Saturday 7 May 2022

गुरु दक्षिणा

     गुरू दक्षिणा  🙏
                              
                                🌹    “स्मृति - शेष”    🌹
      

                                     मार्च 2021 मोबाइल पर फ़ोन की घंटी बजती है ट्रिंग ट्रिंग और फ़ोन उठाते ही उधर से आवाज़ आती है , सतीश चंद्र फ़्रौम कानपुर फिर हम जवाब देते हैं जी गुरु जी सादर प्रणाम कैसे हैं आप , मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब आप की उँगली कैसी है स्ट्रिंग मिल गया ? अभी चेंज किया की नही ? और इक़दम नीचे सी भी नीचे स्केल बी पर मिला कर बजाइये तब उँगली पर ज़ोर नही पड़ेगा , हमने कहा जी गुरू जी थैंक यू सो मच आपने पोस्ट से स्ट्रिंग भेज दिया आप कितनी चिन्ता करते हैं हमारी बिलकुल हमारे पिता जी की तरह पर अब वो तो रहे नही उनके साथ के आप ही बचे हैं सिर्फ़ इक्का दुक्का लोग और हैं ,बस आप अपना आशीर्वाद हमेशा बनाये रखिएगा तो उन्होंने बोला यू आर ऑल्वेज़ इन माई प्रेयर्स तभी तो मैं फ़ोन करता हूँ हमने कहा जी गुरु जी हम बहुत ही भाज्ञशाली हैं जो आप जैसा गुरु हमको मिला है तो बोलते वो माई प्लेज़र , अंग्रेज़ी बहुत बोलते थे और बहुत ही स्मार्ट्ली ,ऊर्जा से भरे हुवे रहते थे कभी भी डिप्रेसिंग बातें नहीं करते थे हर सवाल का जवाब उनके पास था हमारी हर समस्या का समाधान वो समझा कर मिनटों में निकाल देते थे । जैसे कि उनका सिद्धान्त था कि हर कोई हर कुछ नहीं कर सकता ,अगर मैं चाहूँ की सचिन तेंदुलकर की तरह बैटिंग या बॉलिंग करूँ तो मैं वो नहीं कर सकता मेरा हाथ ही नहीं उठेगा या फिर सचिन तेंदुलकर चाहें कि मेरी तरह सितार बजा लें तो वो नहीं बजा पाएँगे वो अपनी फ़ील्ड के मास्टर हैं और मैं अपनी फ़ील्ड का ऐसी बहुत सी बातों को वो बहुत ही आसानी से समझा लेते थे और हाँ रियाज़ पर बहुत ज़ोर देते थे ,बताते थे कि हमारे यहाँ जब सब लोग रात में टी.वी. देखते हैं तो हम सितार के तार के नीचे कपड़ा लगाकर बजाते हैं प्रैक्टिस कभी नहीं छोड़ते मतलब कि सितार को ही वह समर्पित थे ।
फिर हमने पूछा कि हमारा जन्माष्टमी वाला डान्स देखा आपने जो हमने यूट्यूब का लिंक आपको भेजा था उन्होंने बोला यस और अपनी मिसेज़ को भी दिखाया आप तो बिल्कुल हिरोइन लग रहीं हैं बहुत गुण है आपके अंदर तो हमने बोला सब आपका आशीर्वाद है गुरु जी बस भगवान से प्रार्थना कीजिए कि मेरा हाथ जल्दी से ठीक हो जाये तो हम सितार भी अच्छे से बजा सकें तो कहा उन्होने हो जायेगा सिकाई करते रहिए और वोलिनी लगाते रहिये फिर फ़ोन करूँगा अच्छा अब मैं रख रहा हूँ हमने कहा जी गुरु जी सादर चरण स्पर्श और फिर उन्होंने फ़ोन रख दिया । इस तरह से हफ़्ते में एक या दो बार उनका फ़ोन ज़रूर आ जाता था और खूब इत्मिनान से देर तक बातें करते थे । ये तो थी अभी हाल ही की बात चीत । अब थोड़ा अतीत की तरफ़ चलते हैं । 
बात उन दिनों की है जब हम एम. ए फ़ाइनल कर रहे थे दर्शनशास्त्र में गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1989 में और हमारे पिताजी बहुत ही अच्छे संगीतकार थे सभी जाने माने संगीतज्ञों के साथ उनका रोज़ का उठना- बैठना था , रात रातभर घर में गोष्ठियाँ चलती अम्मा खाना बनाती सबको खिलाती बड़ा अच्छा वातावरण रहता हमलोगों का बचपन संगीतमय वातावरण में बीता ।ईवेन हमारे पिता जी अक्सर आकाशवाणी में इग्ज़ैमनर बन कर जाते और हमलोगों को मालूम ही नहीं रहता क्यूँकि वो काले पर्दे के पीछे बैठते रिकॉर्डिंग रूम में और हमलोग स्टूडीओ में ऑडिशन देते थे ।अम्मा भी बहुत अच्छी नृत्यांगना थीं , शास्त्रीय गायिका थीं और बेहतरीन तबलावादक थीं जिसके फलस्वरूप हम सभी भाई बहनों मे संगीत कूट-कूट कर भरा है। पिताजी के ही एक खास मित्र स्वर्गीय श्री महेन्द्र सिंह एक जाने माने प्रतिष्ठित सितार वाहक थे वो असमय ही दुनिया से उठ चुके थे उन्ही की पुण्य स्मृति हर वर्ष वहां के सभी संगीत प्रेमी मिलकर मनाया करते थे जिनमे बाहर से वरिष्ठ कलाकार आते और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे चित्रगुप मन्दिर में ,इस बार श्री सतीश चन्द्र जी का सितार वादन था जो कि कानपुर से आए हुए थे ।पिता जी उस कार्यक्रम में हमको और अम्मा को भी ले गये जब उनका कार्यक्रम समाप्त हो गया तब पिताजी ने हमको उनसे मिलवाया और बताया कि ये हमारी बिटिया है अच्छा सितार बजाती है हम चाहते हैं कि आप इसको अपनी शरण में लें तो उन्होंने कहा कि ठीक है कल आकाशवाणी में हमारी रिकॉर्डिंग है वहा इसको लेकर आइये मैं थोड़ा इसका हाथ देखना चाहता हूँ कितना तैयार है पिता जी ने कहा कि ठीक है जैसी आपकी आज्ञा । फिर क्या था दूसरे दिन हमारे पिताजी हमको लेकर आकाशवाणी पहुंच गये वो सभी लोग बाहर ही मिल गये प्रेमशंकर अंकल, राहत अली, केवल कुमार ,हसन अब्बास रिज़वी और भी जितने रेडियो आर्टिस्ट थे और लोगों का नाम याद नहीं हमें , हमने सभी का हमने पैर छुआ फिर अंदर स्टूडियो में गए हमारे लिए एक सितार निकाला गया उसको उन्होंने ट्यून किया फिर हमे बजाने को दिया ,हम भी युवावाणी जगत से उस समय अप्रूव थे कई बार वहां रिकॉडिंग हो चुकी थी तो बेझिझक बजा दिया कोई एक राग और एक छोटा सा धुन ,प्रेमशंकर अंकल ने तबला साथ में बजा दिया था ,सतीश चंद्र जी सुने तो पापा को बोले कि इसको कानपुर भेज दीजिए अगर भेज सकते हैं मैं इसको रेनाउंड सितारिस्ट बना दूंगा इंटर्नैशनल लेवल का ,पापा बिलकुल तैयार हो गए बोले कि इसकी एम.ए की पढ़ाई पूरी हो जाए फिर मैं ले आऊंगा | ये सन 1989 की बात है हम दर्शनशास्त्र में एम. ए कर रहे थे उस वक्त, क्युकी उस समय म्यूजिक सिर्फ बी.ए तक ही था तो हमने सितार से बी.ए भी किया और प्रयाग संगीत समिति से प्रभाकर भी कर लिया था ।पढ़ाई पूरी होने के बाद पिताजी हमको कानपुर ले गए उनके घर ले जाकर उनसे मिला दिया और दिन और समय तय हो गया कि कब जाना है दूसरे दिन अर्ली मॉर्निंग में यानी 7 बजे अपने रियाज टाइम पर उन्होंने हमको समय दिया था चूंकि उन दिनों वो वो कानपुर के डी.जी कॉलेज के संगीत विभाग के वो हेड ऑफ द डिपार्टमेंट थे उनको जाना रहता था इसलिए हमें सुबह का समय दिए थे ।पापा ने हमको बोला था कि फीस जरूर पूछ लेना तो हमने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा तुम्हारी रियाज हमारी फीस है पूरे दिनभर में तो 8 घंटे बजाने होंगे एवरेज 6 घंटे आने चाहिए हमने कहा ठीक है | इस प्रकार हमारी क्लास शुरू हो गई पिताजी हमको हमारे ताऊ जी की बेटी ललिता दीदी के यहां कानपुर पहुंचा कर अपने वापस गोरखपुर चले गए और रोज सुबह दीदी हमको ऑटो से लेकर सिविल लाइन्स सर के यहां ले जातीं और अपने बाहर बैठ जातीं और हम क्लास में सितार बजा रहे होते थे सर ने मींड ही सिखाना शुरू किया था। बाहर उनका छोटा सा पौमेलियन पप्पी बंधा रहता था और वो दीदी को खूब भोंकता और दीदी हँसती थीं ख़ैर उन्होंने ने भी बड़ी मेहनत की हमारे साथ हम भी खूब रियाज़ करते थे । कुछ ही दिन सीख पाये होंगे कि पापा का ऐक्सिडेंट हो गया तो लल्ली दीदी हमको गोरखपुर ले आइं पापा तो ठीक हो गए पर हम दुबारा कानपुर सर के पास सीखने नहीं जा पाए । 9 दिसंबर 1990 को हमारी शादी भी हो गई और हम सात समंदर पार लंदन चले गए । हमारे पतिदेव हमारा सितार भी साथ ले चले थे वहाँ हमने कई प्रोग्राम दिए और भारतीय विद्या भवन में भी ऐडमिशन ले लिए थे विजय जगताप जी से सीख रहे थे वहाँ भी लगभग कुछ ही दिन सीखे क्यूँकि कहीं और शिफ़्ट कर गए फिर नही ज्वाईन कर पाए वो भी छूट ही गया । कई साल बीत गए फिर 2000 में हम इंडिया शिफ़्ट हो गए समय बीतता गया 2 बच्चे भी हो चुके थे हम उन्ही की देखरेख में लगे रहे थोड़ा बहुत बजाते थे फिर 2010 भातखंडे में ऐडमिशन लिया सितार से एम.ए करने के लिए अभिनव सिन्हा सर से कुछ ही दिन सीखा पर किस्मत शायद साथ नहीं दे रही थी एक ही हफ़्ते बाद हमारा बहुत भयंकर एक्सिडेन्ट हो गया फिर वहाँ से भी हाथ धोना पड़ा एक साल लगा ठीक होने में । उसके बाद 2011-12 में पंडित कमल डेविड के पास सीखना शुरू किया वो बहुत अच्छा सिखाते थे बड़े ही प्यार से फ़ीस के लिए वो भी मना करते ,अपने हाथ से चाय बना कर लाते बिस्किट खिलाते ,बिना खाना खाए वापस आने नहीं देते ऐसे महान गुरु लोग मिले हमको ,एक बार तो हमने उनको हज़ार रुपए ज़बरदस्ती दे दिया उनके फ़्रंट पॉकेट में डाल दिया उस समय तो वो मना नहीं कर पाए लेकिन दूसरे दिन घर आ गये वापस करने हमको डॉक्टर बुलाते थे बहुत मानते थे और कुछ ग़ज़ल ,भजन भी सिखाया हमको वो भी पहली बार हमारा सितार सुनते  ही बोले थे कि तुम स्टेज के लयक हो  और हमको लखनऊ आकाशवाणी से अप्रूव करवाना चाहते थे सितार और गायन दोनों से , कुछ हमारी हेल्थ प्रॉब्लम हो गई दोनो हाथ में कार्पल टनल सिंडरोम हो गया जिसकी वजह से एक हाथ का ऑपरेशन कराना पड़ा ,दूसरे हाथ बैक अभी तक नहीं कराया कि हमारा बहुत समय बर्बाद हो जाएगा ,एक दो साल ऐसे ही बरबाद हो गए ।कुछ वर्ष बाद डेविड सर भी चल बसे जो कि बहुत ही दुखद रहा हमने सितार सीखने के लिए ही एक हाथ का ऑपरेशन कराया था पर अब वो भी कोशिस बेकर गई ,लेदे के अब हम बिलकुल निराश हो गए अब कहाँ जाएँ किससे सीखें ,वैसे जब 2000 में हम भारत आ गए थे तब हमने सतीश चन्द्र सर को उनके उसी पते पर जहां हम सीखने जाते थे पहले ,कई लेटर भेजे पर कोई जवाब नहीं आया फिर हम अपने बच्चों के लालन - पालन में लग गए और अपनी पी.एच.