Late Dr Lakshmi Mal Singhvi |
जहाँ जिसे छोडना नहीं चाहती,खोना नहीं चाहती
नम करती आँखें और बहुत कुछ कहती ये बातें........ ...... ...
लन्दन में भारत के उच्चायुक्त महामहिम
स्वर्गीय डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी का दौर~~
एक ऐसा दौर जो कभी विस्मृत नहीं हो सकता, भुलाये नही भूलता एक ऐसी हस्ती, ऐसी विभूति जो सबके लिये सम्माननीय रही, पूज्यनीय रही |सहज, सरल, उदार, साधारण सा व्यक्तित्व,प्रतिभाओं के धनी ओजस विचार वाले,स्वभाव में आत्मीयता ऐसे धीर पुरुष जो 'युग-पुरुष' कहलाएं बिरले ही होते हैं | 'महामहिम' उनकी ऊँची पदवी से नहीं वरन उनकी महानता के कारण कहलाते थे वह..., आज हम सब के बीच नहीं रहे | वह अपने-आप में ही एक ऐसी संस्था थे, एक ऐसा मार्गदर्शक थे जो 'स्व' में सीमित नहीं रहे बल्कि लन्दन में बसे सभी भारतवासियों के ह्रदय में बसे थे,समाहित थे, उनकी कमी शायद ही कोई भर पाए | जो-जो कार्य लन्दन में उन्होंने किये चाहे सामाजिक कार्यक्रम हो, धार्मिक हो, राष्ट्रीय हो या फिर पारिवारिक हो हर कार्यक्रम में वह सक्रिय होकर उपस्थित होते थे, अस्वस्थ होते हुए भी पधारते जरुर थे और सबसे अच्छी बात यह थी उनकी कि वो हमेशा आदरणीया कमला आंटी (उनकी धर्मपत्नी) के साथ ही सभी कार्यक्रमों में आते थे एवं समय के पाबंद थे ठीक समय पर आते थे | आप दोनों के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने वाली बात होगी पर दिल कहे बिना,लिखे बिना मानता ही नहीं | श्री सिंघवी जी के पी. ए., हिन्दी ऑफिसर के पद पर नियुक्त, स्वर्गीय डा.सुरेन्द्र अरोड़ा वह भी बहुत सम्माननीय कहलायेंगे जो अब वह भी हम सब के बीच नहीं रहे...| डा.सिंघवी व कमला आंटी की बात बिना अरोड़ा अंकल के पूरी नहीं होती अधूरी सी लगती है | एक ऐसा सच्चा सेवक, मालिक भक्त, उतने ही उदार, सज्जन सहृदय जो आज के समय में मिलना असंभव सी बात लगती है | कोई याद करे न करे पर इनलोगों की छाप ह्रदय पर ऐसी पड़ी है जो सदैव अमिट रहेगी वो भी लन्दन जैसे शहर में जहाँ अपने अपनों को भुला देते हैं जहाँ अपने देश 'भारतवर्ष' की माटी की सुगंध भी कुछ सफल व बुलंदियों को छूने वाली हस्तियों को पसंद नहीं आती, वहाँ उन तमाम सफलताओं को हासिल करने के पश्चात एवं आकाश की ऊँचाइयों को छूने के पश्चात भी एक सहज,सरल,साधारण एवं आत्मीय बने रहना, जन-जन के ह्रदय में बसे रहना बहुत बड़ी बात है,सबसे बड़ी उपलब्धि है | इन बड़ी बातों के लिये श्री सिंघवी जैसी शख्सियत ने छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा | वह भीड़ में आते तो थे पर उन्होंने भीड़ को कभी भी भीड़ समझकर नहीं देखा वो भीड़ उनका परिवार बन जाती थी हर एक की उपस्थिति उनके लिये मायने रखती थी भीड़ में वह बहुत बड़े आदमी बन कर कभी नहीं आये उनकी सादगी, उनका प्रेम भरा ह्रदय हर नज़र से मिलता था | जबतक लन्दन में उनका दौर रहा वह कार्यक्रमों के अधीष्ठाता होते थे, संरक्षक होते हुए भी आयोजक बन जाते, व्यवस्थापक बन जाते और आतिथ्य सत्कार में जुट जाते |
उन लोगों ने हमें व हमारे पति श्री पद्मेश गुप्त जी को बहुत प्यार व दुलार दिया | हमे याद है जब हमारे बड़े सुपुत्र चिरंजीव प्रंकित जी का जन्म १९९३ में लन्दन में हुआ तो हमने उन्हें भी आमंत्रित किया था श्री सिंघवी जी ने उस आमंत्रण पत्र पर प्रिय प्रंकित के नाम के साथ हमारा व पद्मेश जी का नाम जोड़कर बड़ी सुन्दर सी दो पंक्तियाँ लिखकर हमारे पास भिजवाई थी....
