Saturday 7 May 2022

गुरु दक्षिणा

     गुरू दक्षिणा  🙏
                              
                                🌹    “स्मृति - शेष”    🌹
      

                                     मार्च 2021 मोबाइल पर फ़ोन की घंटी बजती है ट्रिंग ट्रिंग और फ़ोन उठाते ही उधर से आवाज़ आती है , सतीश चंद्र फ़्रौम कानपुर फिर हम जवाब देते हैं जी गुरु जी सादर प्रणाम कैसे हैं आप , मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब आप की उँगली कैसी है स्ट्रिंग मिल गया ? अभी चेंज किया की नही ? और इक़दम नीचे सी भी नीचे स्केल बी पर मिला कर बजाइये तब उँगली पर ज़ोर नही पड़ेगा , हमने कहा जी गुरू जी थैंक यू सो मच आपने पोस्ट से स्ट्रिंग भेज दिया आप कितनी चिन्ता करते हैं हमारी बिलकुल हमारे पिता जी की तरह पर अब वो तो रहे नही उनके साथ के आप ही बचे हैं सिर्फ़ इक्का दुक्का लोग और हैं ,बस आप अपना आशीर्वाद हमेशा बनाये रखिएगा तो उन्होंने बोला यू आर ऑल्वेज़ इन माई प्रेयर्स तभी तो मैं फ़ोन करता हूँ हमने कहा जी गुरु जी हम बहुत ही भाज्ञशाली हैं जो आप जैसा गुरु हमको मिला है तो बोलते वो माई प्लेज़र , अंग्रेज़ी बहुत बोलते थे और बहुत ही स्मार्ट्ली ,ऊर्जा से भरे हुवे रहते थे कभी भी डिप्रेसिंग बातें नहीं करते थे हर सवाल का जवाब उनके पास था हमारी हर समस्या का समाधान वो समझा कर मिनटों में निकाल देते थे । जैसे कि उनका सिद्धान्त था कि हर कोई हर कुछ नहीं कर सकता ,अगर मैं चाहूँ की सचिन तेंदुलकर की तरह बैटिंग या बॉलिंग करूँ तो मैं वो नहीं कर सकता मेरा हाथ ही नहीं उठेगा या फिर सचिन तेंदुलकर चाहें कि मेरी तरह सितार बजा लें तो वो नहीं बजा पाएँगे वो अपनी फ़ील्ड के मास्टर हैं और मैं अपनी फ़ील्ड का ऐसी बहुत सी बातों को वो बहुत ही आसानी से समझा लेते थे और हाँ रियाज़ पर बहुत ज़ोर देते थे ,बताते थे कि हमारे यहाँ जब सब लोग रात में टी.वी. देखते हैं तो हम सितार के तार के नीचे कपड़ा लगाकर बजाते हैं प्रैक्टिस कभी नहीं छोड़ते मतलब कि सितार को ही वह समर्पित थे ।
फिर हमने पूछा कि हमारा जन्माष्टमी वाला डान्स देखा आपने जो हमने यूट्यूब का लिंक आपको भेजा था उन्होंने बोला यस और अपनी मिसेज़ को भी दिखाया आप तो बिल्कुल हिरोइन लग रहीं हैं बहुत गुण है आपके अंदर तो हमने बोला सब आपका आशीर्वाद है गुरु जी बस भगवान से प्रार्थना कीजिए कि मेरा हाथ जल्दी से ठीक हो जाये तो हम सितार भी अच्छे से बजा सकें तो कहा उन्होने हो जायेगा सिकाई करते रहिए और वोलिनी लगाते रहिये फिर फ़ोन करूँगा अच्छा अब मैं रख रहा हूँ हमने कहा जी गुरु जी सादर चरण स्पर्श और फिर उन्होंने फ़ोन रख दिया । इस तरह से हफ़्ते में एक या दो बार उनका फ़ोन ज़रूर आ जाता था और खूब इत्मिनान से देर तक बातें करते थे । ये तो थी अभी हाल ही की बात चीत । अब थोड़ा अतीत की तरफ़ चलते हैं । 
बात उन दिनों की है जब हम एम. ए फ़ाइनल कर रहे थे दर्शनशास्त्र में गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1989 में और हमारे पिताजी बहुत ही अच्छे संगीतकार थे सभी जाने माने संगीतज्ञों के साथ उनका रोज़ का उठना- बैठना था , रात रातभर घर में गोष्ठियाँ चलती अम्मा खाना बनाती सबको खिलाती बड़ा अच्छा वातावरण रहता हमलोगों का बचपन संगीतमय वातावरण में बीता ।ईवेन हमारे पिता जी अक्सर आकाशवाणी में इग्ज़ैमनर बन कर जाते और हमलोगों को मालूम ही नहीं रहता क्यूँकि वो काले पर्दे के पीछे बैठते रिकॉर्डिंग रूम में और हमलोग स्टूडीओ में ऑडिशन देते थे ।