Monday 7 November 2011

!! तलाक !! एक गुज़ारिश...एक अपील....

''तलाक या डिवोर्स" यह शब्द आया कहाँ से ? हमारी संस्कृति या सभ्यता ने कभी ये नहीं बताया, या स्कूलों एवं कॉलेजों में न कभी पढ़ाया गया |पौराणिक ग्रंथों में भी चाहे वो धार्मिक हों,ऐतिहासिक हों कहीं भी इन शब्दों का  जिक्र नहीं है, हाँ सतीप्रथा-बालविवाह का प्रचलन पूर्वजों में था पर 'तलाकप्रथा' तो कभी भी नहीं था जहाँ तक हमें ज्ञात है फिर इस प्रथा को हमारे समाज में बाहरी तत्वों ने लाकर विकसित कर दिया या खुद हमारा समाज आधुनिक फैशन की दौड़ में लग गया और खुद ब खुद अपना लिया ? समाज की बात तो दूर, यहीं तक नहीं इसने तो भारतीय कानून में भी अपना हक जमा लिया एवं कानून भी इस प्रथा को बढ़-चढ़ कर सहायता करने लग गया | आखिर क्यों ? ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई अपने देश में, समाज में या परिवार में ? क्यूँ बढ़ाया जा रहा है इसे ? इससे सिर्फ व्यक्तिगत फायदा या नुक्सान, दोनों ही हो सकता है | फायदा दोनों पार्टियों का कत्तई नहीं हो सकता सिर्फ एक पार्टी फायदे में रहेगी और दूसरी पार्टी नुक्सान सहेगी | बात फायदे या नुक्सान की भी नहीं, बात यह हमारी संस्कृति की है | हम सब भारतीय अपनी संस्कृति व सभ्यता की वजह से ही दूसरे देशों में आदर व प्रतिष्ठा पाते हैं न कि बाहरी फैशन के दिखावे की वजह से | यदि इस प्रथा पर पाबन्दी नहीं लगाई जायेगी तो फिर समाज के लिये कोई जगह ही नहीं बचेगी | एक सभ्य समाज में सिर्फ सभ्य लोगों के ही रहने की इजाजत होती है फिर जब सभी तलाकशुदा होते जाएंगे तो वे सभ्य कहाँ से रहे फिर समाज में उठने-बैठने लायक कहाँ से रहेंगे ? हमारी सरकार से और इस क़ानून को मान्यता देने वालों से विनती है कि कृपया इसे रोका जाय वर्ना आतंकवाद की तरह ये भी फैलता जायेगा | आज यही हो रहा है हर घर में एक 'तलाकशुदा' है | सबसे ज्यादा बच्चों का नुक्सान हो रहा है वो माता-पिता में से किसी भी एक के प्यार से वंचित रह जाते हैं | यदि आपस में सामंजस्य नहीं बना सकते तो क्या रिश्ता तोड़ देना चाहिए ? उनसे जुड़े और लोग भी तो उससे प्रभावित हो सकते हैं सिर्फ दो लोगों के बीच शादी नहीं होती है सिर्फ पति-पत्नी का रिश्ता नहीं बनता है साथ में और भी बहुत सारे रिश्ते बनते हैं जुड़ते हैं जो तलाक के साथ ही वे सारे भी खत्म हो जाते हैं |                              
                                         हम जितने आधुनिक होते जा रहे हैं हमारे रहन-सहन व विचारों में भी फर्क पड़ता जा रहा है मतलब हम चाहे जैसे रहें जियें कुछ भी सही-गलत करें हमें करते रहना चाहिए ? हमारे सही या गलत से क्या हमारे आस-पास का वातावरण दूषित नहीं होता ? या दूसरों पर प्रभाव नहीं पड़ता ? अच्छी बात कोई जल्दी नहीं अपनाता पर गलत चीजें लोग तुरंत अपना लेते हैं | क्या यही आधुनिकपना है कि एक सदस्य आज विवाह करता है विचार मिलते हैं तो ठीक, नहीं मिले तो तलाक फिर दूसरा विवाह फिर तलाक,फिर विवाह फिर तलाक !! मतलब विवाह और तलाक एक मजाक बन कर रह गया है | कोई भी स्त्री-पुरुष समझौता नहीं करना चाहता कारण कि दोनों ही समर्थ हैं दोनों ही कमाऊं हैं एक दूसरे के बिना किसी का काम नहीं रुकने वाला दोनों ही चला लेंगे अलग-अलग | मेरे ख्याल से तो