Dr. Preeti Gupta, Prankit Gupta, Mrs. Kamla Singhvi and Late Shri Kanhayan Lal Nadan |
मुकुलित पद्म वसुंधरा पर . !!
ये थी उनकी सहजता जो बड़ी आसानी से एक आम आदमी के ह्रदय में जगह बना ले | जब भी उनके निवास-स्थल पर 'काव्य-गोष्ठी', श्रीकृष्ण- जन्माष्टमी या कोई अन्य कार्यक्रम होता उसमे वह जगह के हिसाब से उतने ही लोगों को आमंत्रित करते जितने आराम से बैठ सकें | हर व्यवस्था हर सुविधा का ख्याल रखा जाता और भोजन बिल्कुल शुद्ध शाकाहारी बिना लहसुन व प्याज के होता था हमारे पतिदेव लहसुन व प्याज नहीं खाते कमला आंटी इस बात का बराबर ध्यान रखती | अतिथियों का ऐसा आतिथ्य सत्कार करतीं जो लाजवाब था | एक कुशल गृहणी, कुशल पत्नि और कुशल माता होने के साथ-साथ सबसे बड़ी बात एक भारतीय नारी, जो भारत की सभ्यता का प्रतीक थीं वहाँ पर | हर अतिथि की प्लेट में सभी कुछ खाने की सामग्री खुद ही देती थीं कोई रह तो नहीं गया,कोई छूट तो नहीं गया सब खुद ही संभालती थीं | वहाँ इतने सारे नौकर-चाकर होने के बावजूद भी वो खुद ही सभी की देख-रेख करती थीं | जहाँ डा.सिंघवी एक उच्चायुक्त होते हुए भी एक बहुत ही उच्चकोटि के कवि थे वहीँ कमला आंटी भी एक उच्चकोटि की कवयित्री हैं उनकी यह कविता ''राम मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगी'' बहुत चर्चित रही एवं उनकी प्रिय कविता है | डा.सिंघवी जी की एक रचना बोधगीत जो उन्होंने हमें गाने के लिये कहा था "हिन्दी-सम्मलेन'' के दौरान 'भारतीय विद्या भवन' में एवं 'नेहरु सेंटर' में हमने गाया था उसकी दो लाइनें हैं....
!! कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा
हिन्दी है पहचान हमारी,हिन्दी हम सब की परिभाषा !!
Dilip Kumar, Late Shri Lakshmi Mal Singhvi, Shri Keshri Nath Tripathi, Dr Dau Ji Gupta, Ajitabh Bachchan, Ramola Bachchan and Dr. Preeti Gupta |
Late Dr. Lakshmi Mal Singhvi with Sagar ji Maharaj and Late Dr Surendra Arora |
Dr. Padmesh Gupta reciting poetry at Dr. Singhvi's place |
'' कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा ''
कोटि-कोटि कण्ठों की याद बन गई
एक अमिट इतिहास बन गई ........शत-शत नमन आपको ...
'' भावभीनी श्रद्धांजलि ''
डा.प्रीति गुप्ता
लखनऊ