महज़ बाईस वर्ष का वह लड़का और चालीस साल की एक विधवा जिसकी पंद्रह साल की एक बेटी है । बेटी की उम्र से सिर्फ़ सात साल बड़ा है वह लड़का और उससे अट्ठारह साल बड़ी वह महिला जिससे वह बाईस वर्षीय लड़का प्यार कर बैठा है उस महिला को चिंता है अपनी बेटी की जिसे वह दिलोजान से प्यार करती है सबकुछ जिसके लिए क़ुर्बान करती जा रही है । ‘आदिया’ बहुत ही प्यारी बेटी है , अभी अभी आठवीं पास की है । शमीम आदिया की माँ , बहुत अमीर तो नहीं पर हाँ ,माध्यम वर्ग की है ,शौहर के मरणोपरांत जो भी थोड़ी पूँजी बची थी बेटी की पढ़ाई में लगा दी ।
जब आदिया एक साल की थी तभी उसके अब्बू सईत एक ऐक्सीडेंट में चल बसे थे । सईत और शमीम के निकाह के काफ़ी समय के बाद उन्हें यह बिटिया हुई थी ,लगभग चार या पाँच साल बाद ।दोनों बहुत जान छिड़कते थे अपनी बिटिया पर । सईत भी शमीम को बहुत मानता था कितने सपने देख रहे थे दोनों अपनी बच्ची के लिए ,पर शायद शमीम और आदिया की क़िस्मत में सईत का और प्यार नहीं लिखा था ,तभी तो अल्लाह ने उसे अपने पास बुला लिया । आदिया को तो अपने अब्बू की शक्ल तक याद नहीं सिर्फ़ तस्वीर देखकर जानती है कि ये मेरे अब्बू हैं ।
चौदह साल से शमीम एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ा रही है और अपनी बच्ची को जैसे-तैसे पाल रही है उनके नातेदारों ने बहुत समझाया था तभी ,जब सईत का इंतक़ाल हुआ था कि बच्ची अभी छोटी है अपने ही रिश्तेदारों में कई लोग हैं जो तुमको अपना लेंगे दूसरा निकाह कर लो बच्ची को बाप मिल जाएगा एवं तुम्हें भी सहारा मिल जाएगा पर शमीम ने नहीं माना । वह यही समझती रही कि दूसरा पराया ही होता है मेरी बच्ची को वह प्यार दे न दे क्या मालूम , यही सब सोचकर उसने सबको साफ़ मना कर दिया ।
ख़ैर शमीम ने अपनी बच्ची को पाल-पोसकर अकेले ही इतना बड़ा कर लिया उसे अपने बारे में सोचने का मौक़ा ही नहीं मिला हर वक़्त केवल आदिया ही उसके ज़ेहन में रहती । अब जबसे आदिया पंद्रह साल की हो गई है तबसे शमीम को उसकी चिंता ज़्यादा सताने लगी है ,बड़ी हो रही है ,खूबसूरत है वह सोचती है कि बीस की पूरी होते ही वह उसका निकाह किसी अच्छे घराने के लड़के से तय करके कर देगी ,लेकिन यह पक्का करके कि वह आदिया की पूरी ज़िम्मेदारी ले और जितना पढ़ना चाहती है वह उसे ज़रूर पढ़ने देगा । शमीम सिर्फ़ आदिया के लिए ज़िंदा है वो यही जानती है अपने बारे में बस और इससे कुछ ज़्यादा नहीं |
परन्तु जबसे रजत ने शमीम का पीछा करना शुरू किया है तबसे वह आदिया के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता करने लगी है एवं परेशान रहने लग गई । रजत एक अच्छे खानदान का है खूबसूरत है अभी उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई है पर वह पढ़ाई के साथ ही साथ पार्ट टाइम जॉब भी करता है । जब रजत चार साल का था तभी उसके पिता एक लंबी बीमारी में चल बसे , बड़े होते - होते सारी ज़िम्मेदारी रजत ने सम्भाल ली इसलिए वह समय से पहले ही मैच्योर हो गया । वह फ़ालतू लड़कों की तरह इधर -उधर टाइम पास नहीं करता । उसके परिवार में सिर्फ़ माँ हैं और एक बहन जिसका विवाह भी रजत ने ही करवाया था । रजत ने ना जाने कैसे रास्ते में किसी दिन शमीम को देख लिया और पहली ही नज़र में शमीम उसको भा गई उसने शमीम के बारे में सबकुछ पता कर लिया और अपनी माँ को भी राज़ी कर लिया रजत की माँ रजत से बहुत प्यार करती हैं और रजत की अच्छाइयों को भी भली - भाँति जानती हैं वो यह भी जानती हैं कि रजत कोई ग़लत फ़ैसला नहीं ले सकता ,ज़रुर