डी. की पढ़ाई में लग गए और इसी बीच हमारी एक पोएट्री बुक ‘ भावनाओं के रंग ‘ भी पब्लिश हो गई । कुछ समय बीता जब फेसबुक और यूट्यूब का समय आया तो हमने उसपर भी ढूँढना शुरू किया तो उनके कूछ विडीओज़ हमें यूट्यूब पे मिले हमने कॉमेंट में जाकर लिखा कि हमको आपका नम्बर चाहिए हम बहुत साल से ढूँढ रहे हैं आपको ,लेकिन वहाँ से भी कोई जवाब नहीं मिला । सर्चिंग जारी रही ।अचानक से 2019 में हमारी एक फ़्रेंड शोभा जी जो कि दिल्ली में रहती हैं वो कानपुर की हीं रहने वाली हैं जब हमने उनसे गुरु जी का ज़िक्र किया तो वो जानती थीं उनको और उन्ही के माध्यम से उनके संगीत श्री प्रकाशन का नम्बर मिला और उसपर बात करने को उन्होंने बोला हमने झटपट कॉल किया उधर से बोलने वाले व्यक्ति ने बताया कि मैं उनका बेटा रोहित  बोल रहा हूँ हमने पूरी बात बताई कि हम उनके पुराने स्टूडेंट हैं तब उन्होंने उनका नम्बर दिया और ये भी कहा कि पापा अब 82 वर्ष के हो चुके हैं , 2 बजे से 5 बजे शाम तक दवा खाकर सोते हैं । 12 बजे दोपहर में या सुबह 10 बजे बात कर लीजिएगा ।हमारे तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा हम तो दूसरे दिन सुबह से ही 10 बजने का इंतेज़ार करते रहे और 10 बजते ही हमने उनको फ़ोन कर दिया उधर से आवाज़ आइ सतीश चंद्र फ़्रोम कानपुर हम बड़े ख़ुश हुए उनको अपने बारे में सब याद दिलाया और बताया कि हम आपको बहुत सालों से ढूँड रहे थे और आप 30 साल बाद मिले हमको सितार फिरसे कंटिन्यू करना है आपके साथ ,तो वो बोले कि मैं अब किसी नये स्टूडेंट को नहीं लेता हूँ चूँकि आप इतनी पुरानी हैं इसलिए मैं सिखा दूँगा आपको ये कहकर तारीख़ , दिन और समय बता दिया हम तो बस फूले न समाये जब वो दिन आया तो सुबह तड़के ही दोनो सितार लेकर गाड़ी में रख लिये अपना कॉपी, कलम भी रख लिया कुछ भेंट भी रख लिये और चल दिए अपनी मंज़िल की ओर लखनऊ से कानपुर । रास्ते से हमने उनको मैसेज किया कि I am on the way ,उनका रिप्लाई आया welcome I am waiting for you ,गाड़ी में बैठे बैठे ही हम ख़ुशी से उछल गए और ड्राइवर से सब उनकी पुरानी बातें करने लगे। बड़े अच्छे से उन्होंने ऐड्रेस समझाया था हमलोग ठीक 10 बजे उनके आवास पर पहुँच गए । घंटी बजाया तो अंदर से डोर खुला कोई इनकी शिष्या ही खोली और अंदर ले गई ,गुरु जी सोफे पर बैठे हुए थे खूब अच्छा सा कुर्ता और पैजामा पहने हुए थे , हमने उनके पैर छुए तो उन्होंने दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया और बड़े खुश हुवे जितने हम एक्साइटेड थे उससे ज्यादा वो दिखे बहुत सुबह ही तैयार होकर हमारा इंतजार कर रहे थे | हमने दोनो सितार उनको खोल कर दिखाया एक रविशंकर स्टाइल जो रिखीराम से लिया था और दूसरा विलायत खां स्टाइल जो कनई लाल से लिया था । उन्होंने दोनो को मिलाया और एक की तरब की तार टूटी थी तो वो अंदर से जाकर तरब का तार ले आए और हमको सिखाते हुए लगाने लगे हालांकि हम लगा लेते थे पर बहुत मुश्किल होती थी उन्होंने आसान तरीका बता दिया उसके बाद हमसे बोले कि कुछ सुनाइए हमने बोला कि जयजेवन्ती या झिंझोटी क्या सुनाए यही दो आजकल बजा रहे तो उन्होंने कहा कि जो भी आपको मन करे तो हमने जयजेवंती का शायद मसीतखानी और झिंझोटी राजाखानी सुनाया पूरा सुनने के बाद उन्होंने कहा कि हम आपको राग नहीं सिखाएंगे आप लय, सुर,ताल में हैं स्वर ज्ञान भी आपको है हम आपको मैटेरियल देंगे जैसे घर बनाने के लिए ईंट,मिट्टी,मोरंग, बालू आदि लगता है वैसे ही हम आपको बजाने के ट्रिक्स और मींड करवाएंगे आपको मेहनत करनी पड़ेगी हमने बोला बिलकुल गुरु जी अब हम आपके चरणों में आ गिरे हैं आप जो सिखाएंगे हम वही बजाएंगे क्युकी हमको सीखना है आपसे और सीखने के लिए ही उतना दूर लखनऊ से आए हैं , तो बिचारे बोले आप इतने साल से कहां थीं आप बहुत लेट आईं हैं मैं मुश्किल से चार साल और रह पाऊं शायद ,आप पहले मिली होतीं तो अब तक चमका दिया होता अपको आप तो स्टेज के लायक हैं हमारे तो आंसू निकल गए ,फिर हमने बताया कि हम बहुत साल से आपको ढूंढ रहे थे और 2000 में गोरखपुर से कई लेटर भी आपको लिख कर भेजे थे पर आपका कोई रिप्लाई नहीं आया तो उन्होंने बताया कि हम लोग काफी पहले यहां लक्ष्मणपुरी में शिफ्ट हो गए थे और लेटर पुराने एड्रेस पर आप भेज रही होंगी इसलिए नहीं मिला हमको ,आप लखनऊ रेडियो स्टेशन से हमारा नंबर और एड्रेस ले सकती थीं हमने कहा कि हम जानते ही नहीं थे कि आप लखनऊ आते थे खैर फिर उन्होंने हमारे पिताजी के बारे में पूछा तो हमने बताया कि 2016 में ही वो नही रहे फिर अम्मा को पूछा हमने कहा वो ठीक हैं फिर हमारे बच्चों और परिवार के बारे में पूछा तबतक आंटी भी अंदर से आ गईं उनको पूजा करने में बहुत टाइम लगता है इसलिए देर से आईं हमने उनके भी उठकर पैर छुए उन्होंने भी आशीर्वाद दिया और जब हमने गुरु जी को बच्चों के बारे में बताया तो आंटी एकदम चौंक गईं और बोलीं कि तुमको देखकर तो लगता ही नहीं कि तुम्हारी शादी हो चुकी है और तुम बता रही हो कि इतने बड़े-बड़े तुम्हारे बच्चे भी हैं ,तबतक उनके बड़े बेटे अंदर से निकले तो आँटी ने उनसे कहा अरे मोहित ये देखो ये लखनऊ से आई हैं सितार सीखने इनको देख कर लग ही नहीं रहा कि इनकी शादी भी हो गई है और इनका बड़ा बेटा अट्ठाईस साल का है और लंदन में पी.एच.डी कर रहा और दूसरा बेटा 15 साल का है जो इनके साथ लखनऊ में रह कर पढ़ रहा है, मोहित भैया ने हमको नमस्ते किया फिर हँसने लगे और वहीं पर गुरु जी की शिस्यायें बैठीं हुईं थीं सभी हँसने लगीं ।फिर गुरु जी चाय बनवाए और बिसकिट व नमकीन ले कर अपने हाथ से उठाकर देने लगे लगभग 30 साल बाद भी वही आत्मीयता प्यार पाकर हम तो धन्य हो गये उन्होंने कॉपी और पेन माँगा हम तो पूरी तैयारी से गए ही थे सो निकाल कर दे दिये उन्होंने अपने हाथ से उसपर कुछ मीण्ड वाले एक्सरसाइज़ लिख दिए फिर बजा कर सिखाए एक चीज़ को कहते सौ बार बजाइये ठीक वैसे ही जैसे तीस साल पहले बोलते थे , हमने बजाना प्रारम्भ किया कुछ कुछ बज जाता था और कुछ नहीं भी फिर हमारा टाइम होने लगा लौटने का और गुरु जी को भी 2-5 सोना है इस बात का ध्यान था हमें , तो लगभग 1- 1:30 पे हम उनसे और आँटी से विदा लेकर निकल आए लखनऊ के लिए क्यूँकि लम्बी दूरी तय करनी थी। इस प्रकार रहा पहला दिन वो भी तीस साल बाद का ... बड़ा ही सुखद ,और कल्पनाओं के संसार में गोते लगाते रहे पूरे रास्ते की अब हम अच्छा बजा पाएँगे पंडित कमल डेविड सर के चले जाने के बाद से जैसे हम बजाना ही भूल गए थे अब बड़ी मुश्किल से गुरु जी मिले हैं हर हफ़्ते जाएँगे बिना नागा किए और घर में भी प्रैक्टिस किया करेंगे ।
दो- तीन हफ़्ते यानी टोटल 3 बार तो गए हम और गुरु जी उस दिन अपने सारे स्टूडेंट्स को आने के लिये मना कर देते थे जिस दिन हमको बुलाते थे क्यूँकि हम बहुत दूर से आते थे ,समय कम पड़ जाता था और उसी दिन लौटना भी रहता था इस बात का ख़्याल था गुरू जी को कि वो हमको पूरा टाइम दें । जब हम पहली बार कानपुर आए थे गुरू जी से मिलने तब हम अपने साथ एक लिफ़ाफ़ा भी ले गए थे ज़्यादा तो कुछ नहीं बस मात्र 2000 रुपए रख के ले गये थे और जब फ़ीस के लिये पूछा तो फिर उनका वही जवाब था जो तीस साल पहले था मतलब फ़ीस की कोई डिमांड नहीं है तो हमने कहा गुरू जी पहले की बात और थी तब आप जॉब में थे और अब आप रिटायर हो चुके हैं आपको ज़रूरत है तब हम मैच्योर नहीं थे हमको इतना ज्ञान नहीं था कि हम किसी तरह दे दें आपको ,पर अब तो ज्ञान हो गया है कि गुरू दक्षिणा दिए बिना ज्ञान अर्जित नहीं होता है और ये आपके मेहनत का मेहनताना है और हमारा प्यार समझिए इसी रूप में दे सकते हैं आपको तब उन्होंने बोला ठीक है आपकी जो मर्ज़ी दे दीजिएगा तब हमने वो लिफ़ाफ़ा उनको थमा दिया था । इस प्रकार हमारा हफ़्ते में एक दिन जाना तय हो गया और हम नियमित रूप से जाने लगे । गुरू जी के एक दो कार्यक्रम में भी कानपुर में ही जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ उन्होंने बड़े प्यार से बुलाया था तो हम जाते कैसे नहीं ,उनके लिए हम फूलों का गुलदस्ता ले कर गए और कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के पहले ही स्टेज पर ले जाकर दे दिये बड़े ही प्रसन्न हुवे उनके और भी स्टूडेंट्स आए थे लगभग हम सभी पहले मिल चुके थे । आंटी भी यानी गुरू जी की वाइफ़ भी आइं थीं वो हमारी बहुत ही चिंता कर रही थीं कि हम इतनी रात में वापस लखनऊ कैसे लौटेंगे अकेले ड्राइवर के साथ , इनको कहते हैं कि लड़कियों को मत बुलाया करें अपने किसी भी रात के कार्यक्रम में तो हमने कहा आंटी आप परेशान मत होईये हमारा ड्राइवर बिलकुल बेटे जैसा है बहुत भरोसे का है तो उनकी परेशानी थोड़ी कम हुई । गुरू जी का कार्यक्रम बहुत ही ज़बर्दस्त रहा 82 की उम्र में इतना ज़बर्दस्त बजा रहे हैं हर तरफ़ तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज रहा था बहुत ही अद्भुत और भव्य लग रहा था । इतना अच्छा लग रहा था उनको सामने से बजाते हुवे देखना और कितना कुछ सीखने को मिला ,बहुत हीसौभाग्यशाली थे हम जो उनके कार्यक्रम में पहुँच गये थे । कार्यक्रम समाप्त हुवा और हम दोनो लोगों का पैर छूकर आशीर्वाद लेकर लखनऊ के लिए चल दिए रास्ते भर गुरू जी की कॉल आती रही कहाँ तक पहुँची इतनी चिंता कर रहे थे दोनो लोग । हम लखनऊ बहुत लेट पहुँचे रास्ते में ट्रकों का जाम लगा था । दूसरे दिन सुबह ही गुरू जी की कॉल आइ पूछा कितने बजे तक पहुँची थीं हमने सारा ब्योरा दे दिया फिर उन्होंने आने के लिए बहुत धन्यवाद बोला ।