अम्मा भी बहुत अच्छी नृत्यांगना थीं , शास्त्रीय गायिका थीं और बेहतरीन तबलावादक थीं जिसके फलस्वरूप हम सभी भाई बहनों मे संगीत कूट-कूट कर भरा है। पिताजी के ही एक खास मित्र स्वर्गीय श्री महेन्द्र सिंह एक जाने माने प्रतिष्ठित सितार वाहक थे वो असमय ही दुनिया से उठ चुके थे उन्ही की पुण्य स्मृति हर वर्ष वहां के सभी संगीत प्रेमी मिलकर मनाया करते थे जिनमे बाहर से वरिष्ठ कलाकार आते और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे चित्रगुप मन्दिर में ,इस बार श्री सतीश चन्द्र जी का सितार वादन था जो कि कानपुर से आए हुए थे ।पिता जी उस कार्यक्रम में हमको और अम्मा को भी ले गये जब उनका कार्यक्रम समाप्त हो गया तब पिताजी ने हमको उनसे मिलवाया और बताया कि ये हमारी बिटिया है अच्छा सितार बजाती है हम चाहते हैं कि आप इसको अपनी शरण में लें तो उन्होंने कहा कि ठीक है कल आकाशवाणी में हमारी रिकॉर्डिंग है वहा इसको लेकर आइये मैं थोड़ा इसका हाथ देखना चाहता हूँ कितना तैयार है पिता जी ने कहा कि ठीक है जैसी आपकी आज्ञा । फिर क्या था दूसरे दिन हमारे पिताजी हमको लेकर आकाशवाणी पहुंच गये वो सभी लोग बाहर ही मिल गये प्रेमशंकर अंकल, राहत अली, केवल कुमार ,हसन अब्बास रिज़वी और भी जितने रेडियो आर्टिस्ट थे और लोगों का नाम याद नहीं हमें , हमने सभी का हमने पैर छुआ फिर अंदर स्टूडियो में गए हमारे लिए एक सितार निकाला गया उसको उन्होंने ट्यून किया फिर हमे बजाने को दिया ,हम भी युवावाणी जगत से उस समय अप्रूव थे कई बार वहां रिकॉडिंग हो चुकी थी तो बेझिझक बजा दिया कोई एक राग और एक छोटा सा धुन ,प्रेमशंकर अंकल ने तबला साथ में बजा दिया था ,सतीश चंद्र जी सुने तो पापा को बोले कि इसको कानपुर भेज दीजिए अगर भेज सकते हैं मैं इसको रेनाउंड सितारिस्ट बना दूंगा इंटर्नैशनल लेवल का ,पापा बिलकुल तैयार हो गए बोले कि इसकी एम.ए की पढ़ाई पूरी हो जाए फिर मैं ले आऊंगा | ये सन 1989 की बात है हम दर्शनशास्त्र में एम. ए कर रहे थे उस वक्त, क्युकी उस समय म्यूजिक सिर्फ बी.ए तक ही था तो हमने सितार से बी.ए भी किया और प्रयाग संगीत समिति से प्रभाकर भी कर लिया था ।पढ़ाई पूरी होने के बाद पिताजी हमको कानपुर ले गए उनके घर ले जाकर उनसे मिला दिया और दिन और समय तय हो गया कि कब जाना है दूसरे दिन अर्ली मॉर्निंग में यानी 7 बजे अपने रियाज टाइम पर उन्होंने हमको समय दिया था चूंकि उन दिनों वो वो कानपुर के डी.जी कॉलेज के संगीत विभाग के वो हेड ऑफ द डिपार्टमेंट थे उनको जाना रहता था इसलिए हमें सुबह का समय दिए थे ।पापा ने हमको बोला था कि फीस जरूर पूछ लेना तो हमने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा तुम्हारी रियाज हमारी फीस है पूरे दिनभर में तो 8 घंटे बजाने होंगे एवरेज 6 घंटे आने चाहिए हमने कहा ठीक है | इस प्रकार हमारी क्लास शुरू हो गई पिताजी हमको हमारे ताऊ जी की बेटी ललिता दीदी के यहां कानपुर पहुंचा कर अपने वापस गोरखपुर चले गए और रोज सुबह दीदी हमको ऑटो से लेकर सिविल लाइन्स सर के यहां ले जातीं और अपने बाहर बैठ जातीं और हम क्लास में सितार बजा रहे होते थे सर ने मींड ही सिखाना शुरू किया था। बाहर उनका छोटा सा पौमेलियन पप्पी बंधा रहता था और वो दीदी को खूब भोंकता और दीदी हँसती थीं ख़ैर उन्होंने ने भी बड़ी मेहनत की हमारे साथ हम भी खूब रियाज़ करते थे । कुछ ही दिन सीख पाये होंगे कि पापा का ऐक्सिडेंट हो गया तो लल्ली दीदी हमको गोरखपुर ले आइं पापा तो ठीक हो गए पर हम दुबारा कानपुर सर के पास सीखने नहीं जा पाए । 9 दिसंबर 1990 को हमारी शादी भी हो गई और हम सात समंदर पार लंदन चले गए । हमारे पतिदेव हमारा सितार भी साथ ले चले थे वहाँ हमने कई प्रोग्राम दिए और भारतीय विद्या भवन में भी ऐडमिशन ले लिए थे विजय जगताप जी से सीख रहे थे वहाँ भी लगभग कुछ ही दिन सीखे क्यूँकि कहीं और शिफ़्ट कर गए फिर नही ज्वाईन कर पाए वो भी छूट ही गया । कई साल बीत गए फिर 2000 में हम इंडिया शिफ़्ट हो गए समय बीतता गया 2 बच्चे भी हो चुके थे हम उन्ही की देखरेख में लगे रहे थोड़ा बहुत बजाते थे फिर 2010 भातखंडे में ऐडमिशन लिया सितार से एम.