विवाहोपरान्त अपने पति महोदय के साथ सात समन्दर पार... जाना, जहाँ उनका निवास-स्थल था वेस्ट-केंसिंग्टन में जो कि सेन्ट्रल लन्दन में था | सन १९९१ की जनवरी..... पहली बार हवाई जहाज में बैठना,इतनी ऊँचाई पर उड़ना जिसकी कभी कल्पना नहीं की थी सपने में भी नहीं सोचा था....सिर्फ नौ घंटे में लन्दन वो भी दिल्ली से सीधा इंदिरागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लन्दन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर ... | सब कुछ विधिवत हो रहा था सामान आ गया ब्लैक कैब यानि कि बड़ी टैक्सी सारा सामान टैक्सी ड्राइवर ने सेट कर दिया हमदोनो बैठ गये और टैक्सी चल पड़ी .....बादलों से घिरा हुआ आकाश, हल्की-हल्की रिमझिम फुहार....ठंडी-ठंडी हवाएं....बस मन हो रहा था टैक्सी की खिडकी खोले ही रहूँ और चेहरे से ठंडी हवाएं बूँदों के साथ टकराती रहें..... | हमने पूछा अपने पतिदेव से कि आज बदली है क्या यहाँ पतिदेव ने कहा नहीं आज ही नहीं यहाँ हमेशा ऐसा ही रहता है बहुत ठंडा मौसम रहता है | मुझे तो कुछ खास मालूम नहीं था लन्दन के बारे में जौग्रफी थोड़ी कमज़ोर रही है मेरी, ब्रिटेन,इंग्लैण्ड,यूनाइटेड किंगडम,योरप,लन्दन सब एक ही समझते थे रहते-रहते मालूम हुआ क्या, क्या है...| जब टैक्सी सड़क पर दौड़ रही थी,जैसे लग रहा था कि ग्रे कलर की कारपेट पर ब्लैक कलर की ट्वाय कार चल रही है कहीं कोई घड़घड़ाहट या आवाज नहीं कितनी गाडियाँ चल रही थीं सड़क पर लेकिन कहीं कोई आवाज़ नहीं बस भागती जा रहीं थीं सरपट किसी को किसी से कोई मतलब ही नहीं कहीं कोई ट्रैफिक पुलिस भी नहीं,सभी ट्रैफिक सिग्नल को फौलो करते हुए चले जा रहे थे जगह-जगह स्पीड लिमिट का साइन बना हुआ था सभी उसी हिसाब से स्पीड में गाडियाँ चला रहे थे एयरपोर्ट से फ़्लैट तक जाने में काफी टाइम लग गया | पतिदेव ने कहा कि यहाँ ज़्यादातर लोगों का टाइम गाड़ियों में ही बीतता है, एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचने में डिस्टेंस काफी होता है कोई शोर्टकट भी नही होता है इंडिया की तरह कि अंदर ही अंदर गली गली निकल लो | यहाँ पर कोई रूल्स ब्रेक नहीं करता, ओवर स्पीड नहीं करता, ट्रैफिक सिग्नल में ही कैमरे लगें होते हैं, जिसने भी रूल तोड़ा तुरंत उसकी फोटो खिंच जायेगी और पुलिस तुरंत पकड़ती है फिर जुर्माना बहुत लंबा भरना पड़ता है |
फ़्लैट आ चुका था हम लोग कैब से उतरे टैक्सी ड्राईवर ने सामान सब निकाल दिया उसका जितना भी किराया हुआ था, दे दिया गया, वह चला गया | फ़्लैट के बाहर का मेन डोर जिससे और लोग भी अंदर जाते हैं, कईं फ़्लैट थे उसमें, ऊपर और बेसमेंट में, हम लोगों का ग्राउंड फ्लोर पर था | मेन डोर पर ही इलेक्ट्रौनिक बटन लगे थे, जिसके फ़्लैट में जाना हो, वो नंबर दबा दो, अंदर यदि कोई है तो वह फोन उठा कर पूछता है, कौन है, जो भी होता है बता देता है, तो वह अंदर से ही स्विच दबाता है, बाहर वाला डोर खुल जाता है, फिर ऑटोमेटिक्ली लॉक हो जाता है चूँकि मेरे पति जी का फ़्लैट तो खाली था तो बेल बजाने का कोई मतलब नहीं इसीलिए चाभी से बाहर का दरवाजा खोला दाहिनी तरफ रैक पर पतिदेव के नाम की खूब सारी पोस्ट रखी थी आगे चलकर बायीं हाथ पर फ़्लैट का दरवाज़ा था एवं सीधे एक जीना गया था जो कि ऊपर के फ्लैट्स के लिये था,सब पूरा कार्पेटेड था एक पल को मन में आया कि चप्पलें उतार कर चलें क्या,फिर देखा पति महोदय जूते पहने हुए ही फ़्लैट का दरवाज़ा खोल रहे हैं,दरवाज़े के बाहर खूब सारे नये काले पौलिथिन बैग पड़े थे नीचे कारपेट पर,हमने पूछा ये क्या है तो उन्होंने कहा,कूड़ा फेंकने के लिये...