                                                           (  गुरु जी का कार्यक्रम जो कानपुर में था ।)
        ( आरती , हम और शालिनी गुरु जी का कार्यक्रम प्रारम्भ ही होने वाला था ।)
(  आँटी गुरु जी की वाइफ़ राइट में बीच में  हम ।)
 (  लेफ़्ट में आरती दूबे गुरु जी की स्टूडेंट बीच में गुरु जी और राइट में हम कितने खुश हैं हम गुरु जी                                          का सान्निध्य पाकर ।)

                          (लेफ़्ट में शालिनी गुरु जी की स्टूडेंट ,आरती ,गुरु जी ,हम और नीलम जी गुरु जी की स्टूडेंट ।)
                                                     (  गुरु जी के साथ स्टेज पर दूसरे कार्यक्रम में ।)
                                            (    गुरु जी को सम्मानित करते हुए सभी अतिथि गण ।)
                                  (   प्रिय आँटी गुरु जी वाइफ़ जिन्होंने माँ जैसा प्यार और दुलार दिया ।
                                           ये सब अच्छे पल अब कभी लौट के आने वाले नहीं हैं ।)

तो इन सब बातों से क्या लगता है यही न कि वो केवल एक गुरू ही नहीं वरन पिता का भी फ़र्ज़ निभा रहे थे इतनी आत्मीयता से ,ऐसा गुरू आज के इस स्वार्थी ज़माने में कहाँ मिलेगा। ये तो रही कार्यक्रम की बात अब आगे बढ़ते हैं और बातों की तरफ़ | एक बार गुरु जी के घर पे उनके दुबई से कोई स्टूडेंट आए थे हमको नाम नहीं याद है उनके जाने के बाद गुरु जी ने हमको दिखाया कि वो स्टूडेंट उनके लिए दुबई से कुर्ता लाए थे और गुरु जी को कुर्ते बहुत पसंद थे ख़ासकर कलकत्ते वाले तब हमने भी मन में सोचा की हम गुरु जी को  लखनवी कुर्ता चिकन वाला ज़रूर पहनाएँगे और सोच कर ही बहुत खुश हो गए  । 
हम मुश्किल से 3 या 4 टर्न ही गये होंगे कुछ तबियत गड़बड़ हो गई तो नहीं जा पाये फिर बाहर जाना पड़ गया कई बार ,तब नहीं जा सके और फिर 2019 में ही दिसम्बर में लंदन चले गए 2 हफ़्ते के लिए जब जनवरी में लौट कर आए तो कोरोना का क़हर सब तरफ़ शुरू हो गया लॉकडाउन लग गया सबका आना जाना बंद हो गया लोग अपने ही घरों में क़ैद हो गए हर तरफ़ त्राहि - त्राहि होने लगी ऐसे में तो सितार बजाना किसको सूझेगा जहां पहले जान बचाना जरुरी हो गुरू जी की कॉल बराबर आती रहती हमने उनको बताया कि लंदन से हम आपके लिए गिफ़्ट लाए हैं वो चाय की पत्ती का कई फ़्लेवर का सेट था और गुरु जी चाय के बहुत शौक़ीन थे तो हमने पूछा कैसे  दें आपको तो उन्होंने कहा कि अभी तो हमने क्लास लेनी बंद कर दी है जब शुरू करेंगे तब आइएगा लेकर ,हमने कहा ठीक है | जैसे तैसे जनवरी बीता फिर अचानक से 14 फरवरी को सुबह सुबह गुरु जी की कॉल आइ ,हम धूप में बैठे थे बड़े निराश से ,सब रास्ते बन्द नज़र आ रहे थे पर जैसे ही उनकी कॉल देखी तो कुछ उम्मीद जागी और हमने झट फ़ोन उठा लिया उधर से आवाज़ आइ सतीश चंद्र फ़्रौम कानपुर ,हमने बोला जी गुरू जी सादर प्रणाम ,कैसे हैं आप और इतनी सुबह सुबह कैसे याद किया हमको ,तो उन्होंने बोला मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप कैसी हैं और क्या कर रहीं हैं तो हमने कहा कि हमको बहुत डिप्रेशन हो रहा एक तो हमारी उँगली काम नहीं कर रही है जबसे लंदन से लौट कर आए हैं ट्रिगर थम्ब हो गया है कुछ बजा ही नहीं पा रहे हैं तब उन्होंने बोला वोलिनी लगाइए और गर्म पानी में सेन्हा नामक डालकर सिकाई करते रहिए तो हमने कहा की गुरु जी बहुत से डॉक्टर को दिखाया सभी ऑपरेशन के लिए बोल रहे या स्टेरॉड का इंजेक्शन लगवाने को पर हम दोनो ही नहीं करवाना चाहते ,हमने 2017 में अपने दाहिने हाथ का ऑपरेशन करवाया था कार्पल टनल सिंडरोम का उसके कुछ ही दिन बाद राइट थम्ब में ट्रिगर थम्ब हो गया था उसमें भी फिरसे दोबारा ऑपरेशन के लिए डॉक्टर बोल रहे थे हमने बहुत फिज़ीओथेरेपी करवाई बहुत घरेलू ट्रीटमेंट किया बहुत टाइम लगा पर ठीक हो गया ,पर इतने दिन तक सितार का नुक़सान हुआ हम बजा नहीं पाए अब फिर वही प्रॉब्लम शुरू हो गई तो उन्होंने बड़े प्यार से समझाया कि सितार को इक़दम लो स्केल पर मिलाइए c या b स्केल पर और तीन नम्बर का तार हटा कर 2 नम्बर का लगा लीजिए तो उँगली पर ज़ोर नहीं पड़ेगा तो हमने बोला की 2 नम्बर का तार नहीं है हमारे पास तो उन्होंने कहा अपना एड्रेस्स हमको दीजिए हम पोस्ट कर देंगे यहाँ से और पूरी हमारी बात सुनने के बाद ये भी बताया कि मैं अभी लखनऊ में ही हूँ कल आकाशवाणी में हमारी एक रिकॉर्डिंग थी उसी सिलसिले में आया था बस आज ही भर हूँ और कल चला जाऊँगा ,हम तो बहुत ही प्रसन्न हो गए सब अपना दुखड़ा भूल गए और तुरंत गुरु जी को बोला कि फिर आज शाम हमारे घर आइए आज वैलेंटायन डे भी है और आज के दिन आपका प्यार और आशीर्वाद भी मिल जाएगा हम इतना लोनली फ़ील कर रहे थे डिप्रेस हो कर बैठे थे ,तो उन्होंने कहा अरे दुखी नहीं रहना चाहिए ठीक है मैं शाम को आता हूँ हमने कहा अपना एड्रेस भेज दीजिए हम ड्राइवर भेज देंगे उन्होंने एड्रेस व्हाटसैप कर दिया फिर क्या था हमारे अंदर जैसे अजब सी शक्ति आ गई हमने तुरंत और लोगों को फ़ोन कर दिया कि आज शाम हमारे सितार के गुरु जी घर आ रहे हैं इसलिए अपलोगों का डिनर यहाँ है वेलेंटायन का ,हमने अपनी कथक गुरु डॉक्टर कुमकुम धर उनके हसबैंड महेंद्र सिंह चौहान अंकल को और अपने स्टूडेंट्स रवि वर्मा , रेनू राठौर ,प्रिंसी ,गरिमा जी प्रेरणा राणा आदि कई लोगों को इन्वाइट कर दिया और सबसे ख़ुशी की बात कि इतने शॉर्ट नोटिस पर सभी आने को तैयार हो गए और गुरु जी से मिलने के लिए भी | शाम हुई सभी आ गए हमारे स्टूडेंट्स गुरु जी से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए उनका आशीर्वाद लिए ,हमारा तो अच्छा वेलेंटायन दिन बन गया एक ही दिन में दो दो गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा वो भी हमारे घर पे आकर ,बड़े ही खुशनसीब हैं हम ,गुरु जी को सितार दिया वो बजाने लग गए सभी स्टूडेंट ने सुना बहुत प्रभावित हुवे | वो शाम बहुत ही ख़ुशनुमा बीती सबके आने ,से फिर हमने जो गिफ़्ट लिया था लंदन में वो दोनो गुरुओं को भेंट किया साथ में गुरु जी को कुछ मिठाइयाँ और नमकीन भी भेंट किया कानपुर के लिए । गुरु जी बहुत ही प्रसन्न मन से यहाँ से विदा लिए और खूब आशीर्वाद देकर गए सभी को ,जो कभी सोचा नहीं था वो अचानक से हो गया इतना अच्छा वो समय बीता कभी भी भुलाया नहीं जा सकता । 

( हमारे घर जब सभी लोग एक शॉर्ट नोटिस पर आ गए थे लेफ़्ट से महेंद्र सिंह चौहान अंकल ( कुमकुम मैम के हसबैंड)    गरिमा जी ,प्रिंसी हमारी स्टूडेंट ,बीच में श्रद्धेय गुरु जी , उनके बग़ल में हमारी कथक गुरु माँ डॉक्टर कुमकुम धर ,रवि हमारे सितार के स्टूडेंट ,रेनू हमारी स्टूडेंट ,हम डॉक्टर प्रीतिकृष्णा गुप्ता ,प्रेरणा राणा और हमारे छोटे सुपुत्र चिरंजीव कार्तिकेय गुप्ता ।)

         ( ये पिक्चर हमारे घर की है जब गुरु जी 14 फ़रवरी 2020 को लखनऊ हमारे घर आए थे और हमारा रिखिराम वाला सितार बजा कर देख रहे थे क्यूँकि दिसम्बर में हम इसकी दिल्ली से रिखिराम के यहाँ ही जवारी करवा कर लाए थे ।)

फिर दूसरे मॉर्निंग गुरू जी कानपुर चले गए और वहाँ से जाते ही 2 नम्बर का स्ट्रिंग बाई पोस्ट भेज दिए दो जोड़ीं । फिर हमने स्ट्रिंग बदला और धीरे धीरे प्रैक्टिस शुरू कर दी । भगवान की दया से एवं गुरू जी के आशीर्वाद से हमारा अंगूठा भी पहले से काफ़ी बेहतर हो गया था । पर उस वक़्त चारों तरफ़ कोरोना ने बहुत कोहराम मचा रखा था ।गुरु जी बीच में आगरा भी गए थे अपने छोटे बेटे मोहित के पास वहाँ से भी उन्होंने हमको कॉल किया था आँख दिखाने शायद गए थे जहां तक हमको याद है । वहाँ से जब कानपुर लौट के आए तो फिर कॉल किया और अपनी खूब रिकॉर्डिंग भेजते थे । उन दिनों हम सिर्फ़ मारवा राग बजा रहे थे हमने पूछा भी गुरू जी से कि ऐसा क्यूँ हो रहा है सिर्फ़ यही राग अच्छा लग रहा है और कोई नहीं तो उन्होंने बताया कि इस राग से बैराग उत्पन्न होता है चूँकि समय ऐसा चल रहा है इसलिए शायद आपको अच्छा लग रहा है हम उनको अपनी रीकोर्डिंग्स भेजते रहते थे हमने झाला में बहुत कुछ इम्प्रूव्मेंट किया था सब उनको भेज कर पूछते थे कि ये झाला में बजा सकते हैं तो कहा कि हाँ बिल्कुल क्यूँ नहीं लय और ताल में होना चाहिए आप ज़रूर बजा सकती हैं । हम तो बड़े ख़ुश हुए कि चलो हम सही दिशा में काम कर रहे हैं मेहनत सफल हो रही है इस तरह से हमारी क्लास चलने लगी ,कभी कभी हम उनकी रिकोर्डिंग को भी बजाने का प्रयास करते और गुरु जी को भेजते वो बहुत प्रसन्न होते और अप्प्रिसिएट करते कि बहुत अच्छी कोशिस की है और एक नोट को सौ बार सुनिए तब बिल्कुल प्रॉपर बजेगा । 
इस तरह से पूरा 2020 निकल गया 2021 भी आ गया पर कोरोना की वजह से कुछ ख़ास तरह से सेलिब्रेशन कहीं भी हुआ नहीं । जनवरी,फरवरी,मार्च ऐसे ही बीत गया 8 अप्रैल को हमारे गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन होना था गुरू जी को बताया था उन्होंने बहुत सारी ब्लेसिंग्स भी भेजी थी अक्सर हम आँटी के बारे में भी पूछ लेते थे कि हमारा डान्स दिखाए कि नहीं उनको तो कहते दिखाया वो भी बहुत तारीफ़ कर रहीं थीं आपकी कि बहुत ही मेहनती हैं प्रीति बहुत तरक़्क़ी करेंगी । हमको इस बार ऑपरेशन से थोड़ा डर लग रहा था कि पता नहीं हम बचेंगे कि नहीं और ये सोचकर मारवा राग का सिर्फ़ अलाप रातोंरात फेसबुक पर अपलोड कर दिया बहुत अच्छा तो नहीं बज पाया था बहुत ही हड़बड़ी में पोस्ट किया था खैर ऑपरेशन सफल रहा हम बच गए ,घर आने के एक दो दिन बाद गुरु जी और आँटी को बताया कि ठीक से हो गया हालाँकि आँटी से जब पहले बात हुई थी तब उन्होंने बताया था कि 30 साल पहले उनका भी यही ऑपरेशन हुआ था और हमने तो गुरू जी के कहने पर ही करवाया था उन्होंने ही बताया था कि नहीं कराएँगी तो आगे बहुत प्रॉब्लम बढ़ जाएगी तभी हमने कराया था कि जल्दी से ठीक होकर उनसे सितार जो सीखना है । हमने एक हफ़्ते के अंदर ही सितार बजाना शुरू कर दिया था और गुरु जी को मारवा वाले पोस्ट के बारे में बताया और उनको फ़ार्वोर्ड भी कर दिया था कि हम बहुत डरे हुए थे और हड़बड़ी में पोस्ट किया सितार ठीक से मिला भी नहीं था तो उन्होंने कहा की बहुत अच्छा बजाया है और अपने रविशंकर जी का सुनकर बजाया है ये अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है थोड़ी गड़बड़ी भी सही कोई बात नहीं मेहनत बेकार नहीं जाएगी । 
कुछ दिन बाद हमने एक ओल्ड सोंग आगे भी जाने ना तू,पीछे भी जाने ना तू जो भी है बस यही पल है सितार पर बजा कर भेजा पर गुरु जी का कोई रिप्लाई नहीं आया हम संकोच में कभी उनको फ़ोन नहीं करते हमेशा उन्ही का आता था ऐक्चूअली इस बीच सितार के कई जाने माने आर्टिस्ट कोरोना की चपेट से बच नहीं पाए गुरु जी अक्सर उनलोगों की बातें करके दुःखी हो जाते थे तभी हम कुछ न कुछ रीकोर्ड करके भेज देते कि उनका ध्यान उधर न जाए पर वो न्यूज़ सब देखते थे और हमको उधर कई दिन से आँटी की बहुत ज़्यादा याद आ रही थी उनसे बात करने का मन हो रहा था जब गुरु जी की कॉल नहीं आइ तो हमने आँटी को उनके फ़ोन पे मिलाया तो उधर से श्री की मम्मी यानी गुरु जी की बहू ने फ़ोन उठाया हमने बोला नमस्ते भाभी ,आँटी कहाँ हैं उनसे बात करने का मन हो रहा है उनकी इधर बहुत याद आ रही थी तब उन्होंने बताया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है तो हमने पूछा बात कर पाएँगीं पूछिए उनसे ,तो उनसे पूछ कर उनको फ़ोन दे दिया उधर से आँटी की आवाज़ आई हमने नमस्ते बोला फिर कहा आपकी बहुत याद आ रही थी इसलिए कॉल किया आपके फ़ोन पर ,आपको क्या हो गया आँटी तो बोलीं की हम भी बहुत याद कर रहे थे इतना टाइम हो गया तुमसे मिले हुए ,बुख़ार हो गया है और खांसी भी बहुत आ रही है तो हमने कहा ठीक है हम ज़्यादा बात नहीं करेंगे बस आपकी आवाज़ सुन ली दिल को तसल्ली हो गई गुरू जी की कोई खबर नहीं मिल रही वो कैसे हैं तो बोलीं वो भी ठीक नहीं हैं आजकल हमने कहा अच्छा आँटी अब हम रखते हैं आप आराम कीजिए जब ठीक हो जायेंगीं तब बात करेंगे फिर उन्होंने हमको खूब सारा आशीर्वाद दिया और फ़ोन कट गया । दो या एक दिन बाद ही गुरुजी का व्हाटसैप पे मैसेज आया कि  ‘येस्टर्डे माई वाइफ़ लेफ़्ट अस फ़ॉरएवर ,शी इज़ नो मोर …………’ अरे ,हमारा तो दिल बैठ गया ये क्या हो गया अभी तो हमने बात की है और गुरु जी को हमने सब मैसेज करके बता भी दिया था कि आँटी से हमारी बात हुई है , बात से तो इतनी बीमार नहीं लग रही थीं दिल एकदम चीत्कार करने लगा और गुरु जी के लिए चिंता बहुत बढ़ गई , वो वैसे ही इतना डरे हुए थे अब तो और भी परेशान हो जाएँगे कितने अकेले हो गए ,दोनो लोग हर समय साथ-साथ रहते थे अब वो कैसे रहेंगे ,हमारी हिम्मत ही नहीं हुई कि हम उनको कॉल करें क्या बात करेंगे ,किस मुँह से ,कुछ समझ नहीं आ रहा था ,क्या पूछें ,कैसे हो गया ,बिल्कुल दिमाग़ काम नहीं कर रहा था ,बस हमने लम्बा सा मैसेज डाल दिया उनको ढाँढस बँधाते हुए और कुछ भी नहीं कर पाए ,मन जो इतना रो रहा था गुरु जी के लिए और आँटी की वो सारी बातें याद आने लगीं जब हम सितार सीख़ते थे तो वहीं अपनी माला और चाय लेकर बैठतीं और खूब बातें करतीं कि हमको भी तुम्हारे गुरु जी ने सितार सिखाने की कोशिस की पर हमको बहुत मुश्किल लगा हमने इनसे कहा कि ये हमारे बस नहीं है और छोड़ दिया ,गाना ज़्यादा आसान लगा ,तो हम और गुरु जी खूब हँसने लगे वो भी हँसने लगी ,कितने अच्छे दिन थे ,वे सभी लोग ख़ुश थे ,अपनी -अपनी लाइफ़ में । 