ए करने के लिए अभिनव सिन्हा सर से कुछ ही दिन सीखा पर किस्मत शायद साथ नहीं दे रही थी एक ही हफ़्ते बाद हमारा बहुत भयंकर एक्सिडेन्ट हो गया फिर वहाँ से भी हाथ धोना पड़ा एक साल लगा ठीक होने में । उसके बाद 2011-12 में पंडित कमल डेविड के पास सीखना शुरू किया वो बहुत अच्छा सिखाते थे बड़े ही प्यार से फ़ीस के लिए वो भी मना करते ,अपने हाथ से चाय बना कर लाते बिस्किट खिलाते ,बिना खाना खाए वापस आने नहीं देते ऐसे महान गुरु लोग मिले हमको ,एक बार तो हमने उनको हज़ार रुपए ज़बरदस्ती दे दिया उनके फ़्रंट पॉकेट में डाल दिया उस समय तो वो मना नहीं कर पाए लेकिन दूसरे दिन घर आ गये वापस करने हमको डॉक्टर बुलाते थे बहुत मानते थे और कुछ ग़ज़ल ,भजन भी सिखाया हमको वो भी पहली बार हमारा सितार सुनते  ही बोले थे कि तुम स्टेज के लयक हो  और हमको लखनऊ आकाशवाणी से अप्रूव करवाना चाहते थे सितार और गायन दोनों से , कुछ हमारी हेल्थ प्रॉब्लम हो गई दोनो हाथ में कार्पल टनल सिंडरोम हो गया जिसकी वजह से एक हाथ का ऑपरेशन कराना पड़ा ,दूसरे हाथ बैक अभी तक नहीं कराया कि हमारा बहुत समय बर्बाद हो जाएगा ,एक दो साल ऐसे ही बरबाद हो गए ।कुछ वर्ष बाद डेविड सर भी चल बसे जो कि बहुत ही दुखद रहा हमने सितार सीखने के लिए ही एक हाथ का ऑपरेशन कराया था पर अब वो भी कोशिस बेकर गई ,लेदे के अब हम बिलकुल निराश हो गए अब कहाँ जाएँ किससे सीखें ,वैसे जब 2000 में हम भारत आ गए थे तब हमने सतीश चन्द्र सर को उनके उसी पते पर जहां हम सीखने जाते थे पहले ,कई लेटर भेजे पर कोई जवाब नहीं आया फिर हम अपने बच्चों के लालन - पालन में लग गए और अपनी पी.एच.डी. की पढ़ाई में लग गए और इसी बीच हमारी एक पोएट्री बुक ‘ भावनाओं के रंग ‘ भी पब्लिश हो गई । कुछ समय बीता जब फेसबुक और यूट्यूब का समय आया तो हमने उसपर भी ढूँढना शुरू किया तो उनके कूछ विडीओज़ हमें यूट्यूब पे मिले हमने कॉमेंट में जाकर लिखा कि हमको आपका नम्बर चाहिए हम बहुत साल से ढूँढ रहे हैं आपको ,लेकिन वहाँ से भी कोई जवाब नहीं मिला । सर्चिंग जारी रही ।अचानक से 2019 में हमारी एक फ़्रेंड शोभा जी जो कि दिल्ली में रहती हैं वो कानपुर की हीं रहने वाली हैं जब हमने उनसे गुरु जी का ज़िक्र किया तो वो जानती थीं उनको और उन्ही के माध्यम से उनके संगीत श्री प्रकाशन का नम्बर मिला और उसपर बात करने को उन्होंने बोला हमने झटपट कॉल किया उधर से बोलने वाले व्यक्ति ने बताया कि मैं उनका बेटा रोहित  बोल रहा हूँ हमने पूरी बात बताई कि हम उनके पुराने स्टूडेंट हैं तब उन्होंने उनका नम्बर दिया और ये भी कहा कि पापा अब 82 वर्ष के हो चुके हैं , 2 बजे से 5 बजे शाम तक दवा खाकर सोते हैं । 12 बजे दोपहर में या सुबह 10 बजे बात कर लीजिएगा ।हमारे तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा हम तो दूसरे दिन सुबह से ही 10 बजने का इंतेज़ार करते रहे और 10 बजते ही हमने उनको फ़ोन कर दिया उधर से आवाज़ आइ सतीश चंद्र फ़्रोम कानपुर हम बड़े ख़ुश हुए उनको अपने बारे में सब याद दिलाया और बताया कि हम आपको बहुत सालों से ढूँड रहे थे और आप 30 साल बाद मिले हमको सितार फिरसे कंटिन्यू करना है आपके साथ ,तो वो बोले कि मैं अब किसी नये स्टूडेंट को नहीं लेता हूँ चूँकि आप इतनी पुरानी हैं इसलिए मैं सिखा दूँगा आपको ये कहकर तारीख़ , दिन और समय बता दिया हम तो बस फूले न समाये जब वो दिन आया तो सुबह तड़के ही दोनो सितार लेकर गाड़ी में रख लिये अपना कॉपी, कलम भी रख लिया कुछ भेंट भी रख लिये और चल दिए अपनी मंज़िल की ओर लखनऊ से कानपुर । रास्ते से हमने उनको मैसेज किया कि I am on the way ,उनका रिप्लाई आया welcome I am waiting for you ,गाड़ी में बैठे बैठे ही हम ख़ुशी