वापस उसी हाथ से सितार भी बजाने लगे और फिरसे ड्राइव करने लगे हैं भगवान का एवं हमारे सभी शुभचिंतकों का लाख लाख शुक्र है हम सब सही सलामत हैं | दोस्तों आप सभी को चाहे कितना भी ज़रूरी क्यों ना हो कभी भी ओवर स्पीड मत करियेगा और हो सके तो अपनी कार खुद ही चलाइए अपने पर भरोसा ज्यादा भला होता है मेरा बेटा आखिर तक कहता रहा मम्मा हमदोनो मिलकर आधे-आधे रस्ते चला लेंगे किराये का ड्राइवर न लो पर हमने उसकी बात बच्चा समझ कर नहीं मानी जिसका नतीजा भुगत चुके | अच्छी बुरी सभी यादों को सहेजने की हमारी प्रक्रिया आप सभी को कैसी लगती है अपनी राय अवश्य दीजियेगा | हम रहें न रहे हमारी बातें ज़रूर रह जाएँगी जो गलतियाँ
हमने की इसे पढ़ने के बाद कम से कम कोई और दुहरायेगा तो नहीं !!
शुभकामनाओं के साथ आप सभी की अपनी
प्रीति
यहाँ कुछ फोटोग्राफ़्स हैं ..
इस तस्वीर में, नानी को देखने सफ़र से सीधा हॉस्पिटल पहुंचे ...
इतना अच्छा लग रहा था इतने सुरक्षित महसूस कर रहे अब लग रहा था कि मेरी जिम्मेदारी खत्म ये लोग सब देखभाल कर लेंगे, दूसरे दिन से सारी टेस्टिंग वगैरह शुरू हो गयी रिब्स में कई जगह चोटें आ गयी थीं राईट शोल्डर की बोन डिसलोकेट हो गयी थी एवं उसी बांह में फ्रैक्चर भी था धुन्सी हुई चोटें कई जगह आईं थीं प्रंकित को भी कई जगह चोटें आई थीं उसके चेहरे की पूरी सफाई हुई बहुत सारे शीशे अब भी चिपके हुवे थे कई घंटे तक निकाले गये धूप से बचना, पसीने से बचना बहुत सारी हिदायतें सबको अपनाते हुए हम लोग वहाँ डेढ़ दो महीने बिताए, वही कहावत मेरी छोटी बहन वंदना कहती रहती जब भी हम रोते ..कि “ ये दिन भी गुज़र जायेगा “ पिताजी से पूछते कि क्यों ऐसा हुआ पिता जी ..तो वो कहते कि देखो तुम इतना हडबडाई थी एक टेस्ट बचाने के चक्कर में सारे ही छूट गये कभी-कभी बड़ों की बात मान लेनी चाहिए चलो इसे भी भगवान का प्रसाद मान कर ग्रहण करो जो होना था वो तो हो गया आगे से घ्यान रखना बच्चों को लेकर थोड़ा सावधानी बरता करो अब उनकी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है भगवान ने बचा लिया कि कुछ नहीं हुआ जिस हिसाब से ये लोग गाड़ी की हालत बता रहे हैं सुनकर रोआं काँप जाता है अब सब चिंता छोड़कर आराम करो | हम तो रात में जब आँख बन्द करके सोने चलते तो कानों में वही गाड़ी की चरमराती हुई आवाज़ सुनाई पड़ती और पैर अपने आप नींद में ही उठ जाते ब्रेक लगाने के लिये, सदमा सोने नहीं देता....यह प्रक्रिया बहुत दिनों तक चलती रही | वहाँ सभी ने बहुत सेवा की खूब अच्छी देखभाल की | थोड़ा ठीक होने पर वापस भाई के साथ लखनऊ आ गये दिल बेहद कमज़ोर हो चुका था बहुत कुछ छूट चुका था भात्खंडे भी एवं दूरदर्शन भी हमारी प्रिय कार हमसे बिछड चुकी थी पर इतना सब होने के बाद भी हम अपने बच्चों के साथ थे उनके पास थे और आगे से बच्चों के साथ कभी भी कोई भी रिस्क न लेने का प्रण कर चुके थे एवं अपने से बड़ों का कहना ज़रूर मानेंगे | वो दिन था और आज का दिन अब वापस उसी हाथ से सितार भी बजाने लगे और फिरसे ड्राइव करने लगे हैं भगवान का एवं हमारे सभी शुभचिंतकों का लाख लाख शुक्र है हम सब सही सलामत हैं | दोस्तों आप सभी को चाहे कितना भी ज़रूरी क्यों ना हो कभी भी ओवर स्पीड मत करियेगा और हो सके तो अपनी कार खुद ही चलाइए अपने पर भरोसा ज्यादा भला होता है मेरा बेटा आखिर तक कहता रहा मम्मा हमदोनो मिलकर आधे-आधे रस्ते चला लेंगे किराये का ड्राइवर न लो पर हमने उसकी बात बच्चा समझ कर नहीं मानी जिसका नतीजा भुगत चुके | अच्छी बुरी सभी यादों को सहेजने की हमारी प्रक्रिया आप सभी को कैसी लगती है अपनी राय अवश्य दीजियेगा | हम रहें न रहे हमारी बातें ज़रूर रह जाएँगी जो गलतियाँ
हमने की इसे पढ़ने के बाद कम से कम कोई और दुहरायेगा तो नहीं !!
शुभकामनाओं के साथ आप सभी की अपनी
प्रीति
यहाँ कुछ फोटोग्राफ़्स हैं ..
इस तस्वीर में, नानी को देखने सफ़र से सीधा हॉस्पिटल पहुंचे ...