बड़ा आश्चर्य हुआ...खैर अंदर घुसे सामने ही छोटा सा टॉयलेट जिसमे बाथटब था, कमोड व वाशबेसिन सब सफ़ेद रंग का चमचमाता हुआ,उस बाथरूम में भी कारपेट लगा था ग्रे कलर का हमने पूछा यहाँ कैसे कोई नहायेगा उन्होंने कहा टब में शॉवर लिया जाता है कर्टन लगाकर ...| उसके बगल में बायीं हाथ पर गलियारे नुमा ओपन किचेन था वहाँ कारपेट नहीं वुडेन फ्लोर थी | सबकुछ उसमे फिक्स था छोटा सा डिशवॉशर,माइक्रोवेव,फ्रिज कुकिंगरेंज चिमनी के साथ लगा था,कई कबर्ड्स थे छोटे-छोटे,एक छोटा सा बेंत का बना रैक टंगा था जिसमे छोटी-छोटी शीशियाँ मसालों की लगी थीं किचेन के बाद ड्राइंग रूम में ग्रे सोफा,ग्रे पर्दा,डाइनिंग टेबल,सेन्ट्रल टेबल व एक चेस्टड्रोर थी जिसमे छोटा सा बार भी बना था कुछ बुक्स रखे थे एवं सिल्वर के शो पीसेज सजे थे सब कागज़ी वॉल थी जिस पर दो वुडेन फ्रेम एक माँ सरस्वती की व एक श्री गणेश भगवान की थी | वापस पैसेज में घूम कर दूसरी तरफ मास्टर बेडरूम था जिसमे कैबिनेट के साथ ही ड्रेसिंग टेबल भी लगा था डबल बेड भी दोनों साइड से छोटी-छोटी कैबिनेट्स के साथ फिक्स थी सफ़ेद रंग का सारा सेट था | बगल में एक सिंगल रूम था जिसे पति महोदय ने कंप्यूटर टेबल, चेयर वगैरह लगाकर ऑफिस बना रखा था पैसेज में ही वाशिंग मशीन की जगह दी हुई थी जिसमे मशीन फिक्स थी | फ़्लैट गन्दा बिल्कुल नहीं था बस बेडरूम में इनके कपड़े थोड़े बहुत फैले थे कुछ बेड पर पड़े थे ग्रे कलर की चादर बिछी थी | सब दिखने के बाद पति जी ने कहा मेरे इस छोटे से फ़्लैट में तुम्हारा स्वागत है ...कोई होता तो आरती उतारता पर तुम्हे आते ही मेरे साथ सब सफाई करवानी पड़ेगी | एक डेढ़ महीने से बन्द पड़ा था पति जी शादी के लिये इंडिया जो आ गये थे |
अच्छा लगा सब कुछ क्यूट सा, सारी फैसिलिटी थी इतनी छोटी सी जगह में दुनिया का सारा सुख | खिड़कियों के नाम पर खूब बड़े-बड़े शीशे लगे थे बिना किसी जंगले व जाली के पर्दा हटाओ तो पूरा नज़ारा देखो बाहर का | सबसे पहले तो चाय चहिये थी मुझे सो बनाई पति जी के लिये कॉफी बनाई दोनों ने बैठकर पिया फिर सब सामान सेट किया गया | शादी के बाद अभी तक तो इंडिया में कुछ बनाया नहीं था पहली बार लन्दन में ही बनाया कॉफी तो पसंद आ गई थी पतिदेव को ...फिर वो सब्जी व थोड़ा राशन लेने चले गये पास ही में एक ग्रोसरी शॉप थी किसी इंडियन की वह सब हिन्दुस्तानी मसाले,राशन वगैरह रखते थे | सामान लेकर आये पति जी व बोले कि चावल,दाल व आलू टमाटर का लुटपुटा खायेंगे दाल गाढ़ी व खूब जीरे से छौंकी हुई | बनाने में थोड़ा संकोच हो रहा था कि न जाने कैसा बने मिर्च,नमक कम ज्यादा न हो जाये पतिदेव जी तो लहसुन प्याज भी नहीं खाते,चाय भी नहीं पीते ...| खाना जबतक बन रहा था वो अपना सारा पोस्ट चेक करने लगे ज्यादातर शादी की बधाइयाँ थीं साथ ही टेलीफोन पर ऑन्सरिंग मशीन में मैसेज भी सुनते जा रहे थे सभी शुभकामनाएँ एवं कब लौटोगे यही बोल रहे थे दो तीन मैसेज तो इंडिया के ही थे बाबूजी के व देवर जी के कि पहुँचते ही खबर करो बहू ठीक है न |