से उछल गए और ड्राइवर से सब उनकी पुरानी बातें करने लगे। बड़े अच्छे से उन्होंने ऐड्रेस समझाया था हमलोग ठीक 10 बजे उनके आवास पर पहुँच गए । घंटी बजाया तो अंदर से डोर खुला कोई इनकी शिष्या ही खोली और अंदर ले गई ,गुरु जी सोफे पर बैठे हुए थे खूब अच्छा सा कुर्ता और पैजामा पहने हुए थे , हमने उनके पैर छुए तो उन्होंने दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया और बड़े खुश हुवे जितने हम एक्साइटेड थे उससे ज्यादा वो दिखे बहुत सुबह ही तैयार होकर हमारा इंतजार कर रहे थे | हमने दोनो सितार उनको खोल कर दिखाया एक रविशंकर स्टाइल जो रिखीराम से लिया था और दूसरा विलायत खां स्टाइल जो कनई लाल से लिया था । उन्होंने दोनो को मिलाया और एक की तरब की तार टूटी थी तो वो अंदर से जाकर तरब का तार ले आए और हमको सिखाते हुए लगाने लगे हालांकि हम लगा लेते थे पर बहुत मुश्किल होती थी उन्होंने आसान तरीका बता दिया उसके बाद हमसे बोले कि कुछ सुनाइए हमने बोला कि जयजेवन्ती या झिंझोटी क्या सुनाए यही दो आजकल बजा रहे तो उन्होंने कहा कि जो भी आपको मन करे तो हमने जयजेवंती का शायद मसीतखानी और झिंझोटी राजाखानी सुनाया पूरा सुनने के बाद उन्होंने कहा कि हम आपको राग नहीं सिखाएंगे आप लय, सुर,ताल में हैं स्वर ज्ञान भी आपको है हम आपको मैटेरियल देंगे जैसे घर बनाने के लिए ईंट,मिट्टी,मोरंग, बालू आदि लगता है वैसे ही हम आपको बजाने के ट्रिक्स और मींड करवाएंगे आपको मेहनत करनी पड़ेगी हमने बोला बिलकुल गुरु जी अब हम आपके चरणों में आ गिरे हैं आप जो सिखाएंगे हम वही बजाएंगे क्युकी हमको सीखना है आपसे और सीखने के लिए ही उतना दूर लखनऊ से आए हैं , तो बिचारे बोले आप इतने साल से कहां थीं आप बहुत लेट आईं हैं मैं मुश्किल से चार साल और रह पाऊं शायद ,आप पहले मिली होतीं तो अब तक चमका दिया होता अपको आप तो स्टेज के लायक हैं हमारे तो आंसू निकल गए ,फिर हमने बताया कि हम बहुत साल से आपको ढूंढ रहे थे और 2000 में गोरखपुर से कई लेटर भी आपको लिख कर भेजे थे पर आपका कोई रिप्लाई नहीं आया तो उन्होंने बताया कि हम लोग काफी पहले यहां लक्ष्मणपुरी में शिफ्ट हो गए थे और लेटर पुराने एड्रेस पर आप भेज रही होंगी इसलिए नहीं मिला हमको ,आप लखनऊ रेडियो स्टेशन से हमारा नंबर और एड्रेस ले सकती थीं हमने कहा कि हम जानते ही नहीं थे कि आप लखनऊ आते थे खैर फिर उन्होंने हमारे पिताजी के बारे में पूछा तो हमने बताया कि 2016 में ही वो नही रहे फिर अम्मा को पूछा हमने कहा वो ठीक हैं फिर हमारे बच्चों और परिवार के बारे में पूछा तबतक आंटी भी अंदर से आ गईं उनको पूजा करने में बहुत टाइम लगता है इसलिए देर से आईं हमने उनके भी उठकर पैर छुए उन्होंने भी आशीर्वाद दिया और जब हमने गुरु जी को बच्चों के बारे में बताया तो आंटी एकदम चौंक गईं और बोलीं कि तुमको देखकर तो लगता ही नहीं कि तुम्हारी शादी हो चुकी है और तुम बता रही हो कि इतने बड़े-बड़े तुम्हारे बच्चे भी हैं ,तबतक उनके बड़े बेटे अंदर से निकले तो आँटी ने उनसे कहा अरे मोहित ये देखो ये लखनऊ से आई हैं सितार सीखने इनको देख कर लग ही नहीं रहा कि इनकी शादी भी हो गई है और इनका बड़ा बेटा अट्ठाईस साल का है और लंदन में पी.एच.डी कर रहा और दूसरा बेटा 15 साल का है जो इनके साथ लखनऊ में रह कर पढ़ रहा है, मोहित भैया ने हमको नमस्ते किया फिर हँसने लगे और वहीं पर गुरु जी की शिस्यायें बैठीं हुईं थीं सभी हँसने लगीं ।