  ( डीयर आँटी एक हाथ में अपनी माला और दूसरे हाथ में चाय लेकर बैठी हैं और रिस्पेक्टेड गुरु जी हमको मींड सिखा रहे हैं।
                सिर्फ़ स्मृतियाँ ही शेष रह गईं , दोनो ही लोग इस दुनिया को छोड़ गए हम सभी को आंसुओं के साथ । )

पर जबसे कोरोना आया है हर तरफ़ उदासी छा गई है ,हर कोई डरा हुआ है ,हर घर से बैड न्यूज़ आ रही है ,बहुत ज़्यादा सदमे में दिल चला गया ,कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ,और एक दो दिन बीत जाने पर भी गुरू जी का न कोई मैसेज आया न ही कोई कॉल आइ ,हम समझ गए कि गुरू जी बहुत अकेले हो गए होंगे और ज़रूर डिप्रेस भी हो गए होंगे ,क्या मैसेज अब करें बिचारे उनकी दुनिया ही उजड़ गई ,कैसे उनका मन लग रहा होगा मतलब की हम उनके दिल के इतने क़रीब थे कि उनका दर्द -हम अनुभव कर रहे थे हम खुद कॉल न करके अपनी फ़्रेंड शोभा जी से उनको कॉल करवाये कई बार करने पर कॉल उनकी उठ गई वो बहुत ही हताश थे और आँटी के जाने का उनको बहुत ज़्यादा दुःख था थोड़े बीमार भी हो गए थे उनकी न्यूज़ थोड़ी मिली तो थोड़ा राहत हुआ हमको ,फिर हमने 6 तारीख़ को संडे था शायद उस दिन अपने दिल को मज़बूत बनाते हुए सोचा था की आज हिम्मत करके 12 बजे के बाद हम ज़रूर उनको कॉल करेंगे और बस हम लंच ही कर रहे थे और घड़ी देख रहे थे हमें क्या पता कि हम जिस क्षण का इंतेज़ार कर रहे हैं कि अभी बस कुछ मिनटों में ही गुरू जी से बात हो जायेगी और हम उनकी आवाज़ सुन लेंगे पर हमें क्या पता था कि जिस क्षण का हम बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे हैं वो क्षण बहुत ही बुरी खबर ले कर आने वाली है और हमारे फ़ोन पर वो मनहूस मैसेज भी आ गई कि सतीश जी भी नहीं रहे..... जो मंजू दीक्षित जी ने भेजा था हमें तो एकदम से बिलीव ही नहीं हुआ कि गुरू जी तो बिलकुल ठीक थे हम तो अभी बात करने ही वाले थे उनसे ,ओह हे भगवान वो भी चले गए और हम फ़ोन मिलाने को सोचते ही रह गए ,अरे ये काम हमने पहले ही क्यूँ नहीं कर दिया ,आख़िर शोभा जी का फ़ोंन उठाया न उन्होंने ,हमने इतना संकोच क्यूँ किया ,बहुत ही कोसा हमने अपने को और फिर शोभा जी को कॉल किया और यह दर्दनाक बात बताई और हमदोनो फ़ोन पर ही फूट-फूट कर ,रोने लगे सब कुछ ख़त्म दोनो लोग एक साथ चले गए अब कभी न इनको देख पाएँगे ,न मिल पाएँगे और न ही आवाज़ सुन पायेंगे ,हाँ लेकिन एक बात के लिए हमने अपनी ही पीठ ठोंकी कि न जाने हमको क्या सूझी ,इतनी आँटी की याद आइ और हमने उनको तो कॉल करके बात कर ली थी पर गुरु जी के समय हमने लेट कर दिया बहुत अफ़सोस हुआ ख़ैर होनी को कौन टाल सकता है पर इस तरह से दोनो लोगों का एक साथ जाना बड़ा ही असहनीय हो गया सब जैसे अंदर तक सन्नाटा छा गया । बाद में और लोगों से उनके स्टूडेंट्स से जानकारी ली हमने ,तो पता चला कि दोनो लोगों को कोरोना हो गया था और आँटी के जाने के बाद गुरु जी बहुत टूट गए थे रोते थे तो उनके बेटों ने ही लोगों को बताया की माँ ने पापा को बुला लिया ,उफ़्फ़ कैसी अनहोनी घटना घटी । 
पूरे एक वर्ष हो गए 2021 से 2022 आ गया पर गुरु जी और आँटी को एक पल के लिए भी भूले नहीं उनलोगों की बातें ,यादें सब धरोहर की तरह दिल पर अंकित है और आज भी हम जब सितार लेकर बैठते हैं ,पहले सभी गुरुओं को नमन करते हैं सबका आशीर्वाद लेते हैं तभी रियाज़ करने बैठते हैं हमारे गुरुओं में जिनको हमने मन से ही मान लिया है वो हैं अलाउद्दीन खाँ ,अकबर अली,अन्नपूर्णा देवी,रवि शंकर ,निखिल बैनरजी,विलायत खाँ और रईस खाँ ,और जिनसे बचपन में सीखा है और वो अब नहीं रहे वो हैं जगदीश सिंह गोरखपुर के ,सुरेंद्र मोहन मिश्रा बनारस के , फिर इधर कुछ सालों में जिनसे सीखा और अब वो भी नहीं रहे वो हैं पंडित कमल डेविड लखनऊ,पंडित सतीश चंद्र कानपुर । 
इस प्रकार रही हमारे सितार की जर्नी जब हम लंदन में रह रहे थे तो वहाँ भारतीय विद्या भवन में विजय जगताप जी से कुछ दिन सीखा वो भी बहुत अछे गुरू हैं अभी भी वो लंदन में ही रह रहे और जब 2000 में हम लखनऊ आ गए तो 2010 में भातखण्डेय में भी एडमिशन लिया था एम.पी.ए के लिए जहां कुछ दिन अभिनव सिन्हा सर से सीखा पर एक्सीडेंट की वजह से कन्टीन्यू नहीं कर पाए ।हमारे सीखने की लगन ने किसी को छोड़ा नहीं जहां तक पहुँच पाए अपनी कोशिस जारी रही पर कभी क़िस्मत ने तो कभी हेल्थ ने तो कभी परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया लेकिन अब भी सीखने का प्रयास जारी है सभी गुरू जी लोग जहां कहीं भी हैं हमें आशीर्वाद भेजते हैं और हम जब भी सितार बजाते हैं उनलोगों की गाइडेंस मिलती रहती है ये हमने कई बार अनुभव किया है ।
 एक बार तो हम झाला बजा रहे थे और मिज़राब बहुत फँस रहा था तो पीछे से आवाज़ आइ मिज़राब बदलो और मूड के देखा तो डेविड सर थे और अभी इधर की बात है एक महीने पहले की हम इस साल यानी जनवरी से पीलू ही बजा रहे हैं और कोई राग अभी नही बजा रहे और वो भी मिश्र धुन है जो डेविड सर ने बड़े प्यार से सिखाया था एक लाइन का स्थाई और एक लाइन का अन्तरा पर हम इतने दिन से बजाते बजाते उसमें बहुत सी चीज़ें एड कर दिए हैं तो वो बहुत ही विस्तृत हो गया है अलाप और झाला के साथ काफ़ी बड़ा और अच्छा हो गया है सिर्फ़ झाले की तिहाई नही समझ में आ रही थी कि क्या रखें हमने गुरु जी पंडित सतीश चंद्र से मन में ही कहा की प्लीज़ गाइड कीजिए और जब हम नेक्स्ट मॉर्निंग उठे तो हमारे मन में वो तिहाई चल रही थी तो सुबह सुबह फ़ोन पर गा कर ही रेकर्ड कर लिया कहीं भूल न जाएँ और जब सितार बजाया तो वही तिहाई झाले में जोड़ लिया तो इस प्रकार अदृश्य रूप में भी गुरु लोग हमको सिखा रहे हैं तो हमारे लिए वो लोग अमर हैं । हमने विलायत खाँ को भी सपने में देखा था कि हम उनसे सीखने गए हैं तो वो कह रहे कि बहुत लेट आइ हो बहुत समय तुमने बर्बाद कर दिया ये सब मनगढ़ंत नही हैं सब सत्य हैं हमारे अंदर जो अब भी सीखने की लगन है वही हमको ज़िंदा रक्खे है । 
 यह एक छोटी सी श्र्स्द्धांजलि अर्पित करते हैं हम अपने प्रिय गुरु पंडित सतीश चंद्र जी के लिये उन्हीं की बातें उनका प्यार और आशीर्वाद को याद करते हुए सादर नमन । जबतक हम लिखते रहे आपके बारे में बिल्कुल अपने आप को आपके क़रीब पाते रहे हम आपको क्या दे सकते हैं हमारी इतनी कोई औक़ात ही नही एक कुर्ता सोचा था वो भी नहीं दे पाये अवसर  ही नहीं मिला हम कानपुर ही नहीं जा पाए कोरोना की वजह से और जब गुरु जी घर आए तो ख़रीदने का मौक़ा ही नहीं मिला ,सब अचानक से हो गया , जो आपने दिया अथाह दिया बस इन शब्दों को गुरुदक्षिणा समझ कर स्वीकार कर लीजिए और हमको सिखाना कभी मत छोड़िएगा यही आपसे अनुरोध है गुरु जी ।
गुरु जी के जितने डटूडेंट्स हैं जिनको हम जानते हैं सभी से हमारी बात होती है उन्ही से यह भी ज्ञात हुआ कि गुरु जी ने एक स्टूडेंट की प्रभाकर की फ़ीस भी भरी थी पर बाद में जब उस स्टूडेंट के पास पैसे आए तो उसने लौटा दिया तो गुरु जी ने कहा कि तुम हमारा पैसा नहीं रखना चाहती हो तभी लौटा दी हमको ये सब जानकर कितना दुःख हो रहा कि साक्षात ईश्वर थे हमारे गुरु जी ,जो पूरी ज़िंदगी देते ही रहे सभी को ,चाहे वो प्यार हो ,सम्मान हो ,या शिक्षा हो ,हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिला उनसे ,एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा और सच्चा  कलाकार बनने की चाहत । सभी स्टूडेंट्स से उनकी चर्चा होती रहती है वो यह भी  बताते हैं हमको कि वो आपकी बहुत तारीफ़ करते थे कि बहुत टैलेंटेड हैं सितार में हाथ बहुत अच्छा है लय,सुर का ज्ञान बहुत अच्छा है ये सब सुनकर हमारे आँख से आँसू गिरते हैं कि हम पहले गए होते तो आज अच्छा बजा रहे होते पर फिरभी हमने हिम्मत नही छोड़ी है जितना भी आता है और जैसा भी आता है बजाते रहते हैं फेसबुक और यूट्यूब पे अपलोड करते रहते हैं गुरु जी तो हमको आकाशवाणी और स्टेज पर बजवाना चाहते थे पर वो समय कब आएगा मालूम नहीं सब गुरू जी के हाथ में है । इन्हीं शब्दों के साथ अश्रुपूरित नैनों से गुरु जी आपको शत शत नमन । 
कहीं कोई त्रुटि हो गई हो तो हाथ जोड़कर क्षमा -याचना  है आपसे । 🙏
                           
                                    गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरू देवो महेश्वरा  ।
                                                           गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः, 
                                                                            तस्मै श्री गुरूवे नमः, तस्मै श्री गुरूवे नमः ।।