शमीम में कोई ऐसी बात देखी है तभी वह इतना चाहता है वर्ना इस ज़माने के लड़के जो सिर्फ़ आधुनिकता पर जाते हैं और रिश्ते भी निभाने में नाकामयाब होते हैं ,चोरी छिपे तो बहुत कुछ करते हैं लेकिन रजत ने बिना कुछ छिपाए ,बिना हिचकिचाए माँ को सच-सच बता दिया । माँ भी सोचने पर मजबूर हो गई और ये भी डर कि इस तरह के रिश्तों का तो सिर्फ़ मज़ाक़ उड़ाया जाता है । समाज के डर से माँ ने बहुत समझाया रजत को , पहले तो आपत्ति ज़ाहिर की फिर साफ़ इंकार कर दिया कि सवाल ही नहीं उठता इतनी बड़ी बेटी है उस औरत की ,तुम पागल हो गए हो । रजत ने कहा माँ शमीम आजकल की लड़कियों की तरह नहीं है बहुत सादगी से रहती है और बहुत सीधी है । वो मालूम नहीं क्यों अच्छी लगती है ,मैं चाहता तो तुम्हें बताता भी नहीं पर मैंने तुमको अपने दिल की बात बताई है माँ , मान भी जाओ कहते कहते रजत माँ की गोद में सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगा ।
माँ तो माँ ही होती है जान बूझकर तो बेटे का दिल दुखाना नहीं चाहती थीं । रजत के आंसुओं ने उन्हें पिघला दिया , माँ ने कहा बेटा ज़िंदगी तुम्हें जीना है उसका फ़ैसला भी तुम्ही कर सकते हो , हमें तो बस कुछ दिन ही और जीना है हम अपनी पसंद तुम पर थोप कर क्या करेंगे ,जिसमें तुम ख़ुश रहो उसी में मेरी ख़ुशी है पर शमीम की क्या राय है ? रजत ने कहा मैं उसे मना लूँगा । माँ ने ये भी कहा देख रजत तेरे पिता तो रहे नहीं अब कि अच्छे-बुरे का तुम्हें ज्ञान दें इसलिए जो भी फ़ैसला लेना अच्छा-बुरा सब सोच-समझकर लेना , अच्छा हुआ तो तेरी क़िस्मत और भगवान न करें कुछ बुरा हुआ तो भी तुझे ही झेलना पड़ेगा , अपनी ज़िम्मेदारी पे करना और वो जवान बेटी लेकर आएगी ये भी सोचे-समझे रहियो । रजत ने कुछ कहा नहीं ।
इधर शमीम के दिमाग में भी कुछ और ही घूम रहा था कि वो ज़रूर मेरी बेटी के पीछे पड़ा है मेरे बहाने उस तक पहुँचना चाहता है । वो अपनी बेटी को कैसे उससे सुरक्षित रखे इतना डर गई है कुछ समझ में नहीं आ रहा है । एक दिन रजत ने शमीम का ज़बरदस्ती रास्ता रोक कर अपनी गाड़ी में उसे बैठने को मजबूर कर दिया उससे अपनी बात कहने के लिये , शमीम को भी लगा कि कहीं सड़क पर तमाशा न हो वर्ना वह बदनाम हो जायेगी सो इस लिहाज़ से वो रजत की कार में बैठ गई रजत उसे एक खुले हुए पार्क में ले गया और बाहर आने को कहा पार्क में एक छोटा सा लेक भी था । शमीम को डर भी लग रहा था झिझक भी आ रही थी पर फिर भी वह स्थिरता से उतर गई ।रजत उसे लेक के पास ले गया और किनारे पर बैठने को कहा शमीम चुपचाप थोड़ी दूरी बनाकर बैठ गई रजत ने कहना शुरू किया शमीम , मैं तुम्हारा पीछा इसलिए करने लगा हूँ क्योंकि मैं तुम्हें बहुत चाहने लगा हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ यदि तुम्हें डर है किसी बात को लेकर तो तुम पेपर पर मुझसे लिखवा लो मैं कभी तुमसे अपना बच्चा नहीं चाहूँगा तुम नहीं चाहोगी तो तुम्हें छूऊँगा भी नहीं तुम कहो तो मैं अपना धर्म भी बदलने को तैयार हूँ मैं तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकता हूँ मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ तुम नहीं साथ दोगी तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ । तुम्हारी बेटी मेरी बेटी है मैं उसका ब्याह करवाऊँगा ,सारी ज़िम्मेदारी उठाऊँगा , तुम्हें किस बात का डर है तुम तो मैच्योर हो समझ सकती हो और इससे ज़्यादा मैं क्या कह सकता हूँ , मैंने अपनी माँ को भी मना लिया है वो भी मान गईं हैं फिर तुम क्यों नहीं समझती ?