फिर गुरु जी चाय बनवाए और बिसकिट व नमकीन ले कर अपने हाथ से उठाकर देने लगे लगभग 30 साल बाद भी वही आत्मीयता प्यार पाकर हम तो धन्य हो गये उन्होंने कॉपी और पेन माँगा हम तो पूरी तैयारी से गए ही थे सो निकाल कर दे दिये उन्होंने अपने हाथ से उसपर कुछ मीण्ड वाले एक्सरसाइज़ लिख दिए फिर बजा कर सिखाए एक चीज़ को कहते सौ बार बजाइये ठीक वैसे ही जैसे तीस साल पहले बोलते थे , हमने बजाना प्रारम्भ किया कुछ कुछ बज जाता था और कुछ नहीं भी फिर हमारा टाइम होने लगा लौटने का और गुरु जी को भी 2-5 सोना है इस बात का ध्यान था हमें , तो लगभग 1- 1:30 पे हम उनसे और आँटी से विदा लेकर निकल आए लखनऊ के लिए क्यूँकि लम्बी दूरी तय करनी थी। इस प्रकार रहा पहला दिन वो भी तीस साल बाद का ... बड़ा ही सुखद ,और कल्पनाओं के संसार में गोते लगाते रहे पूरे रास्ते की अब हम अच्छा बजा पाएँगे पंडित कमल डेविड सर के चले जाने के बाद से जैसे हम बजाना ही भूल गए थे अब बड़ी मुश्किल से गुरु जी मिले हैं हर हफ़्ते जाएँगे बिना नागा किए और घर में भी प्रैक्टिस किया करेंगे ।
दो- तीन हफ़्ते यानी टोटल 3 बार तो गए हम और गुरु जी उस दिन अपने सारे स्टूडेंट्स को आने के लिये मना कर देते थे जिस दिन हमको बुलाते थे क्यूँकि हम बहुत दूर से आते थे ,समय कम पड़ जाता था और उसी दिन लौटना भी रहता था इस बात का ख़्याल था गुरू जी को कि वो हमको पूरा टाइम दें । जब हम पहली बार कानपुर आए थे गुरू जी से मिलने तब हम अपने साथ एक लिफ़ाफ़ा भी ले गए थे ज़्यादा तो कुछ नहीं बस मात्र 2000 रुपए रख के ले गये थे और जब फ़ीस के लिये पूछा तो फिर उनका वही जवाब था जो तीस साल पहले था मतलब फ़ीस की कोई डिमांड नहीं है तो हमने कहा गुरू जी पहले की बात और थी तब आप जॉब में थे और अब आप रिटायर हो चुके हैं आपको ज़रूरत है तब हम मैच्योर नहीं थे हमको इतना ज्ञान नहीं था कि हम किसी तरह दे दें आपको ,पर अब तो ज्ञान हो गया है कि गुरू दक्षिणा दिए बिना ज्ञान अर्जित नहीं होता है और ये आपके मेहनत का मेहनताना है और हमारा प्यार समझिए इसी रूप में दे सकते हैं आपको तब उन्होंने बोला ठीक है आपकी जो मर्ज़ी दे दीजिएगा तब हमने वो लिफ़ाफ़ा उनको थमा दिया था । इस प्रकार हमारा हफ़्ते में एक दिन जाना तय हो गया और हम नियमित रूप से जाने लगे । गुरू जी के एक दो कार्यक्रम में भी कानपुर में ही जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ उन्होंने बड़े प्यार से बुलाया था तो हम जाते कैसे नहीं ,उनके लिए हम फूलों का गुलदस्ता ले कर गए और कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के पहले ही स्टेज पर ले जाकर दे दिये बड़े ही प्रसन्न हुवे उनके और भी स्टूडेंट्स आए थे लगभग हम सभी पहले मिल चुके थे । आंटी भी यानी गुरू जी की वाइफ़ भी आइं थीं वो हमारी बहुत ही चिंता कर रही थीं कि हम इतनी रात में वापस लखनऊ कैसे लौटेंगे अकेले ड्राइवर के साथ , इनको कहते हैं कि लड़कियों को मत बुलाया करें अपने किसी भी रात के कार्यक्रम में तो हमने कहा आंटी आप परेशान मत होईये हमारा ड्राइवर बिलकुल बेटे जैसा है बहुत भरोसे का है तो उनकी परेशानी थोड़ी कम हुई । गुरू जी का कार्यक्रम बहुत ही ज़बर्दस्त रहा 82 की उम्र में इतना ज़बर्दस्त बजा रहे हैं हर तरफ़ तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज रहा था बहुत ही अद्भुत और भव्य लग रहा था । इतना अच्छा लग रहा था उनको सामने से बजाते हुवे देखना और कितना कुछ सीखने को मिला ,बहुत हीसौभाग्यशाली थे हम जो उनके कार्यक्रम में पहुँच गये थे । कार्यक्रम समाप्त हुवा और हम दोनो लोगों का पैर छूकर आशीर्वाद लेकर लखनऊ के लिए चल दिए रास्ते भर गुरू जी की कॉल आती रही कहाँ तक पहुँची इतनी चिंता कर रहे थे दोनो लोग । हम लखनऊ बहुत लेट पहुँचे रास्ते में ट्रकों का जाम लगा था । दूसरे दिन सुबह ही गुरू जी की कॉल आइ पूछा कितने बजे तक पहुँची थीं हमने सारा ब्योरा दे दिया फिर उन्होंने आने के लिए बहुत धन्यवाद बोला ।

                                                           (  गुरु जी का कार्यक्रम जो कानपुर में था ।)
        ( आरती , हम और शालिनी गुरु जी का कार्यक्रम प्रारम्भ ही होने वाला था ।)