                                                             गुरु जी का सूक्ष्म परिचय ।

Tuesday 5 February 2013


कभी भी न भूलने वाली वह भयावह काली रात 

           पच्चीस अगस्त २०१० रात के ठीक नौ बजे जगह रसौली गोरखपुर से लखनऊ आते समय बाराबंकी से थोड़ी दूर पहले ही यह जगह पड़ती है, पहले शायद कभी ध्यान भी नहीं दिया होगा आते-जाते समय कब ये जगह निकल जाती मालूम नहीं पर अब... !! अब तो जीवन पर्यन्त इस नाम को, इस जगह को कभी नहीं भूल सकते !!  
         हमारी नानी हमलोगों के साथ ही रहती थीं हमारी दादी के यहाँ, हमारा पूरा परिवार नानी को बहुत प्यार करता था हमारी अम्मा तो हमलोगों से ज्यादा ध्यान नानी का रखती थीं हर जगह अपने साथ ले जाती थीं घर के सभी बुजुर्ग लगभग खत्म हो चुके थे सिर्फ नानी रह गईं थीं इकलौती, बहुत बूढी हो चुकी थीं कुर्सी पर बैठे-बैठे दिनभर चाय मांगती रहती थीं “ ए बहिनी तनी चह्वा दे दे ” एक दिन उनके कप के गिरने की आवाज आई (स्टील के कप में ही वो चाय पीती थीं) सभी दौड़ कर उनके पास गये तो वो कुर्सी पर बैठे ही एक तरफ को झुक गईं डॉक्टर ने देखा तो ब्रेन हैम्रेज बताया लेफ्ट साइड पैरालाइज्ड हो चुका था हॉस्पिटल में ऐडमिट हो चुकी थीं | हमारे पास छोटी बहन का फोन आया कि हालत ठीक नहीं है तुम तुरंत आ जाओ हम उस समय लामार्टिनियर स्कूल के कार पार्किंग में अपनी कार में बैठे हुए थे प्रंकित का रिहर्सल चल रहा था पन्द्रह अगस्त के फंक्शन के लिये जैसे ही प्रंकित आये, हम रोते हुए कार ड्राइव करके अपने घर नाका-हिंडोला पहुंचे कार्तिकेय भी सी.एम्.एस से आ गये उस समय न कोई ट्रेन थी न बस, कार में ही कुछ कपड़े डाले कार्तिक को बैठाया मेरी मम्मी जी (सास) बाहर तक छोड़ने आईं कार्तिक के लिये कुछ खाने का सामान व कोल्ड ड्रिंक देने, हमारा ध्यान तो इस सब में था नहीं बस ये डर था कहीं देर न हो जाये मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे हे भगवान अनर्थ न होने देना हमें मिलवा ज़रूर देना | प्रंकित तो जा नहीं सकते थे वो अपनी दादी के पास ही रुक गये | खुद ही ड्राइव करके गोमती नगर तक पहुंचे ही थे कि छोटे बहनोई का फोन आ गया कि दीदी मनोज वहीँ मिल जाएगा उनका ड्राइवर, जो किसी काम से लखनऊ आया हुआ था खैर वो मिल गया रात होते-होते गोरखपुर पहुँच गये सीधा हॉस्पिटल पहुंचे नानी को देखकर जान में जान आई सभी लोग वहीँ थे अम्मा पिता जी भाई बहन भाभियाँ,बहनोई | नानी बेड पर थीं,अम्मा रोये जा रहीं थीं हमने नानी का हाथ पकड़ा भगवान को धन्यवाद कहा जो हमें मिला दिया उनका हाथ पकड़ कर चूम लिया और कहा “ए नानी देखो हम आ गईली आँख खोलो बाँयाँ हाथ तो उनका चल नहीं रहा था तो दाहिनी हाथ की अंगुली से अपने आँख का पलक ऊपर की तरफ उठा दीं और हमको और कार्तिकेय को देख लिया एक ही आँख से बिचारी देखे जा रही थीं और कुछ बोल नहीं सकती उनकी आँखों से अश्रु बह रहा था हम सब ने वह समय कैसे काटा शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं इस समय लिखते समय दिल चीत्कार कर रहा है डॉक्टरों का ये कहना था कि ये तो चमत्कार हो गया, ये जी कैसे गईं और पिता जी से कहा कि आप के पूरे परिवार के प्यार ने इन्हें बांध कर रखा है वर्ना कोई उम्मीद नहीं थी जबतक भी जी रहीं हैं ये इनका विल पॉवर है जा भी सकती हैं, कुछ दिन और रुक भी सकती हैं कुछ कहा नहीं जा सकता सबने खूब सेवा की हमसब बहने उनके कान में खूब मन्त्र बोले सब बारी-बारी से चालीसा व जाप करते रहे जब हालत थोड़ा सुधर गई तब पिता जी ने हमे कहा बेटी तुम जाओ प्रंकित को छोड़ कर आई हो और कार्तिकेय के स्कूल का भी नुक्सान हो रहा है हमसब हैं यहाँ तुमसे कुछ छिपा तो है नहीं जैसा भी होगा तुम्हे फोन से हाल-चाल देते रहेंगे हम वापस लखनऊ आ गये |
मन में डर तो बना ही था कि कभी भी कोई अप्रिय न्यूज़ आ सकती है ११ आगत को सुबह १० बजे वह अप्रिय खबर आ ही गई जिसके बारे में मालूम तो था पर शायद मन तैयार नहीं था पिता जी ने हमें मना कर दिया कि मिल तो चुकी न अब फिर बच्चों के साथ इस बारिश में आने से क्या फायदा उस दिन मेरी सास ने मुझे बहुत सहारा दिया बच्चे स्कूल थे वही चाय बना कर लाई दोपहर का खाना भी उन्होंने ही बनाया हमें तो सुध-बुध नहीं थी यहाँ पर सभी को मालूम था कि हमलोगों की नानी क्या थीं हमलोगों के लिये पूरे टाइम फोन पर भाई लोग सब विविरण देते रहे यहाँ तक कि घाट पर से पंडित के मंत्रोच्चारण की आवाज सुनाई देती रही और हम फूट-फूट कर रोते रहे अपनी अम्मा के लिये कि वो अब कैसे रहेंगी नानी के चले जाने से मेरी अम्मा कितनी अकेली हो गईं |
       दस बारह दिन बीतने के बाद भी नॉर्मल नहीं हो पा रहे थे | बहन ने बताया  कि २५ को हवन है उसमे तुम ज़रूर आना सभी रिश्तेदार पूछ रहे थे कि बेबी नहीं आईं, ये आखिरि काम है तुम आने की कोशिष करना हमने कहा ठीक है | उन्ही दिनों हमने भातखंडे में सितार से एम्.ए में एडमिशन लिया था रोज बारह से एक जाते थे क्लास अटेन्ड करने जब बच्चे स्कूल में होते थे | २४ को रक्षाबंधन की छुट्टी थी कार्तिकेय का टेस्ट चल रहा था पर जब डायरी देखा तो २५ को कोई टेस्ट नहीं था हमारे दूसरे नंबर वाले जीजा जी भी आये हुए थे उनके एक मित्र भी थे, संयोग बनता चला गया और हमलोग २४ को तडके कार से निकल लिये प्रंकित को भी ले लिया | जीजा जी के मित्र ही ड्राइव कर रहे थे बारिश बहुत हो रही थी एक जगह रास्ते में एक गाड़ी जो अचानक से रुक गई ये स्पीड संभाल नहीं पाए एकदम पास जाकर ब्रेक लगाईं जिससे कार भिड गई हम थोड़ा उनपर नाराज़ भी हुए कि डिस्टेंस ले कर चलाइए हमारी कार का पूरा बोनट आधा ऊपर उठ गया था हम अपनी कार जल्दी किसी को देते नहीं थे खुद ही धुलाई सफाई करते थे एक-एक स्क्रैच बचाते थे गाड़ी को चोट लगी हमें दर्द हुआ बहुत दुःख हुआ खैर अयोध्या में भी बहुत टाइम लग गया कांवर वाले सब तीर्थयात्री भरे थे जैसे-तैसे गोरखपुर पहुँच गये अम्मा के पास गये होनी को कोई टाल नहीं सकता बहुत समझाया कि अब हमसब तुम्हारे बच्चे हैं तुम्हारे साथ, हाँ नानी की कमी तो कोई भी पूरी नहीं कर पायेगा पर एक न एक दिन तो सबको जाना है देखो नानी इतनी महान आत्मा थी किसी को परेशान नहीं की हम आठ भाई-बहन, सबकी शादी बाल-बच्चे देख कर गई किसी भी कार्य में व्यवधान नहीं डाली आखिर तक रुकी रहीं बात-चीत तो चल ही रही थी पर हमें बीच में उठकर फिर कार लेकर बनने देने जाना पड़ा क्योंकि दूसरे ही दिन वापसी थी रक्षाबंधन की वजह से सभी वर्क्शॉप बन्द थे बड़ी मुश्किल से एक  मिली उसने कहा लेबर बुलवानी पड़ेगी पैसे ज्यादा लगेंगे हमने कहा ले लेना  कल गाड़ी हमें हर हाल में चाहिए ये काम भी हो गया दूसरे दिन यानि २५ को सभी जल्दी उठ कर पूजन की तैयारी में लग गये पंडित जी आ गये हवन शुरू हो गया वर्कशॉप से फोन आ गया मैडम गाड़ी रेडी है आकर ले जाइये वहाँ सब खुद ही इतने परेशान है भाई लोगों से कहा नहीं पिता जी को बताया और प्रंकित एवं जीजा जी के साथ निकलने लगे तो पंडित जी ने किसी को भेज कर हम तीनों के हाथ से हवन सामग्री अलग निकलवा कर रखवा लिया कार्तिकेय तो अपना हवन कर ही रहे थे, हम कार की वजह से इतना व्यस्त हो गये चूँकि दोपहर में ही निकलना था लखनऊ के लिये | कार ले आये जबतक हवन समाप्त हो चुका था अब सभी ब्राह्मण को भोजन कराया जा रहा था दान वाला कार्यक्रम भी हो चुका था | अंदर आये सारे रिश्ते दार ननिहाल के तरफ के ए बेबी इधर आओ हमारी शादी के बाद से किसी ने देखा ही नहीं था २१,२२ वर्ष बाद सभी देख रहे थे दोनों बच्चों को भी देखा सबने बुला कर बात किया आशीर्वाद दिया कहा तुम्हारे दोनों बच्चे राजकुमार हैं और दोनों बच्चे सफ़ेद कुर्ते पैजामे में थे सबसे मिलने मिलाने के बाद अम्मा के पास गये कहा अम्मा अब हमें निकलना है अम्मा को तो जैसे होश ही नहीं हमारा हाथ पकड़ ली चौंक गई अरे तुम भी अभी जा रही हो अभी कैसे जा सकती हो हमने कहा नहीं अम्मा कार्तिक का टेस्ट छूट जायेगा अगर आज नहीं गये तो, बहुत मुश्किल से निकल कर आये हैं दोनों बच्चों का स्कूल चल रहा है फिर आयेंगे तो लंबा रुकेंगे तुम्हारे साथ, अम्मा के अंदर इतनी शक्ति ही नहीं थी कि ज्यादा कुछ बोल पायें रो-रो कर बेहाल थीं हमने उन्हें गले से लगा लिया और उनको इतना असहाय टूटा हुआ देखकर सुबक पड़े कहा अपना ध्यान रखना अम्मा, पिता जी का चरण स्पर्श किया तबतक बहनों ने खाना पैक कर दिया था और ये भी कहा था कि जबतक सभी पंडित जी भोजन न करले तब तक कुछ न खाना हमलोग फोन से बता देंगे तुम्हे | वही जीजा जी किसी ड्राइवर को बुलवाए थे किराये पर आउटर्स तक अपनी बाइक से साथ-साथ छोड़ने आये और ड्राइवर को पैसे दिए और कहा ये हमारी बेटी है बहुत संभाल कर ले जाना स्पीड मत बढ़ाना दोनों भाइयों ने भी कहा था कि ६०,७० से ऊपर मत जाना और जीजा जी ने ये भी कहा हमसे बेबी तुम इसको पैसे मत देना हमने अचछा-खासा दे दिया है किराया भी दे दिया और नाश्ते पानी का भी दे दिया जीजा जी वाकई में हमें अपनी बड़ी बेटी मानते है कहा बेटा यहाँ काम नहीं होता तो मै लखनऊ तक तुमलोगों को पहुचने आता और इतने भावुक हो गये रो पड़े साथ में उनका बेटा भी था उद्देश्य, हमने उद्देश्य को बोला कि अब पापा को लेकर घर जाओ बहुत थक गये होंगे वो लोग भी जाते समय हाथ हिलाते रहे और हमलोग भी, शाम के चार बज रहे थे थोड़ी घबडाहट भी हो रही थी नया ड्राइवर है हमलोग अकेले है, भगवान भरोसे चल दिए | स्वतंत्र –चेतना के संपादक, आर.सी.गुप्त  हमारे जीजा जी लगते हैं उनका फोन आया तो आश्चर्य चकित हो गये कि इस बार तुम एक दिन भी नहीं रुकी और मिली भी नहीं जा रही हो वो अक्सर बहुत-अच्छे मन्त्र बताते रहते है उस दिन भी उन्होंने दुर्गाशप्तशती के कुछ मन्त्र बोले बहुत अच्छा लगता है उनको सुनना, बहुत ही मधुर वाणी है उनकी कह रहे थे जब नानी के बारे में सोच कर दुःख लगे तो इस मन्त्र को पढ़ना इसी तरह सबसे बातें करते हुवे आधा रास्ता पार हो गया घर से भी बराबर सभी लोग संपर्क बनाये हुए थे | ड्राइवर भी खूब अच्छे से बात करते हुए आराम से चल रहा था अपने गाँव की बात कर रहा था कि हमारी पत्नि पहले हमारे अम्मा बाबूजी को खाना खिलाती है तब अपने खाती है सुन कर डर खत्म हो रहा था कि परिवार वाला है थोड़ा संस्कारी भी है आधा दूर आ ही गये हैं कुछ घंटों की बात है बस, घर से फोन आ चुका था कि बच्चों को खाना खिला सकती हो अब, तो हमने उस ड्राइवर (उसका नाम बजरंगी था) से कहा कि अयोघ्या में रोक देना तो पहले चाय पियेंगे फिर खाना खायेंगे अयोघ्या निकलता जा रहा है वो कार रोक ही नहीं रहा है बच्चों ने जिद किया तो ना जाने कहीं ढाबे से बहुत दूर ले जाकर अँधेरे में कार रोका और कहा कि हम चाय भिजवा रहे हैं हमने कहा यहाँ कहाँ चाय मिलेगी यहाँ तो सब अँधेरा पड़ा है तुम तो कार इतनी आगे ले आये तो कहा नहीं हम भिजवा रहे हैं दस मिनट,पन्द्रह मिनट हमारी बहन व जीजा जी लगातार बात करते रहे कि वो जैसे ही आये उससे बात करवाओ करीब आधे घंटे में चाय लेकर एक छोटा सा लड़का आया हमने उससे पैसे पूछा तो उसने कहा मिल गया वापस गिलास लेकर चला गया थोड़ी देर बाद बजरंगी आया हमने पूछा इतनी देर क्यों लगा दी तो बोला खाना खाने लग गया था तो हमने कहा कार फिर वहीँ लगाते न यहाँ अँधेरे में इतनी दूर क्यों लगाये हमारे भी बच्चे भूखे हैं तुम भी इसी में से ले लेते इतना खाना है टाइम भी इतना लग गया फिर जीजा जी ने उसे फोन पर डाटा कि अब कहीं रुकना मत | वहाँ से जो इसने कार चालना शुरू किया कार की स्पीड बढ़ा दी सारा खाना गिरा पड़ा जा रहा है हम बार-बार कहे जा रहे है कि हमें कोई जल्दी नहीं है आराम से चलो तो कहने लगा आप घबड़ाइये नहीं हम आज से ड्राइवरी नहीं कर रहे है बहुतो की गाडियाँ चलाई हैं फिर कहने लगा आपके कार की हेडलाईट सही नहीं है ठीक से दिखाई नहीं दे रहा फिर हमलोगों ने रिलायंस पेट्रोल पम्प पे एक हज़ार की एक्स्ट्रा प्रीमियम पेट्रोल भरवाया जबसे कार ली २००६ से तबसे यही पेट्रोल लिया कभी सादा नहीं लिया | प्रंकित ने हमसे धीरे से कहा कि मम्मा हम आगे बैठने जा रहें हैं इसे कंट्रोल करेंगे इसने शायद ड्रिंक कर लिया है गाड़ी लहरा रही है हमारा तो मन हुआ कि उसे वहीँ छोड़ दे और हम और प्रंकित मिल कर ड्राइव कर लेंगे पर रात हो गई थी इसलिए रिस्क नहीं लिया हमें क्या पता था कि रिस्क उसे ले जाने में है | प्रंकित आगे बैठ गया उसकी ड्राइविंग से दहशत भी हो रही थी स्पीड कंट्रोल नहीं कर रहा और प्रंकित को तमाम बाते समझाने लगा ऐसे गेयर बदलते है प्रंकित बोला तुम चुप-चाप ड्राइव करो हमें आती है तुम ध्यान से चलो और स्पीड कम करो ऑल्टो कार और स्पीड १२० रात का समय हाइवे अभी बन रहा था जगह-जगह डाइवर्ज़ंन रात में ट्रके चलती हैं वो भी नशे में धुत होकर चलाते हैं चिंता बढती जा रही थी बजरंगी तो जैसे हवा से बातें करने लगा हम ड्राइविंग सीट के पीछे बैठे थे कार्तिकेय का सर हमारी गोद में था क्योंकि कार्तिक सो रहे थे प्रंकित आगे ड्राइवर के बगल में बैठे थे | जैसे-जैसे बजरंगी का नशा चढ़ता जा रहा था कार की स्पीड और बढती गई राईट को गया तो ट्रक आ रही थी चूँकि डाईवर्जन था इसलिए ट्रक भी इधर ही आ रही थी फिर लेफ्ट को ले लिया इतनी स्पीड में कार थी उसने क्या सोच कर लेफ्ट लिया मालूम नहीं शायद ट्रक से टक्कर को बचाने के लिये पर लेफ्ट साइड में अँधेरा था आगे क्या कुछ मालूम नहीं कार इतनी जोर किसी चीज़ से टकराई कार्तिकेय हमारी गोद से नीचे गिर गया और उसका सर ड्राइविंग सीट के नीचे चला गया उसे निकालने के लिये हम नीचे झुके मेरा राईट शोल्डर ड्राइविंग सीट से भिड गया पर कार्तिक का सर हाथ से निकाल कर उसे ऊपर किया और गाड़ी तो अभी टकराती जा रही थी आगे अभी देखा नहीं था क्या हो रहा है बस प्रंकित की आवाज़ सुनाई दी !