रजत की बेचैनी, परेशानी ,उसका इस तरह चाहना ,ये पागलपन ,ये सब देखकर शमीम को डर भी लग रहा था पर उसकी नादानी ,एवं मासूमियत पर उससे सहानुभूति भी हो रही थी । उसे रजत की आँखों में अपने लिए प्यार का जुनून भी दिख रहा था पर यह सब बातें उसे अच्छी नहीं लग रहीं थीं । फिर रजत ने चुप्पी तोड़ी कहा , बताओ जब आदिया का निकाह कर दोगी तब किसके सहारे ज़िंदगी काटोगी ? मुझे तुमसे प्यार हो गया है इसमें मेरा क्या दोष ? मैं क्या करूँ तुम बड़ी हो मैं छोटा हूँ ? तुम मुस्लिम हो मैं हिन्दू हूँ ? मुझे नहीं मालूम भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? तुम क्यों मेरे सामने पड़ी ? सिर्फ़ रजत ही बोलता चला जा रहा था जैसे उसे फिर कभी यह सब कहने का मौका नहीं मिलेगा और ना ही फिर कभी शमीम उसके इतने पास आयेगी । रजत को तो अपना होश ही नहीं था अच्छा कर रहा है या बुरा , बस अपने दिल की सारी बात इसी वक़्त कह लेना चाहता है । शमीम चुप थी , हाँ ना कुछ भी नहीं कह रही थी पर उसे रजत को लगातार बोलते हुए ,देखते हुए ,इस बात का दिलासा तो होता ही जा रहा था कि वो इससे बेइंतहा प्यार करता है और कहीं उसका प्यार शमीम को भी मजबूर न कर दे उसका फ़ैसला मानने को , यह ख़्याल आते ही शमीम हड़बड़ा कर उठकर कार की तरफ़ चल दी ,रजत पीछे - पीछे दौड़ता हुआ आया कहा शमीम मैं तुम्हारे पाँव पड़ता हूँ प्लीज़ मान जाओ , तुम मेरी ताक़त बन चुकी हो , लगता है तुमसे दूर रहकर मैं तुम्हारे बिना कुछ नहीं कर पाऊँगा ,मैं खुश नहीं रह पाऊँगा शमीम , मैं क़सम खाता हूँ कि मैं कभी किसी और से शादी नहीं करूँगा ,तुम्हारा इंतज़ार करूँगा ,जिस दिन तुम्हारा फ़ैसला बदल जाये मुझे बता देना । शमीम कुछ न बोली कार में बैठ गई । रजत कार स्टार्ट कर रहा था दूसरी तरफ़ उसकी आँखों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे , कमीज़ की बाँह से रजत आँसू पोछता जा रहा था और कार चलाता जा रहा था । शमीम को बहुत ज़्यादा आत्मग्लानि हो रही थी पर वो अपना फ़ैसला नहीं बदल सकती थी । अंदर से शायद पत्थर हो चुकी थी ।शाम होने लगी थी रजत ने शमीम को उसके घर छोड़ा फिर अपने घर जाकर माँ के पास खूब रोया ।
दूसरे दिन शमीम ने स्कूल में अपने रिक्शेवाले के हाथ अवकाश पत्र भेज दिया कि वह अभी अस्वस्थ चल रही है एक हफ़्ते बाद ज्वाइन करेगी और बेटी को लेकर अपनी आपा परवीन के यहाँ चली गई जो कि दूसरे शहर में रहती थीं । शमीम सारी बातें अपनी परवीन आपा को बताई जा रही थी और आपा सुनती जा रहीं थीं कि अचानक शमीम की मोबाइल पर एक नंबर से फ़ोन आया शमीम ने फ़ोन उठाया तो वो रजत था उसने कहा मैं भी तुम्हारा पीछा करता इसी शहर में आ गया हूँ मैं तुमसे तुरंत मिलना चाहता हूँ । अब शमीम और भी ज़्यादा परेशान हो गई डर भी गई कि ये लड़का पूरी तरह से पागल हो चुका है उसे तो किसी की परवाह है नहीं जुनूनी हो गया है । शमीम की परेशानी