(  आँटी गुरु जी की वाइफ़ राइट में बीच में  हम ।)
 (  लेफ़्ट में आरती दूबे गुरु जी की स्टूडेंट बीच में गुरु जी और राइट में हम कितने खुश हैं हम गुरु जी                                          का सान्निध्य पाकर ।)

                          (लेफ़्ट में शालिनी गुरु जी की स्टूडेंट ,आरती ,गुरु जी ,हम और नीलम जी गुरु जी की स्टूडेंट ।)
                                                     (  गुरु जी के साथ स्टेज पर दूसरे कार्यक्रम में ।)
                                            (    गुरु जी को सम्मानित करते हुए सभी अतिथि गण ।)
                                  (   प्रिय आँटी गुरु जी वाइफ़ जिन्होंने माँ जैसा प्यार और दुलार दिया ।
                                           ये सब अच्छे पल अब कभी लौट के आने वाले नहीं हैं ।)

तो इन सब बातों से क्या लगता है यही न कि वो केवल एक गुरू ही नहीं वरन पिता का भी फ़र्ज़ निभा रहे थे इतनी आत्मीयता से ,ऐसा गुरू आज के इस स्वार्थी ज़माने में कहाँ मिलेगा। ये तो रही कार्यक्रम की बात अब आगे बढ़ते हैं और बातों की तरफ़ | एक बार गुरु जी के घर पे उनके दुबई से कोई स्टूडेंट आए थे हमको नाम नहीं याद है उनके जाने के बाद गुरु जी ने हमको दिखाया कि वो स्टूडेंट उनके लिए दुबई से कुर्ता लाए थे और गुरु जी को कुर्ते बहुत पसंद थे ख़ासकर कलकत्ते वाले तब हमने भी मन में सोचा की हम गुरु जी को  लखनवी कुर्ता चिकन वाला ज़रूर पहनाएँगे और सोच कर ही बहुत खुश हो गए  । 
हम मुश्किल से 3 या 4 टर्न ही गये होंगे कुछ तबियत गड़बड़ हो गई तो नहीं जा पाये फिर बाहर जाना पड़ गया कई बार ,तब नहीं जा सके और फिर 2019 में ही दिसम्बर में लंदन चले गए 2 हफ़्ते के लिए जब जनवरी में लौट कर आए तो कोरोना का क़हर सब तरफ़ शुरू हो गया लॉकडाउन लग गया सबका आना जाना बंद हो गया लोग अपने ही घरों में क़ैद हो गए हर तरफ़ त्राहि - त्राहि होने लगी ऐसे में तो सितार बजाना किसको सूझेगा जहां पहले जान बचाना जरुरी हो गुरू जी की कॉल बराबर आती रहती हमने उनको बताया कि लंदन से हम आपके लिए गिफ़्ट लाए हैं वो चाय की पत्ती का कई फ़्लेवर का सेट था और गुरु जी चाय के बहुत शौक़ीन थे तो हमने पूछा कैसे  दें आपको तो उन्होंने कहा कि अभी तो हमने क्लास लेनी बंद कर दी है जब शुरू करेंगे तब आइएगा लेकर ,हमने कहा ठीक है | जैसे तैसे जनवरी बीता फिर अचानक से 14 फरवरी को सुबह सुबह गुरु जी की कॉल आइ ,हम धूप में बैठे थे बड़े निराश से ,सब रास्ते बन्द नज़र आ रहे थे पर जैसे ही उनकी कॉल देखी तो कुछ उम्मीद जागी और हमने झट फ़ोन उठा लिया उधर से आवाज़ आइ सतीश चंद्र फ़्रौम कानपुर ,हमने बोला जी गुरू जी सादर प्रणाम ,कैसे हैं आप और इतनी सुबह सुबह कैसे याद किया हमको ,तो उन्होंने बोला मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप कैसी हैं और क्या कर रहीं हैं तो हमने कहा कि हमको बहुत डिप्रेशन हो रहा एक तो हमारी उँगली काम नहीं कर रही है जबसे लंदन से लौट कर आए हैं ट्रिगर थम्ब हो गया है कुछ बजा ही नहीं पा रहे हैं तब उन्होंने बोला वोलिनी लगाइए और गर्म पानी में सेन्हा नामक डालकर सिकाई करते रहिए तो हमने कहा की गुरु जी बहुत से डॉक्टर को दिखाया सभी ऑपरेशन के लिए बोल रहे या स्टेरॉड का इंजेक्शन लगवाने को पर हम दोनो ही नहीं करवाना चाहते ,हमने 2017 में अपने दाहिने हाथ का ऑपरेशन करवाया था कार्पल टनल सिंडरोम का उसके कुछ ही दिन बाद राइट थम्ब में ट्रिगर थम्ब हो गया था उसमें भी फिरसे दोबारा ऑपरेशन के लिए डॉक्टर बोल रहे थे हमने बहुत फिज़ीओथेरेपी करवाई बहुत घरेलू ट्रीटमेंट किया बहुत टाइम लगा पर ठीक हो गया ,पर इतने दिन तक सितार का नुक़सान हुआ हम बजा नहीं पाए अब फिर वही प्रॉब्लम