ओह गौड ! जब आगे देखा तो प्रंकित का पूरा चेहरा खून से भरा हुआ,बजरंगी स्टेयरिंग पर औंधा पड़ा कान इकदम शून्य हो गये थे सायं-सायं कार की पूरी छत टूट कर आगे गिर गयी थी कार्तिक तो बेहोश था नाक से खून बहा जा रहा था प्रंकित बाहर निकला उसका सफ़ेद कुरता पूरा लाल खून आ कहाँ से रहा है मालूम नहीं जब कार्तिक को गोद उठाने के लिये राईट हैण्ड आगे बढाने की कोशिष की हाथ ही नहीं हिला लेफ्ट से उसे गोद में लिया कार का दरवाज़ा तो अपने आप खुल गया था लेफ्ट साइड का प्रंकित ज़ख़्मी होते हुवे भी हमें उतरने में मदद की पर बाहर निकल कर खड़े नहीं हो पाए धडाम से कार की सीट पर ही गिर गये गश व चक्कर आ गया फोन तो हाथ में ले लिया था लेटे-लेटे बाई हाथ के अंगूठे से डैडा यानि dada  टाइप किया सबसे आसानी से जो नम्बर मिल सके प्रंकित के डैडी का नम्बर अँधेरे में कुछ दिख तो रहा नहीं था पर भगवान की कृपा से नंबर लग गया पद्मेश जी ने फोन उठा लिया हम इतना ही बोल पाए घर से किसी को भेजिए एक्सीडेंट हो गया है इमरजेंसी है और आप तुरंत कोई फ्लाईट ले कर आ जाइए कार्तिक का कुछ समझ में नहीं आ रहा है इतना ही बोल पाए फिर आँख बन्द होने लगी प्रंकित ने हमें हिला कर आँख खोले रखने को कहा बोला मम्मा तुम किसी भी कीमत पर आँख मत बन्द करना खोले रहो..फिर सीट पर से उठाने की कोशिष करने लगा उसे डर था कि हम बेहोश न हो जाये हम उठ तो गये जैसे झूम रहे हों कार का सारा पेट्रोल भी गिर रहा था बस किसी तरह से कार से दूर होने का प्रयास करने लगे एवं हाइवे पर डर कि इतनी गाडियाँ आ रहीं है फिरसे टक्कर न मार दे तबतक काफी लोग इकत्रित हो चुके थे रसौली गाँव के आस-पास के थे सभी उन लोगों को देखकर फिर मन भयभीत हो गया थोड़ी बहुत ज्वेलरी भी पहन रखे थे उस समय क्या मनोदशा हो रही थी ब्रेन सिर्फ खराब सोच रहा था कुछ भी अच्छा नहीं एक माँ दो बच्चों के साथ बिल्कुल असहाय बीच सड़क पर रात में दुर्घटना ग्रस्त हो पड़ी है क्या करे क्या न करे बड़े बेटे का खून बहा जा रहा है छोटा बेटा जग नहीं रहा कोई मानसिक स्थिति का अंदाज़ा लगा सकता है भला .. , पर कहा गया है न कि अच्छा किया कहीं जाता नहीं है वहाँ जितने भी लोग इकत्रित हुवे थे सभी भले सज्जन थे वो लोग जल्दी-जल्दी हमलोगो को कार से अलग करने का प्रयास करने लगे कार्तिक को एक ने गोद में उठा लिया और आगे-आगे चलने लगा हमने उसे चीखकर रोका भी कि कहाँ मेरे बच्चे को लिये जा रहे हो उसने मेरी एक न सुनी हमें भी कुछ लोगों ने पकड़ कर जल्दी –जल्दी ले जाने लगे फोन भी उन्ही लोगों ने ले लिया अब सबके फोन भी आने लगे वही लोग रिसीव भी किये इतना ही सुन पाए कहते हुवे कि ड्राइवर नहीं बचा है और छोटे बच्चे की हालत सीरियस है हम इतना सुन कर जोर-जोर से रोने लगे हरे राम ये क्या हो गया प्रंकित को भी वही लोग पकड़ के चल रहे थे रोड क्रोस करा कर नीचे गाँव में ले गये एक डाक्टर के यहाँ वहाँ लाईट नहीं आ रही थी बहुत छोटा सा कमरा था जैसे गांव में होता है उस डाक्टर के पास कोई सामान नहीं था और उसने साफ़-साफ़ कह दिया हम कुछ नहीं कर पाएंगे सब जगह से धडाधड फोन आने शुरू हो गये गोरखपुर से भी हमारे फॅमिली डाक्टर ने उस गांव के डाक्टर से बात कर लिया फिर उसने प्रंकित के फेस से खून साफ़ किया कार्तिक को लिटा दिया गया था और हम हे भगवान हमारे बच्चों को बचा लो हम प्रंकित के डैडी को क्या मुह दिखायेंगे लगातार रोये जा रहे थे सब गांव की बूढी औरतें व बच्चे आ गये थे हाथ से पंखा कर रहीं थीं हमें चुप करा रहीं थीं चुप हो जा बिटिया धीरज रखो हम उन लोगों को ऐसी दयनीय दृष्टि से देख रहे थे कि जैसे सबकुछ उन्ही लोगों के हाथ में हो लखनऊ से हमारे देवर लोग चल चुके थे गोरखपुर से भी कार से भाई, बहन, बहनोई चल चुके थे फैजाबाद में हमारे मित्र राजीव ओझा जी भी पोस्टेड थे दैनिक जागरण में उन्हें भी घरवालों ने फोन कर दिया जल्दी से जल्दी जो भी पहुँच पाए एस पी सिटी, पुलिस इंस्पेक्टर मिडिया सभी वहाँ डाक्टर के यहाँ पहुँच गये हमलोगों को कार में लेकर बाराबंकी इमरजेंसी हॉस्पिटल ले गये कहा घबड़ाईये नहीं हम आपके गोरखपुर के डाक्टर के रिलेटिव भी है तो अपनी फॅमिली की तरह ही समझिए | हॉस्पिटल में जबतक इन्जेक्शन वगैरह दिया जा रहा था तबतक देवर लोग भी पहुँच गये और उनलोगों से कहा कि हमलोग लखनऊ तुरंत लेकर जा रहे हैं जबतक कार्तिक भी होश में आ गया था इन्जेक्शन से कौन सा दिया मालूम नहीं, प्रंकित का चेहरा अब भी साफ़ नहीं था खून आता जा रहा था मेरी चिंता भी बढती जा रही थी जितना केयर वो लोग कर पाए कर दिए थे इंजेक्शन से थोड़ी राहत मिली थी फिर देवर लोग अपनी गाड़ी में लेकर वहाँ हमारी कार के पास आये देखा वहाँ पूरी पुलिस फ़ोर्स लगी है कार तक जाना संभव नहीं था फिर एस पी सिटी से परमिशन लेकर कार का सारा सामन देवर ने घर की गाड़ी में लोड करवाया प्रंकित का ऐप्पल का लैपटॉप,आइपॉड पर्स सब सुरक्षित था ड्राइवर के बारे में पूछा तो वहाँ के लोगों ने बताया कि वो जिन्दा था बेहोश हो गया था पुलिस को देखकर किसी तरह भाग गया हमने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया कि ड्राइवर बच गया | हमलोगों को लखनऊ पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा हॉस्पिटल ले जाये गये पता चला दाहिनी हाथ में फ्रैकचर है दाहिने पैर में दो तीन जगह से खून रिस रहा था प्रंकित का सर ठीक था चेहरा पूरा शीशों से छिल गया था नाक होंठ गर्दन मुह के अंदर तक महीन शीशे घुस गये थे एक साइड का पूरा आइब्रो गायब हो गया था उसके कपड़े उतरवा दिए गये कार्तिक का चेकअप हुआ उसे नाक के अंदर कहाँ चोट लगी है समझ नहीं आ रहा था अभी तो सबका जांच होना बाकी था | हमलोग घर लाये गये सभी लोग इकट्ठे हो गये सभी अपनों को देखकर फिर रो पड़े बाबू जी मम्मी जी (सास,ससुर )व घर के अन्य सदस्य सभी सांत्वना देने लगे कि चलो जान बच गई तुम सब सुरक्षित घर आ गये भगवान का लाखों शुक्र है बड़े चाचा ससुर जी कार्तिक के पास ही लेट गये उसे सदमें से बाहर लाने का प्रयास करने लगे कि किसी तरह ये कुछ भी बोले गुमसुम सा पड़ा था डरा व सहमा हुआ हमें छोड़ नहीं रहा था | थोड़ी देर बाद सभी चले गये कि अब तुम लोग आराम करो | हमें कहाँ आराम आने वाला हम तो बस प्रंकित के सिरहाने बैठ कर अपने आप को कोसने लगे कि क्यों हमने बच्चों के साथ इतना बड़ा रिस्क लिया मौत के मुह में डाल दिया सब मेरी गलती है हडबड तडबड गये और आये किसी की बात नहीं मानी मासूम से बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड किया मेरा इतना सुन्दर राजकुमार जैसा बेटा पूरा चेहरा खराब हो गया सब मेरी वजह से बहुत धिक्कारा अपने आप को और बेटे के चेहरे पर से छोटे-छोटे शीशे अब भी निकल रहे थे उन्हें बीनकर टेबल पर रखते जा रहे थे बिना पलक झपके जैसे अब कुछ होने न देंगे अपने बच्चों को चाहे कुछ हो जाये तीन बजे बहन का फोन आया कि हमलोग तुम्हारी कार तक पहुँच गये हैं और सब देख रहे हैं कार देखकर तो लग ही नहीं रहा है कि इसमें कोई बचा होगा बेबी, साक्षात नानी ने तुम लोगों की जान बचाई है | उसने कहा अपनी ज्वेलरी सब चेक कर लो कुछ कार में रह तो नहीं गया ..हमने कान देखा तो एक बाली नहीं थी एक सेट फोन भी नहीं था ..उन लोगों ने बहुत ढूंडा नहीं मिला पर कार से स्पीकर, स्क्रीन जो अभी कुछ दिन पहले ही लगवाया था कार्तिक के लिये, कार के पेपर्स वगैरह निकाल कर ले आये लगभग पाँच साढ़े पाँच तक वो लोग घर आ गये घर आकर शब्बो ने बताया कि जब गांव वालों ने कार्तिक की हालत बताई तो अम्मा व हम सब, नानी के फोटो के सामने हाथ जोड़कर रोने लगे कि हे नानी बचा लो कार्तिक को ..... ! चलो अब तुम चिंता मत करो हमलोग आ गये है और अब तुम थोड़ी देर के लिये सो जाओ | कितने घंटों से आँख ने एक झपकी तक नहीं ली थी सो थोड़ी देर के लिये नींद भी आ ही गई | फोन की घंटियों से नींद खुल गई एकदम से उठना चाहे पर अपने आप को हिला भी नहीं पाए सारी रिब्स जैसे अकड़ गई हों हाथ और कंधा तो उठा ही नहीं मेरी चीख सुनकर और सब भी उठ गये सभी अख़बारों में न्यूज़ आ गई थी हर जगह से फोन आने शुरू हो गये लोग भी आने शुरू हो गये |हमारी हालत देखकर हमारे भाई बहन व बहनोई ने यह निर्णय लिया कि सभी को वापस गोरखपुर ले चला जाये वही अच्छे से देखरेख हो पायेगी वर्ना अकेले दोनों बच्चों के साथ ये क्या कर पाएंगी फिर उन्ही रास्तों से होकर गुजरना मन में इतना बुरा-बुरा ख्याल आ रहा था कि जैसे काल ने घेर रखा है फिर बुलावा भेजा है रही सही कसर पूरी निकालने के लिये..पर अपने हाथ में कुछ था नहीं और हमारा ब्रेन अभी कुछ भी सोचने समझने कि स्थिति में नहीं था बुरी तरह से सदमे में था सबलोग साथ थे धीरे-धीरे संभाल कर चला रहे थे कि कोई जर्क न पड़े प्रंकित के चेहरे को धूप से भी बचाना था कार्तिक तो गुमसुम था ही हम तीनों को कहाँ कहाँ चोटें आईं हैं ये भी नहीं पता था जब असहनीय दर्द होता तब मालूम पड़ता | शाम तक गोरखपुर पहुँच गये |
        इतना अच्छा लग रहा था इतने सुरक्षित महसूस कर रहे अब लग रहा था कि मेरी जिम्मेदारी खत्म ये लोग सब देखभाल कर लेंगे,  दूसरे दिन से सारी टेस्टिंग वगैरह शुरू हो गयी रिब्स में कई जगह चोटें आ गयी थीं राईट शोल्डर की बोन डिसलोकेट हो गयी थी एवं उसी बांह में फ्रैक्चर भी था धुन्सी हुई चोटें कई जगह आईं थीं प्रंकित को भी कई जगह चोटें आई थीं उसके चेहरे की पूरी सफाई हुई बहुत सारे शीशे अब भी चिपके हुवे थे कई घंटे तक निकाले गये धूप से बचना, पसीने से बचना बहुत सारी हिदायतें सबको अपनाते हुए हम लोग वहाँ डेढ़ दो महीने बिताए, वही कहावत मेरी छोटी बहन वंदना कहती रहती जब भी हम रोते ..कि “ ये दिन भी गुज़र जायेगा “ पिताजी से पूछते कि क्यों ऐसा हुआ पिता जी ..तो वो कहते कि देखो तुम इतना हडबडाई थी एक टेस्ट बचाने के चक्कर में सारे ही छूट गये कभी-कभी बड़ों की बात मान लेनी चाहिए चलो इसे भी भगवान का प्रसाद मान कर ग्रहण करो जो होना था वो तो हो गया आगे से घ्यान रखना बच्चों को लेकर थोड़ा सावधानी बरता करो अब उनकी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है भगवान ने बचा लिया कि कुछ नहीं हुआ जिस हिसाब से ये लोग गाड़ी की हालत बता रहे हैं सुनकर रोआं काँप जाता है अब सब चिंता छोड़कर आराम करो | हम तो रात में जब आँख बन्द करके सोने चलते तो कानों में वही गाड़ी की चरमराती हुई आवाज़ सुनाई पड़ती और पैर अपने आप नींद में ही उठ जाते ब्रेक लगाने के लिये, सदमा सोने नहीं देता....यह प्रक्रिया बहुत दिनों तक चलती रही | वहाँ सभी ने बहुत सेवा की खूब अच्छी देखभाल की | थोड़ा ठीक होने पर वापस भाई के साथ लखनऊ आ गये दिल बेहद कमज़ोर हो चुका था बहुत कुछ छूट चुका था भात्खंडे भी एवं दूरदर्शन भी हमारी प्रिय कार हमसे बिछड चुकी थी पर इतना सब होने के बाद भी हम अपने बच्चों के साथ थे उनके पास थे और आगे से बच्चों के साथ कभी भी कोई भी रिस्क न लेने का प्रण कर चुके थे एवं अपने से बड़ों का कहना ज़रूर मानेंगे | वो दिन था और आज का दिन अब वापस उसी हाथ से सितार भी बजाने लगे और फिरसे ड्राइव करने लगे हैं भगवान का एवं हमारे सभी शुभचिंतकों का लाख लाख शुक्र है हम सब सही सलामत हैं | दोस्तों आप सभी को चाहे कितना भी ज़रूरी क्यों ना हो कभी भी ओवर स्पीड मत करियेगा और हो सके तो अपनी कार खुद ही चलाइए अपने पर भरोसा ज्यादा भला होता है मेरा बेटा आखिर तक कहता रहा मम्मा हमदोनो मिलकर आधे-आधे रस्ते चला लेंगे किराये का ड्राइवर न लो पर हमने उसकी बात बच्चा समझ कर नहीं मानी जिसका नतीजा भुगत चुके | अच्छी बुरी सभी यादों को सहेजने की हमारी प्रक्रिया आप सभी को कैसी लगती है अपनी राय अवश्य दीजियेगा | हम रहें न रहे हमारी बातें ज़रूर रह जाएँगी जो गलतियाँ 
हमने की इसे पढ़ने के बाद कम से कम कोई और दुहरायेगा तो नहीं !!         
       