खाना बन गया पूरे फ़्लैट में दाल छौंकने की महक भर गई | हमदोनो ने साथ खाना खाया पतिदेव तो तारीफें करते नहीं थक रहे थे कि कितना टेस्टी खाना बनाई हो ...लग रहा है सालों बाद अच्छा इंडियन खाना खाया हूँ खूब ओवरईटिंग हो गई...हमें भी बहुत अच्छा लग रहा था अपने हाथ का खाना खुशी भी हो रही थी कि बना लिया ठीक-ठाक | खाने के बाद पति जी ने कहा कि अभी लन्दन में किसी को नहीं बताएँगे कि हमलोग आ गये हैं इंडिया फोन करके बता दे रहे हैं फिर ऑन्सरिंग मशीन लगाकर हमलोग सो जाएंगे थकान लग रही है हैवी खाना खाने के बाद नींद तो आनी ही है ...खैर हमलोग जो दोपहर को सोये ...तो दूसरे दिन दोपहर में ही उठे जेट लैग लेकर ...............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
bahut hi khubsurat shabd chitra hai yah apka, dal ki chhok abhi bhi mai mahsus kar raha hu,
ReplyDeletewah har baar aapki post padhkar aanand se bhar jate hai aur aankho me naye sapne chitro ke saath chale aate hai ....nice experience .......:)
ReplyDeletehttp://sapne-shashi.blogspot.com
Accha likha hai aapne....yun apne anubhav ko shabdon me dhalna Assam nahi...bahut baandh ke takins hai shabdon ko aapne aur bhav ke kunj van me ghoomne ko chhor dia....par we samvednaaon ke taar se bandhe rahe...samay mile to mere blog site www.niharkhan.blogspot.com for poems and www.boltitasveeerein.blogspot.com for paintings dekhiyega.
ReplyDeletesunder safar ki umda abhivyakti
ReplyDeleterachana
शब्दों का चित्रण अपनी और खींचता है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख ...
ReplyDeleteकृष्ण
इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
lagta hai jaise mai khud landon me khada hun.....sadhubaad
ReplyDeleteआप और आपके पूरे परिवार को मेरी तरफ से दिवाली मुबारक | पूरा साल खुशिओं की गोद में बसर हो और आपकी कलम और ज्यादा रचनाएँ प्रस्तुत करे.. .. !!!!!
ReplyDeleteडॉ.प्रीति गुप्ता जी
नमस्कार !
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
आपका यह संस्मरण बहुत सुन्दर लगा । नव वर्ष-2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। मेरे नए पोस्ट पर आपके प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
ReplyDeleteNice..
ReplyDeleteमित्रों आप सभी की ह्रदय से आभरी हूँ कि आपलोगों को यह यात्रा पसंद आई अब अगले पड़ाव पर चलते हैं.... जहाँ आप सभी का साथ व मार्गदर्शन पाकर हमारी लेखनी और भी बलवती होगी....
ReplyDeleteआभार सहित...
प्रीति
Very nice, simple n touching description............
ReplyDeleteहमने भी सफर किया ......... आपके साथ !!
ReplyDeleteप्रीति जी, आपने कितने सरल व सहज ढंग से लंदन आने के पहले दिन का अनुभव लिखा है...पढ़कर आनंद आ गया l
ReplyDeleteखूबशूरत
ReplyDeleteआपकी लिखने की वृति अवम क्षमता दोनों का मई कायल हूँ आपके लिखे एक एक शब्द हमें अन्पधा नहीं रहने देना चाहते उपरोक्त स्मरण को लिखने के लिए मेरी और से बधाई
ReplyDeleteसच्च सच्चाई कलाकार की धरोहर होती है,प्रीति की वास्तव में मुझे आप की लेखनी से ज्यादा आप की शैली पर गर्व होता है,शायद आप अब तक तो आप जान चुकी होंगी मै कदापि झूठी तारीफ नहीं करता ,बस विवश हूं अधिक गहराई से चर्चा नहीं कर सकता,बस यही कहूंगा। "हाइए वहीं जो राम रचित राखा"
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