समझते हुए आपा ने कहा कि उसे यहीं बुला ले परवेज़ के अब्बू तो रात तक आयेंगे हम मिलकर उसे समझा लेंगे। शमीम ने रजत को फ़ोन करके पता बता दिया , रजत की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा शमीम का फ़ोन जो आ गया रजत तो बस मिनटों में पहुँच गया । आपा ने इज़्ज़त से बुलाया नाश्ता पानी करवाया फिर समझाया कि देखो हम तुम्हारी भावनाओं की क़द्र करते तुम्हें सिर्फ़ समझा ही सकते हैं तुम अभी बहुत छोटे हो अपना फ्यूचर और कैरियर क्यूँ बर्बाद कर रहे हो ? रजत ने ये सुनते ही रोना शुरू कर दिया हर बात का जवाब रहता था उसके पास । उसने कहा मेरा फ्यूचर और कैरियर सब यही है यह नहीं मिली तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा । आपा समझ गईं कि अब इसे कोई नहीं समझा सकता सिवाय ‘वक़्त’ के इसलिए अभी कुछ कहना ठीक नहीं होगा । उसे ये कहकर कि थोड़ा टाइम दो सोचने के लिये फिर तुम्हें बतायेंगे अभी तुम वापस अपने शहर जाओ अपनी माँ के पास । तब रजत ने आपा से कहा कि प्लीज़ आप शमीम से कह दीजिए कि हमसे फ़ोन पर बात करती रहे मेरा फ़ोन न काटे ,जब यह बात नहीं करती मेरा फ़ोन नहीं उठाती तो मेरा किसी भी चीज़ में मन नहीं लगता , जल्दी से दोनों ने यानी शमीम और उसकी आपा ने ठीक है कहकर रजत को विदा कर दिया । आदिया को सारी बातें मालूम चल गईं थीं ।रजत ने जाते-जाते उससे भी रो-रो कर कहा कि तुम मुझे पापा बुलाओ मैं तुम्हारा पापा हूँ अपनी मम्मी को समझाना मैं तुम्हारी मम्मी से बहुत प्यार करता हूँ कहना मेरी बात मान जाएँ।
रजत तो चला गया लेकिन शमीम को ऐसे सदमें में डाल गया कि पूछो नही । शमीम ने ये तो तय कर लिया कि अभी इस लड़के पर जुनून सवार हो गया है और अभी इसे टालना ही उचित है जब आज ये मेरे लिए पूरी दुनिया छोड़ने के लिए तैयार है धर्म बदलने को तैयार है फिर जब मेरी और उम्र हो जायेगी और इसे कोई और पसंद आ जाएगा तब ये उसके लिए मुझे छोड़ जाएगा फिर मेरी ज़िंदगी और बदतर हो जाएगी अच्छी ख़ासी रही इज़्ज़त भी चली जाएगी बहुत ही प्रैक्टिकली सोचा और मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि उसे क्या करना है । हफ़्ते भर बाद शमीम आदिया के साथ वापस अपने शहर आ गई।
रजत फ़ोन करता रहता था हाल-चाल लेता रहता था हर मिनट की खबर रखता था । ख़ैर ये शमीम के ही बस की बात थी जो उसे इस तरह से हैंडल कर पाई थी । धीरे-धीरे शमीम ने फ़ोन पर ही काफ़ी उसे समझा लिया था कि हर समय फ़ोन मत किया करो । फ़ोन आना तो कम हो गया था फिर उसने रजत को ये भी कहा कि शादी के लिए प्यार का होना जरुरी है पर मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार नहीं सिर्फ़ सहानुभूति है । चलो ठीक है तुम पढ़ाई कम्प्लीट कर लो अपना ध्यान पहले अपने कैरीयर पर लगाओ हम तुमसे बात करते रहेंगे वग़ैरह-वग़ैरह ।