               शुभकामनाओं के साथ आप सभी की अपनी 
                                       प्रीति         

                      यहाँ कुछ फोटोग्राफ़्स हैं ..
       इस तस्वीर में, नानी को देखने सफ़र से सीधा हॉस्पिटल पहुंचे ... 



 
                       स्वर्गीय 'प्रिय नानी'                                          

Tuesday 31 January 2012

संस्मरण,लन्दन का वह पहला दिन.....


 हमारा पहला सफ़र हिन्दुस्तान से बाहर जाने का, इंग्लैंड में बसे एक छोटे से शहर लन्दन का...........
                                                                                                                                                        विवाहोपरान्त अपने पति महोदय के साथ सात समन्दर पार... जाना, जहाँ उनका निवास-स्थल था वेस्ट-केंसिंग्टन में जो कि सेन्ट्रल लन्दन में था | सन १९९१ की जनवरी..... पहली बार हवाई जहाज में बैठना,इतनी ऊँचाई पर उड़ना जिसकी कभी कल्पना नहीं की थी सपने में भी नहीं सोचा था....सिर्फ नौ घंटे में लन्दन वो भी दिल्ली  से सीधा इंदिरागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लन्दन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर ... | सब कुछ विधिवत हो रहा था सामान आ गया ब्लैक कैब यानि कि बड़ी टैक्सी सारा सामान टैक्सी ड्राइवर ने सेट कर दिया हमदोनो बैठ गये और टैक्सी चल पड़ी .....बादलों से घिरा हुआ आकाश, हल्की-हल्की रिमझिम फुहार....ठंडी-ठंडी हवाएं....बस मन हो रहा था टैक्सी की खिडकी खोले ही रहूँ और चेहरे से ठंडी हवाएं बूँदों के साथ टकराती रहें..... | हमने पूछा अपने पतिदेव से कि आज बदली है क्या यहाँ पतिदेव ने कहा नहीं आज ही नहीं यहाँ हमेशा ऐसा ही रहता है बहुत ठंडा मौसम रहता है | मुझे तो कुछ खास मालूम नहीं था लन्दन के बारे में जौग्रफी थोड़ी कमज़ोर रही है मेरी, ब्रिटेन,इंग्लैण्ड,यूनाइटेड किंगडम,योरप,लन्दन सब एक ही समझते थे रहते-रहते मालूम हुआ क्या, क्या है...| जब टैक्सी सड़क पर दौड़ रही थी,जैसे लग रहा था कि ग्रे कलर की कारपेट पर ब्लैक कलर की ट्वाय कार चल रही है कहीं कोई घड़घड़ाहट या आवाज नहीं कितनी गाडियाँ चल रही थीं सड़क पर लेकिन कहीं कोई आवाज़ नहीं बस भागती जा रहीं थीं सरपट किसी को किसी से कोई मतलब ही नहीं कहीं कोई ट्रैफिक पुलिस भी नहीं,सभी ट्रैफिक सिग्नल को फौलो करते हुए चले जा रहे थे जगह-जगह स्पीड लिमिट का साइन बना हुआ था सभी उसी हिसाब से स्पीड में गाडियाँ चला रहे थे एयरपोर्ट से फ़्लैट तक जाने में काफी टाइम लग गया | पतिदेव ने कहा कि यहाँ ज़्यादातर लोगों का टाइम गाड़ियों में ही बीतता है, एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचने में डिस्टेंस काफी होता है कोई शोर्टकट भी नही होता है इंडिया की तरह कि अंदर ही अंदर गली गली निकल लो | यहाँ पर कोई रूल्स ब्रेक नहीं करता, ओवर स्पीड नहीं करता, ट्रैफिक सिग्नल में ही कैमरे लगें होते हैं, जिसने भी रूल तोड़ा तुरंत उसकी फोटो खिंच जायेगी और पुलिस तुरंत पकड़ती है फिर जुर्माना बहुत लंबा भरना पड़ता है | 
                फ़्लैट आ चुका था हम लोग कैब से उतरे टैक्सी ड्राईवर ने सामान सब निकाल दिया उसका जितना भी किराया हुआ था, दे दिया गया, वह चला गया | फ़्लैट के बाहर का मेन डोर जिससे और लोग भी अंदर जाते हैं, कईं फ़्लैट थे उसमें, ऊपर और बेसमेंट में, हम लोगों का ग्राउंड फ्लोर पर था | मेन डोर पर ही इलेक्ट्रौनिक बटन लगे थे, जिसके फ़्लैट में जाना हो, वो नंबर दबा दो, अंदर यदि कोई है तो वह फोन उठा कर पूछता है, कौन है, जो भी होता है बता देता है, तो वह अंदर से ही स्विच दबाता है, बाहर वाला डोर खुल जाता है, फिर ऑटोमेटिक्ली लॉक हो जाता है चूँकि मेरे पति जी का फ़्लैट तो खाली था तो बेल बजाने का कोई मतलब नहीं इसीलिए चाभी से बाहर का दरवाजा खोला दाहिनी तरफ रैक पर पतिदेव के नाम की खूब सारी पोस्ट रखी थी आगे चलकर बायीं हाथ पर फ़्लैट का दरवाज़ा था एवं सीधे एक जीना गया था जो कि ऊपर के फ्लैट्स के लिये था,सब पूरा कार्पेटेड था एक पल को मन में आया कि चप्पलें उतार कर चलें क्या,फिर देखा पति महोदय जूते पहने हुए ही फ़्लैट का दरवाज़ा खोल रहे हैं,दरवाज़े के बाहर खूब सारे नये काले पौलिथिन बैग पड़े थे नीचे कारपेट पर,हमने पूछा ये क्या है तो उन्होंने कहा,कूड़ा फेंकने के लिये...बड़ा आश्चर्य हुआ...खैर अंदर घुसे सामने ही छोटा सा टॉयलेट जिसमे बाथटब था, कमोड व वाशबेसिन सब सफ़ेद रंग का चमचमाता हुआ,उस बाथरूम में भी कारपेट लगा था ग्रे कलर का हमने पूछा यहाँ कैसे कोई नहायेगा उन्होंने कहा टब में शॉवर लिया जाता है कर्टन लगाकर ...| उसके बगल में बायीं हाथ पर गलियारे नुमा ओपन किचेन था वहाँ कारपेट नहीं वुडेन फ्लोर थी | सबकुछ उसमे फिक्स था छोटा सा डिशवॉशर,माइक्रोवेव,फ्रिज कुकिंगरेंज चिमनी के साथ लगा था,कई कबर्ड्स थे छोटे-छोटे,एक छोटा सा बेंत का बना रैक टंगा था जिसमे छोटी-छोटी शीशियाँ मसालों की लगी थीं किचेन के बाद  ड्राइंग रूम में ग्रे सोफा,ग्रे पर्दा,डाइनिंग टेबल,सेन्ट्रल टेबल व एक चेस्टड्रोर थी जिसमे छोटा सा बार भी बना था कुछ बुक्स रखे थे एवं सिल्वर के शो पीसेज सजे थे सब कागज़ी वॉल थी जिस पर दो वुडेन फ्रेम एक माँ सरस्वती की व एक श्री गणेश भगवान की थी | वापस पैसेज में घूम कर दूसरी तरफ मास्टर बेडरूम था जिसमे कैबिनेट के साथ ही ड्रेसिंग टेबल भी लगा था डबल बेड भी दोनों साइड से छोटी-छोटी कैबिनेट्स के साथ फिक्स थी सफ़ेद रंग का सारा सेट था | बगल में एक सिंगल रूम था जिसे पति महोदय ने कंप्यूटर टेबल, चेयर वगैरह लगाकर ऑफिस बना रखा था पैसेज में ही वाशिंग मशीन की जगह दी हुई थी जिसमे मशीन फिक्स थी | फ़्लैट गन्दा बिल्कुल नहीं था बस बेडरूम में इनके कपड़े थोड़े बहुत फैले थे कुछ बेड पर पड़े थे ग्रे कलर की चादर बिछी थी | सब दिखने के बाद पति जी ने कहा मेरे इस छोटे से फ़्लैट में तुम्हारा स्वागत है ...कोई होता तो आरती उतारता पर तुम्हे आते ही मेरे साथ सब सफाई करवानी पड़ेगी | एक डेढ़ महीने से बन्द पड़ा था पति जी शादी के लिये इंडिया जो आ गये थे |
                         अच्छा लगा सब कुछ क्यूट सा, सारी फैसिलिटी थी इतनी छोटी सी जगह में दुनिया का सारा सुख | खिड़कियों के नाम पर खूब बड़े-बड़े शीशे लगे थे बिना किसी जंगले व जाली के पर्दा हटाओ तो पूरा नज़ारा देखो बाहर का | सबसे पहले तो चाय चहिये थी मुझे सो बनाई पति जी के लिये कॉफी बनाई दोनों ने बैठकर पिया फिर सब सामान सेट किया गया | शादी के बाद अभी तक तो इंडिया में कुछ बनाया नहीं था पहली बार लन्दन में ही बनाया कॉफी तो पसंद आ गई थी पतिदेव को ...फिर वो सब्जी व थोड़ा राशन लेने चले गये पास ही में एक ग्रोसरी शॉप थी किसी इंडियन की वह सब हिन्दुस्तानी मसाले,राशन वगैरह रखते थे | सामान लेकर आये पति जी व बोले कि चावल,दाल व आलू टमाटर का लुटपुटा खायेंगे दाल गाढ़ी व खूब जीरे से छौंकी हुई | बनाने में थोड़ा संकोच हो रहा था कि न जाने कैसा बने मिर्च,नमक कम ज्यादा न हो जाये पतिदेव जी तो लहसुन प्याज भी नहीं खाते,चाय भी नहीं पीते ...| खाना जबतक बन रहा था वो अपना सारा पोस्ट चेक करने लगे ज्यादातर शादी की बधाइयाँ थीं साथ ही टेलीफोन पर ऑन्सरिंग मशीन में मैसेज भी सुनते जा रहे थे सभी शुभकामनाएँ एवं कब लौटोगे यही बोल रहे थे दो तीन मैसेज तो इंडिया के ही थे बाबूजी के व देवर जी के कि पहुँचते ही खबर करो बहू ठीक है न |
                               खाना बन गया पूरे फ़्लैट में दाल छौंकने की महक भर गई | हमदोनो ने साथ खाना खाया पतिदेव तो तारीफें करते नहीं थक रहे थे कि कितना टेस्टी खाना बनाई हो ...लग रहा है सालों बाद अच्छा इंडियन खाना खाया हूँ खूब ओवरईटिंग हो गई...हमें भी बहुत अच्छा लग रहा था अपने हाथ का खाना खुशी भी हो रही थी कि बना लिया ठीक-ठाक | खाने के बाद पति जी ने कहा कि अभी लन्दन में किसी को नहीं बताएँगे कि हमलोग आ गये हैं इंडिया फोन करके बता दे रहे हैं फिर ऑन्सरिंग मशीन लगाकर हमलोग सो जाएंगे थकान लग रही है हैवी खाना खाने के बाद नींद तो आनी ही है ...खैर हमलोग जो दोपहर को सोये ...तो दूसरे दिन दोपहर में ही उठे जेट लैग लेकर ...............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!                                 