शुरू हो गई तो उन्होंने बड़े प्यार से समझाया कि सितार को इक़दम लो स्केल पर मिलाइए c या b स्केल पर और तीन नम्बर का तार हटा कर 2 नम्बर का लगा लीजिए तो उँगली पर ज़ोर नहीं पड़ेगा तो हमने बोला की 2 नम्बर का तार नहीं है हमारे पास तो उन्होंने कहा अपना एड्रेस्स हमको दीजिए हम पोस्ट कर देंगे यहाँ से और पूरी हमारी बात सुनने के बाद ये भी बताया कि मैं अभी लखनऊ में ही हूँ कल आकाशवाणी में हमारी एक रिकॉर्डिंग थी उसी सिलसिले में आया था बस आज ही भर हूँ और कल चला जाऊँगा ,हम तो बहुत ही प्रसन्न हो गए सब अपना दुखड़ा भूल गए और तुरंत गुरु जी को बोला कि फिर आज शाम हमारे घर आइए आज वैलेंटायन डे भी है और आज के दिन आपका प्यार और आशीर्वाद भी मिल जाएगा हम इतना लोनली फ़ील कर रहे थे डिप्रेस हो कर बैठे थे ,तो उन्होंने कहा अरे दुखी नहीं रहना चाहिए ठीक है मैं शाम को आता हूँ हमने कहा अपना एड्रेस भेज दीजिए हम ड्राइवर भेज देंगे उन्होंने एड्रेस व्हाटसैप कर दिया फिर क्या था हमारे अंदर जैसे अजब सी शक्ति आ गई हमने तुरंत और लोगों को फ़ोन कर दिया कि आज शाम हमारे सितार के गुरु जी घर आ रहे हैं इसलिए अपलोगों का डिनर यहाँ है वेलेंटायन का ,हमने अपनी कथक गुरु डॉक्टर कुमकुम धर उनके हसबैंड महेंद्र सिंह चौहान अंकल को और अपने स्टूडेंट्स रवि वर्मा , रेनू राठौर ,प्रिंसी ,गरिमा जी प्रेरणा राणा आदि कई लोगों को इन्वाइट कर दिया और सबसे ख़ुशी की बात कि इतने शॉर्ट नोटिस पर सभी आने को तैयार हो गए और गुरु जी से मिलने के लिए भी | शाम हुई सभी आ गए हमारे स्टूडेंट्स गुरु जी से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए उनका आशीर्वाद लिए ,हमारा तो अच्छा वेलेंटायन दिन बन गया एक ही दिन में दो दो गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा वो भी हमारे घर पे आकर ,बड़े ही खुशनसीब हैं हम ,गुरु जी को सितार दिया वो बजाने लग गए सभी स्टूडेंट ने सुना बहुत प्रभावित हुवे | वो शाम बहुत ही ख़ुशनुमा बीती सबके आने ,से फिर हमने जो गिफ़्ट लिया था लंदन में वो दोनो गुरुओं को भेंट किया साथ में गुरु जी को कुछ मिठाइयाँ और नमकीन भी भेंट किया कानपुर के लिए । गुरु जी बहुत ही प्रसन्न मन से यहाँ से विदा लिए और खूब आशीर्वाद देकर गए सभी को ,जो कभी सोचा नहीं था वो अचानक से हो गया इतना अच्छा वो समय बीता कभी भी भुलाया नहीं जा सकता । 

( हमारे घर जब सभी लोग एक शॉर्ट नोटिस पर आ गए थे लेफ़्ट से महेंद्र सिंह चौहान अंकल ( कुमकुम मैम के हसबैंड)    गरिमा जी ,प्रिंसी हमारी स्टूडेंट ,बीच में श्रद्धेय गुरु जी , उनके बग़ल में हमारी कथक गुरु माँ डॉक्टर कुमकुम धर ,रवि हमारे सितार के स्टूडेंट ,रेनू हमारी स्टूडेंट ,हम डॉक्टर प्रीतिकृष्णा गुप्ता ,प्रेरणा राणा और हमारे छोटे सुपुत्र चिरंजीव कार्तिकेय गुप्ता ।)

         ( ये पिक्चर हमारे घर की है जब गुरु जी 14 फ़रवरी 2020 को लखनऊ हमारे घर आए थे और हमारा रिखिराम वाला सितार बजा कर देख रहे थे क्यूँकि दिसम्बर में हम इसकी दिल्ली से रिखिराम के यहाँ ही जवारी करवा कर लाए थे ।)

फिर दूसरे मॉर्निंग गुरू जी कानपुर चले गए और वहाँ से जाते ही 2 नम्बर का स्ट्रिंग बाई पोस्ट भेज दिए दो जोड़ीं । फिर हमने स्ट्रिंग बदला और धीरे धीरे प्रैक्टिस शुरू कर दी । भगवान की दया से एवं गुरू जी के आशीर्वाद से हमारा अंगूठा भी पहले से काफ़ी बेहतर हो गया था । पर उस वक़्त चारों तरफ़ कोरोना ने बहुत कोहराम मचा रखा था ।