फिर सिलसिला कम हुआ फ़ोन का , अब रजत भी और काम में व्यस्त हो गया था शमीम की बात भी काफ़ी मानने लगा था । कई बार शमीम उसका फ़ोन उठाती कई बार नहीं भी उठाती । धीरे-धीरे एकदम बंद हो गया क्योंकि शमीम ने अब पूरी तरह से फ़ोन उठाना बंद कर दिया था । बाद में शमीम ने अपना नंबर भी बदल लिया था एक साल तक कोई फ़ोन नहीं आया।
शमीम के जन्मदिन के दिन नये नंबर पे अचानक रजत का फ़ोन आ गया । शमीम तो भूल ही चुकी थी और अब सोचा भी नहीं था कि रजत का वापस फ़ोन आ जाएगा पर आख़िर उसने नंबर ढूँढ ही लिया शमीम को बर्थडे विश किया एवं आदिया का हाल-चाल पूछा फिर कहा कि अब नंबर मत बदलना एक साल लगा नंबर ढूँढने में । देखो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता , ना ही तुम्हारे घर आया , तुमने मना किया था , मैंने तुम्हारी हर बात मानी न , शमीम के तो होशोहवास ग़ुम ,फिर भी उसने रजत से अच्छे से बात की । उसे रजत के ऊपर तरस आता है दया भी आती है उसने पूछा रजत से शादी कर लिया कि नहीं ? रजत ने कहा ये तुम सोच भी कैसे सकती हो ? शमीम ने कहा कि तुम इतने खूबसूरत हो यंग हो तुम्हें इतनी अच्छी लड़कियाँ मिल जायेंगीं किसी एक अच्छी से शादी कर लो । रजत ने कहा मिल गई वो लड़की , शमीम ने कहा बहुत अच्छी बात है जब शादी करना तब मुझे बुलाना , चलो तुम्हारा बुख़ार उतरा तो सही । रजत ने कहा तुम ग़लत हो मेरा बुख़ार वैसा ही है और वो लड़की तुम हो । शमीम ने कहा तुम्हारे आँख पर पर्दा पड़ा है क्या ? मैं चालीस साल की बुड्ढी हूँ तो रजत ने बीच में ही बात काटते हुए कहा कि तुम सौ साल की भी हो जाओगी तब भी तुम्हें इतना ही चाहूँगा और प्यार करूँगा , शमीम को हंसी आ गई फिर उसने फ़ोन रख दिया । रजत जानता है कि ज़्यादा फ़ोन करेंगे तो फिर नंबर बदल जाएगा इसलिए कभी कभार प्यार भरा पैग़ाम मैसेज कर देता था फ़ोन नहीं करता ।
कुछ महीने बाद फिर शमीम के फ़ोन पर रजत के नंबर से फ़ोन आया काफ़ी शाम में , शमीम ने गलती से झटके से उठा लिया पर इस बार रजत नहीं उधर से आवाज़ किसी लड़की की आ रही थी उसने कहा शमीम दीदी मैं रजत की बहन बोल रही हूँ भइया का एक्सीडेंट हो गया है हम लोग हॉस्पिटल में हैं अंदर ऑपरेशन चल रहा है तीन घंटे से चल रहा है भइया को पता नहीं है वह बेहोश हैं उनके पैर में सरिया डाली जा रही है घुटने के नीचे की सारी हड्डियाँ टूट चुकी हैं । शमीम को झटका सा लगा , उसे और दया आ गई रजत पर उसने पूछा बात नहीं कर पायेंगे इकदम भी ? बहन ने कहा नहीं वो तो बेहोश हैं इतना बता कर रख दिया फ़ोन । शमीम को रात भर नींद नहीं आई फिर दूसर - तीसरे दिन जब - जब शमीम ने फ़ोन मिलाया बहन ही उठाती रही हाल - चाल देती रही । शमीम चाह कर भी देखने न जा सकी । अगर सहानुभूति वश चली भी जाती तो रजत को जब पता चलता तो उसे फिर एक आशा बँध जाती सिर्फ़ इन्ही कारण से शमीम रजत के अच्छे होने की दुआ करती रही पर देखने नहीं गई । फिर साल भर तक कोई बात - चीत नहीं हुई ।