अलग की नौबत ही नहीं आनी चाहिए जहाँ प्यार है दोनों एक हो चुकें हैं तन से व मन से तो अलग कैसे हो सकते हैं सिवाय कि मौत ही जुदा कर सकती है | दोनों को ही कोशिष करनी चाहिए एक दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाने की एवं एक-दूसरे के सम्मान की | चाहे कुछ भी हो जाता अगर ये तलाक का रास्ता ही न बना होता तो शायद कोई मजबूरी में भी यह कदम न उठाता, एक दूसरे को और  ज्यादा समझता, गलतियों को समझता माफ करता जाता तो रिश्तों में और मधुरता आती एवं और भी दृढ रिश्ता होता जाता जितना ज्यादा दोनों साथ रहते,पर अब ये हो ही नहीं सकता क्योंकि एक खुला हुआ रास्ता सामने है हालाँकि गत वर्ष कुछ ठोस नियम व क़ानून बनाये गये हैं रास्ते को थोड़ा कठिन कर दिया गया है लेकिन हर आम आदमी के लिये बंद नहीं किया गया | जहाँ जान-हानि की संभावना हो उनके लिये तो यह मार्ग बिल्कुल सही है वह अपना सम्बन्ध-विच्छेद करा सकते हैं, परन्तु हर छोटी-मोटी बात के लिये, नादानी के लिये एवं ज़रा सी असुविधा के लिये कि जिसे देखो वही तलाक के लिये चला आ रहा है ऐसे इन नादान लोगों के लिये इस रास्ते को बंद करने की जरूरत है इस रास्ते पर चलकर कोई बहुत नेकी नहीं कर रहा है | और भी लोग जंगली होते जा रहें हैं एवं मनमानी करते जा रहे हैं | सबसे ज्यादा तरस उन मासूमों पर आता है जिन्होनें अभी-अभी दुनिया में कदम रक्खा है जब वे मासूम बोलने लायक हुए तो स्कूलों में दोस्तों से कहते हैं " MY PARENTS ARE SEPARATED OR I HAVE SECOND FATHER OR SECOND MOTHER, I AM A CHILD OF DIVORCED PARENTS''......|                                                                                                                  
                                  ये सही नहीं है इसे तत्काल रोका जाना चाहिए | कम से कम माँ-बाप को अपने बच्चों के भविष्य का तो ख्याल रखना चाहिए अपनी ज़िंदगी तो खराब कर ही रहे हैं साथ में उन मासूमों की भी ज़िंदगी की शुरुआत ही बर्बादी के रास्ते पर हो रही है सो कृपया ऐसे लोगों के लिये इस रास्ते को हमेशा-हमेशा के लिये बन्द कर देना चाहिए जब किसी के पास कोई उपाय या ऑप्शन ही नहीं बचेगा तो मजबूरी में उसे वो रिश्ता अपनाना ही पड़ेगा जो सामाजिक एवं पारिवारिक दोनों ही दृष्टियों से उचित है, सम्माननीय है एवं सराहनीय है |              
                                         इस आकांक्षा के साथ कि आने वाला समय बच्चों एवं परिवार में खुशियाँ लाये, बच्चों का भविष्य उनके माता-पिता के आपसी प्यार व सहयोग के संरक्षण में उज्जवल हो एवं स्वस्थ्य समाज का गठन हो |                                                                                                                                                            
                                                                                                           शुभेक्षु.....
                                                                                                                       डा.प्रीति गुप्ता
                                                                                                                           लखनऊ