Sunday 11 December 2011

श्रद्धांजलि

Late Dr Lakshmi Mal Singhvi 
क्यों चले जाते हैं अक्सर वो लोग,इस जहाँ को छोड़कर
जहाँ जिसे छोडना नहीं चाहती,खोना नहीं चाहती 

नम करती आँखें और बहुत कुछ कहती ये बातें........ ...... ...


लन्दन में भारत के उच्चायुक्त महामहिम 
स्वर्गीय डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी का दौर~~
                                              एक ऐसा दौर जो कभी विस्मृत नहीं हो सकता, भुलाये नही भूलता एक ऐसी हस्ती, ऐसी विभूति जो सबके लिये सम्माननीय रही, पूज्यनीय रही |सहज, सरल, उदार, साधारण सा व्यक्तित्व,प्रतिभाओं के धनी ओजस विचार वाले,स्वभाव में आत्मीयता ऐसे धीर पुरुष जो 'युग-पुरुष' कहलाएं बिरले ही होते हैं | 'महामहिम' उनकी ऊँची पदवी से नहीं वरन उनकी महानता के कारण कहलाते थे वह..., आज हम सब के बीच नहीं रहे | वह अपने-आप में ही एक ऐसी संस्था थे, एक ऐसा मार्गदर्शक थे जो 'स्व' में सीमित नहीं रहे बल्कि लन्दन में बसे सभी भारतवासियों के ह्रदय में बसे थे,समाहित थे, उनकी कमी शायद ही कोई भर पाए | जो-जो कार्य लन्दन में उन्होंने किये चाहे सामाजिक कार्यक्रम हो, धार्मिक हो, राष्ट्रीय हो या फिर पारिवारिक हो हर कार्यक्रम में वह सक्रिय होकर उपस्थित होते थे, अस्वस्थ होते हुए भी पधारते जरुर थे और सबसे अच्छी बात यह थी उनकी कि वो हमेशा आदरणीया कमला आंटी (उनकी धर्मपत्नी) के साथ ही सभी कार्यक्रमों में आते थे एवं समय के पाबंद थे ठीक समय पर आते थे | आप दोनों के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने वाली बात होगी पर दिल कहे बिना,लिखे बिना मानता ही नहीं | श्री सिंघवी जी के पी. ए., हिन्दी ऑफिसर के पद पर नियुक्त,  स्वर्गीय डा.सुरेन्द्र अरोड़ा वह भी बहुत सम्माननीय कहलायेंगे जो अब वह भी हम सब के बीच नहीं रहे...| डा.सिंघवी व कमला आंटी की बात बिना अरोड़ा अंकल के पूरी नहीं होती अधूरी सी लगती है | एक ऐसा सच्चा सेवक, मालिक भक्त, उतने ही उदार, सज्जन सहृदय जो आज के समय  में मिलना असंभव सी बात लगती है | कोई याद करे न करे पर इनलोगों की छाप ह्रदय पर ऐसी पड़ी है जो सदैव अमिट रहेगी वो भी लन्दन जैसे शहर में जहाँ अपने अपनों को भुला देते हैं जहाँ अपने देश 'भारतवर्ष' की माटी की सुगंध भी कुछ सफल व बुलंदियों को छूने वाली हस्तियों को पसंद नहीं आती, वहाँ उन तमाम सफलताओं को हासिल करने के पश्चात एवं आकाश की ऊँचाइयों को छूने के पश्चात भी एक सहज,सरल,साधारण एवं आत्मीय बने रहना, जन-जन के ह्रदय में बसे रहना बहुत बड़ी बात है,सबसे बड़ी उपलब्धि है | इन बड़ी बातों के लिये श्री सिंघवी जैसी शख्सियत ने छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा | वह भीड़ में आते तो थे पर उन्होंने भीड़ को कभी भी भीड़ समझकर नहीं देखा वो भीड़ उनका परिवार बन जाती थी हर एक की उपस्थिति उनके लिये मायने रखती थी  भीड़ में वह बहुत बड़े आदमी बन कर कभी नहीं आये उनकी सादगी, उनका प्रेम भरा ह्रदय हर नज़र से मिलता था | जबतक लन्दन में उनका दौर रहा वह कार्यक्रमों के अधीष्ठाता होते थे, संरक्षक होते हुए भी आयोजक बन जाते, व्यवस्थापक बन जाते और आतिथ्य सत्कार में जुट जाते |
                                                   उन लोगों ने हमें व हमारे पति श्री पद्मेश गुप्त जी को बहुत प्यार व दुलार दिया | हमे याद है जब हमारे बड़े सुपुत्र चिरंजीव प्रंकित जी का जन्म १९९३ में लन्दन में हुआ तो हमने उन्हें  भी आमंत्रित किया था श्री सिंघवी जी ने उस आमंत्रण पत्र पर प्रिय प्रंकित के नाम के साथ हमारा व पद्मेश जी का नाम जोड़कर बड़ी सुन्दर सी दो पंक्तियाँ लिखकर हमारे पास भिजवाई थी....  
Dr. Preeti Gupta, Prankit Gupta, Mrs. Kamla Singhvi
and Late Shri Kanhayan Lal Nadan
      !!  प्रंकित अंकित प्रीत धरा पर    
       मुकुलित पद्म वसुंधरा पर .  !!   
                                                                                                                        ये थी उनकी सहजता जो बड़ी आसानी से एक आम आदमी के ह्रदय में जगह बना ले | जब भी उनके निवास-स्थल पर   'काव्य-गोष्ठी', श्रीकृष्ण- जन्माष्टमी या कोई अन्य कार्यक्रम होता उसमे वह जगह के हिसाब से उतने ही लोगों को आमंत्रित करते जितने आराम से बैठ सकें | हर व्यवस्था हर सुविधा का ख्याल रखा जाता और भोजन बिल्कुल शुद्ध शाकाहारी बिना लहसुन व प्याज के होता था हमारे पतिदेव लहसुन व प्याज नहीं खाते कमला आंटी इस बात का बराबर ध्यान रखती | अतिथियों का ऐसा आतिथ्य सत्कार करतीं जो लाजवाब था | एक कुशल गृहणी, कुशल पत्नि और कुशल माता होने के साथ-साथ सबसे बड़ी बात एक भारतीय नारी, जो भारत की सभ्यता का प्रतीक थीं वहाँ पर | हर अतिथि की प्लेट में सभी कुछ खाने की सामग्री खुद ही देती थीं कोई रह तो नहीं गया,कोई छूट तो नहीं गया सब खुद ही संभालती थीं | वहाँ इतने सारे नौकर-चाकर होने के बावजूद भी वो खुद ही सभी की देख-रेख करती थीं | जहाँ डा.सिंघवी एक उच्चायुक्त होते हुए भी एक बहुत ही उच्चकोटि के कवि थे वहीँ कमला आंटी भी एक उच्चकोटि की कवयित्री हैं उनकी यह कविता  ''राम मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगी'' बहुत चर्चित रही एवं उनकी प्रिय कविता है | डा.सिंघवी जी की एक रचना बोधगीत जो उन्होंने हमें गाने के लिये कहा था "हिन्दी-सम्मलेन'' के दौरान 'भारतीय विद्या भवन' में एवं 'नेहरु सेंटर' में  हमने गाया था उसकी दो लाइनें हैं....
         !! कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा 
         हिन्दी है पहचान हमारी,हिन्दी हम सब की परिभाषा    !!       
Dilip Kumar, Late Shri Lakshmi Mal Singhvi, Shri Keshri Nath Tripathi,
Dr Dau Ji Gupta,  Ajitabh Bachchan, Ramola Bachchan and Dr. Preeti Gupta



Late Dr. Lakshmi Mal Singhvi with Sagar ji Maharaj
and Late Dr Surendra Arora

Dr. Padmesh Gupta reciting poetry at
Dr. Singhvi's place
              ये सब स्मृतियाँ हैं जो कभी विस्मृत नहीं हो सकतीं हमेशा-हमेशा के लिये अंकित हो गईं हैं | एक छोटी सी घटना, एक ऐसी अनुभूति जो उनकी आखिरी निशानी बन गई मेरे पास | करीब १२ वर्ष पहले हम भारत आ गये एवं उससे एक दो वर्ष पूर्व वह भी परिवार सहित दिल्ली आ गये थे | २००६ में मेरा पहला काव्य संग्रह ''भावनाओं के रंग'' प्रकाशित हुआ और हमने अपनी एक पुस्तक उन्हें दिल्ली भेज दिया दूसरे दिन ही सायंकाल      डा.सिंघवी अंकल व कमला आंटी का मेरे मोबाइल पर फोन आया बधाई देने के लिये बहुत खुशी हुई इतने सालों बाद हमने उन दोनों लोगों की आवाज़ सुनी दिल भर आया वो बोले कि बेटा हम अस्वस्थ चल रहे हैं वर्ना तुम्हारे किताब के लोकार्पण पर जरूर आते उन दिनों हम गोरखपुर में थे अपनी पी.एच.डी. कम्प्लीट कर रहे थे उहोने हाल-चाल पूछा छोटे सुपुत्र का नाम पूछा ढेरों आशीर्वाद दिया फोन पर ही हमने समीक्षा के लिये कहा उहोने कहा अभी तो पुस्तक हाथ में है तुरंत मिली है पूरी पढकर फिर लिखेंगे इतने दिनों बाद बातचीत करके बहुत अच्छा लगा | १० दिन बाद जब  हम लखनऊ आ गये पता चला की उनका एक पत्र आया है जिसमे उन्होंने पुस्तक की चर्चा की है एवं अपनी अस्वस्थता के बारे में लिखा है कुछ दिनों पश्चात एक और पत्र आया उनके लेटर-हेड पर जिसमे उन्होंने बहुत ही भावुकता से मेरे पुस्तक की समीक्षा लिखी है बहुत ही मार्मिक ढंग से, ह्रदय से पढ़ी है मेरी पुस्तक ....| हम उनको  धन्यवाद कहने के लिये सोच ही रहे थे और हिन्दुस्तान में  लखनऊ में होते हुए भी हमको उनकी दुखद घटना का पता नहीं चल पाया वो तो मेरे पुत्र प्रंकित ने लन्दन से ढाई बजे रात में फोन पर बताया कि मम्मा तुम्हे पता है सिंधवी अंकल की डेथ हो गई है हमने कहा अरे नहीं बेटा तुम किसी और को समझ रहे होगे अभी तो हमारी बात हुई थी उनसे...बड़ा ही रिलैक्स होकर कहा हमने ..पर फिर बेटे ने कहा नहीं मम्मा डैडी बहुत दुखी हैं !!!!!! बस इतना सुनना और आधी रात को मेरे मुह से चीख निकल गई हाय राम...और आँसुओं की धारा बह पड़ी...दिल रो पड़ा...एक ऐसे सच्चे इंसान के लिये,एक इतना बड़ा नुक्सान,एक इतनी बड़ी अनुपस्थिति जो कभी भी कोई भी पूरी नहीं कर सकता  उनकी सच्चाई एवं सादगी का, आत्मीयता का, एक अपने होने का एहसास जो न जाने कहाँ से हमलोगों को सफ़र में मिल गये और इतने अपने हो गये इतने प्रिय हो गये जैसे अपने पिता | बस अफ़सोस ये है कि उन्हें धन्यवाद के जगह श्रद्धांजलि देनी पड़ रही है | उनकी याद उनका व्यक्तित्व, उनका काम करने का तरीका ये सब अब उनकी सिर्फ मधुर स्मृतियाँ  हैं जिनका मेरे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाब है और रहेगा, उन जैसा कुछ भी  यदि भविष्य में कर पाऊं तो मेरा जीवन एक सार्थक जीवन बन पायेगा | इस घटना ने मुझे झकझोर के रख दिया और मन के उदगार व्यक्त हो गये ~~~~~
                         '' कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा ''
                              कोटि-कोटि कण्ठों की याद बन गई 
                                   एक अमिट इतिहास बन गई ........शत-शत नमन आपको ...
                                                                                         '' भावभीनी श्रद्धांजलि ''
                                                                                                                                          डा.प्रीति गुप्ता
                                                                                                                                                 लखनऊ