शमीम की बिटिया अब सत्रह साल की हो चुकी थी ग्यारहवीं में आ गई थी । बहुत समझदार हो चुकी थी मम्मी की हर तकलीफ़ में उनका साथ देती ,घर के काम में भी हाथ बँटाती थी । मम्मी को वो बहुत प्यार करती थी । शमीम बहुत कन्फ़्यूज़ हो गई थी रजत को लेकर , उसके बारे में सोचकर कि न जाने किस हाल में होगा ,कैसा सब चल रहा होगा , ये भी सोच रही थी कि चलो अच्छा है अब वो फ़ोन नहीं करेगा मुझे भूल चुका होगा ,उसकी ज़िंदगी अच्छी ही बीत रही होगी माँ के साथ , क्या पता शादी भी हो गई हो , बस वो ख़ैरियत से रहे ,उसकी बुद्धि सही रहे और क्या चाहिए ।
पर वक़्त को कुछ और ही मंज़ूर था । अचानक एक मॉल में वक़्त ने फिर रजत को शमीम के सामने लाकर खड़ा कर दिया । रजत बैसाखी लिए हुए अपने दोस्त के साथ सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था । शमीम आदिया के साथ थी । रजत को देखते ही हड़बड़ा गई जैसे कोई चोरी कर रही हो , वो लाख बचाये अपने आपको रजत से , पर वह भूत की तरह सामने आ ही जाता है । वही उसका भोला - भाला मुस्कुराता हुआ चेहरा । उसकी बैसाखी व लाचारी देखकर शमीम को बहुत ज़्यादा दुख हो रहा था सहानुभूति भी हो रही थी पर शमीम अपने आप को सख़्त बनाये रही । रजत जो कि शमीम के हाव - भाव से समझ रहा था कि ये भागना चाहती है पर फिर भी उसने कहा शमीम से ,आओ थोड़ी देर बैठो फिर चली जाना । उसने कहा ,तुम हमसे कितना भागोगी ? ऊपर वाले को यही मंज़ूर है तो क्या करोगी ?शमीम भी एक बार सोचने पर मजबूर हो गई कि ये क्यों हो रहा है ? पर वह सम्भाले रही अपने आपको ।रजत ने आदिया से हाल - चाल पूछा , पढ़ाई के बारे में पूछा कैसी चल रही है । शमीम भी बैठ गई । रजत अपने पैर में निशान दिखाने लगा कि देखी कहाँ से कहाँ तक सरिया पड़ी है , पर दर्द का एहसास नहीं होने दे रहा था । वह शमीम को देखकर इतना ख़ुश हो जाता है न जाने उसे क्या मिल जाता है । वह बस शमीम को अपने पास ज़्यादा से ज़्यादा देर रोकना चाहता था लेकिन शमीम किसी भी तरह जल्दी करके भाग निकली । रजत मॉल में नीचे तक आया बैसाखी के सहारे , बाहर तक छोड़ा और हाथ हिलाकर बाय किया ।
शमीम घर आकर बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी , उससे भाग तो आई लेकिन और भी उससे बहुत कुछ पूछना चाहती थी , अब कैसे हो ? दर्द कैसा है ? माँ कैसी है ? बहन कैसी है ? और भी बहुत कुछ । न जाने आज शमीम को इतना मन क्यों हो रहा था रजत से बात करने का । ख़ैर दूसरे दिन काफ़ी रात में जब रजत का फ़ोन आया तो शमीम ने एक पल भी देरी किए बिना उसका फ़ोन उठा लिया ‘हैलो’ रजत की आवाज़ सुनते ही मुस्कुराने लगी । आज उसने रजत से पूछ ही लिया कि तुम्हारा टाइम कैसे पास हुआ ? कितनी परेशानी हुई होगी हालाँकि पूछते वक़्त शमीम को बहुत ही आत्मग्लानि हो रही थी । अपने आपसे कह रही थी कि ‘ कौन सा तुम देखने चली गई या ख़ुद इतने दिनों में फ़ोन करके पूछ ही लिया ?’
रजत ने जब बताना शुरू किया कि दोस्त की बाइक से जा रहा था किसी कार ने टक्कर मारी , बाइक तो दूर जा गिरी और कार का पहिया मेरे पैर पर चढ़ गया , मैंने जब उठने की कोशिश की तो लहराकर वापस गिर गया पैर ही नहीं उठा फिर मैं बेहोश हो गया , उसी कार ड्राइवर ने अस्पताल छोड़ा, वहीं से मेरे मोबाइल से घर पर इन्फॉर्म किया गया । रजत सुनाता गया और शमीम रोती रही पर रजत को पता नहीं लगने दिया । रजत बोलता गया कि सब कुछ मेरी माँ ने किया बेड पर ही पॉटी ,टॉयलेट सब माँ कराती थी , एक महीने तक तो मुझे बिलकुल सीधा लेटे रहना पड़ा । माँ कहीं भी इधर - उधर चली जाती तो मुझे बुख़ार चढ़ जाता , ये सब सुनकर शमीम का पत्थर दिल द्रवित हो उठा ।अब उसका मन होने लगा कि जाकर उससे मिले , उससे बातें करे , उसकी तकलीफ़ दूर करे , फिर कोई न कोई चीज़ उसे रोक देती न जाने क्यूँ ।
वो जब भी फ़ोन करता है यही कहता है प्लीज़ तुम अपना नंबर मत बदलना , मैं तुम्हें ज़्यादा परेशान नहीं करूँगा , जबतक ज़िंदा रहूँगा तुम्हारा इंतज़ार करूँगा , वो तीन साल से लगातार एक ही बात कहता जा रहा है । अपना प्यार साबित भी कर चुका है । शमीम चाहती है कि वो दोस्त की तरह हमेशा रहे ,बातें करे , अपनी प्रॉब्लम शेयर करे और अल्लाह करे उसे कोई खूबसूरत सी अच्छी लड़की मिल जाये जो उसको बदल दे और वो शमीम को भूल जाये ।
एक अच्छी याद जिसमें कोई कड़वाहट न हो , जीने के लिए काफ़ी होता है । रजत की ये बातें कि “तुम बुड्ढी हो जाओगी , बाल सब सफ़ेद हो जाएँगे , दांत सारे झड़ जाएँगे तब भी मैं तुम्हें उतना ही चाहूँगा , मोतियों के दांत लगवा दूँगा , तुम्हारी खूब सेवा करूँगा , तुम्हारा अपने हाथों से शृंगार करूँगा , खूब सजाऊँगा , तुम्हें बिस्तर से उतरने नहीं दूँगा , बुढ़ापे में जब लाठी लेकर चलोगी तब भी घुमाने ले जाऊँगा ।” ऐसा प्यार , इतना प्यार , प्यार ही प्यार, कहाँ मिलता है किसी को ,यदि मिलता है तो ऊपर वाले को नामंज़ूर होता है तभी तो उसने सईत को छीन लिया शमीम से । कितना प्यार करता था सईत , पूरी उम्र गुज़ारना चाहता था शमीम के साथ , पर साथ मिला तो सिर्फ़ छः वर्षों का और अब , जब फिर प्यार आना चाहता है शमीम की ज़िंदगी में , तो क़िस्मत को नहीं मंज़ूर ,वो लेना ही नहीं चाहती
आज के युग में जिसके लिए लोग तरसते हैं , जिसे ख़रीद नहीं सकते वो है सच्चा प्यार । भले ही वो क्षण भर का हो , एक ऐसा खूबसूरत एहसास होता है इतना हंसी लम्हा होता है जिसके हर पल को कौन नहीं जीना चाहेगा । प्यार शब्दों से नहीं , भावनाओं से किया जाता है शरीर से नहीं आत्मा से होता है जिसमें कोई बंधन कोई सीमा नहीं होती । सब तारों से दूर कहीं किसी एक छोटे से टिमटिमाते हुए तारे में मिल सकता है जो असंख्य झिलमिलाते हुए चकाचौंध भरे तारों से परे है । रजत वही एक टिमटिमाता हुआ तारा है , आजकल के नौजवानों से बिलकुल अलग , बहुत प्यार है उसके दिल में । शमीम के मन में उसने अपना स्थान तो बना ही लिया है । शमीम के मन में दया एवं सहानुभूति की जगह आदर ने ले ली है पर प्यार शायद अब भी नहीं ।
लोग कहते हैं प्यार में उम्र , दूरी ,जाति , जगह कुछ भी काम नहीं आता , इस सत्य को चरितार्थ होते हुए देखा है पर फिर भी ना जाने क्यूँ यक़ीन नहीं होता ।
डाक्टर - प्रीतिकृष्णा गुप्ता
लखनऊ , भारत ।