गुरु जी बीच में आगरा भी गए थे अपने छोटे बेटे मोहित के पास वहाँ से भी उन्होंने हमको कॉल किया था आँख दिखाने शायद गए थे जहां तक हमको याद है । वहाँ से जब कानपुर लौट के आए तो फिर कॉल किया और अपनी खूब रिकॉर्डिंग भेजते थे । उन दिनों हम सिर्फ़ मारवा राग बजा रहे थे हमने पूछा भी गुरू जी से कि ऐसा क्यूँ हो रहा है सिर्फ़ यही राग अच्छा लग रहा है और कोई नहीं तो उन्होंने बताया कि इस राग से बैराग उत्पन्न होता है चूँकि समय ऐसा चल रहा है इसलिए शायद आपको अच्छा लग रहा है हम उनको अपनी रीकोर्डिंग्स भेजते रहते थे हमने झाला में बहुत कुछ इम्प्रूव्मेंट किया था सब उनको भेज कर पूछते थे कि ये झाला में बजा सकते हैं तो कहा कि हाँ बिल्कुल क्यूँ नहीं लय और ताल में होना चाहिए आप ज़रूर बजा सकती हैं । हम तो बड़े ख़ुश हुए कि चलो हम सही दिशा में काम कर रहे हैं मेहनत सफल हो रही है इस तरह से हमारी क्लास चलने लगी ,कभी कभी हम उनकी रिकोर्डिंग को भी बजाने का प्रयास करते और गुरु जी को भेजते वो बहुत प्रसन्न होते और अप्प्रिसिएट करते कि बहुत अच्छी कोशिस की है और एक नोट को सौ बार सुनिए तब बिल्कुल प्रॉपर बजेगा । 
इस तरह से पूरा 2020 निकल गया 2021 भी आ गया पर कोरोना की वजह से कुछ ख़ास तरह से सेलिब्रेशन कहीं भी हुआ नहीं । जनवरी,फरवरी,मार्च ऐसे ही बीत गया 8 अप्रैल को हमारे गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन होना था गुरू जी को बताया था उन्होंने बहुत सारी ब्लेसिंग्स भी भेजी थी अक्सर हम आँटी के बारे में भी पूछ लेते थे कि हमारा डान्स दिखाए कि नहीं उनको तो कहते दिखाया वो भी बहुत तारीफ़ कर रहीं थीं आपकी कि बहुत ही मेहनती हैं प्रीति बहुत तरक़्क़ी करेंगी । हमको इस बार ऑपरेशन से थोड़ा डर लग रहा था कि पता नहीं हम बचेंगे कि नहीं और ये सोचकर मारवा राग का सिर्फ़ अलाप रातोंरात फेसबुक पर अपलोड कर दिया बहुत अच्छा तो नहीं बज पाया था बहुत ही हड़बड़ी में पोस्ट किया था खैर ऑपरेशन सफल रहा हम बच गए ,घर आने के एक दो दिन बाद गुरु जी और आँटी को बताया कि ठीक से हो गया हालाँकि आँटी से जब पहले बात हुई थी तब उन्होंने बताया था कि 30 साल पहले उनका भी यही ऑपरेशन हुआ था और हमने तो गुरू जी के कहने पर ही करवाया था उन्होंने ही बताया था कि नहीं कराएँगी तो आगे बहुत प्रॉब्लम बढ़ जाएगी तभी हमने कराया था कि जल्दी से ठीक होकर उनसे सितार जो सीखना है । हमने एक हफ़्ते के अंदर ही सितार बजाना शुरू कर दिया था और गुरु जी को मारवा वाले पोस्ट के बारे में बताया और उनको फ़ार्वोर्ड भी कर दिया था कि हम बहुत डरे हुए थे और हड़बड़ी में पोस्ट किया सितार ठीक से मिला भी नहीं था तो उन्होंने कहा की बहुत अच्छा बजाया है और अपने रविशंकर जी का सुनकर बजाया है ये अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है थोड़ी गड़बड़ी भी सही कोई बात नहीं मेहनत बेकार नहीं जाएगी । 
कुछ दिन बाद हमने एक ओल्ड सोंग आगे भी जाने ना तू,पीछे भी जाने ना तू जो भी है बस यही पल है सितार पर बजा कर भेजा पर गुरु जी का कोई रिप्लाई नहीं आया हम संकोच में कभी उनको फ़ोन नहीं करते हमेशा उन्ही का आता था ऐक्चूअली इस बीच सितार के कई जाने माने आर्टिस्ट कोरोना की चपेट से बच नहीं पाए गुरु जी अक्सर उनलोगों की बातें करके दुःखी हो जाते थे तभी हम कुछ न कुछ रीकोर्ड करके भेज देते कि उनका ध्यान उधर न जाए पर वो न्यूज़ सब देखते थे और हमको उधर कई दिन से आँटी की बहुत ज़्यादा याद आ रही थी उनसे बात करने का मन हो रहा था जब गुरु जी की कॉल नहीं आइ तो हमने आँटी को उनके फ़ोन पे मिलाया तो उधर से श्री की मम्मी यानी गुरु जी की बहू ने फ़ोन उठाया हमने बोला नमस्ते भाभी ,आँटी कहाँ हैं उनसे बात करने का मन हो रहा है उनकी इधर बहुत याद आ रही थी तब उन्होंने बताया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है तो हमने पूछा बात कर पाएँगीं पूछिए उनसे ,तो उनसे पूछ कर उनको फ़ोन दे दिया उधर से आँटी की आवाज़ आई हमने नमस्ते बोला फिर कहा आपकी बहुत याद आ रही थी इसलिए कॉल किया आपके फ़ोन पर ,आपको क्या हो गया आँटी तो बोलीं की हम भी बहुत याद कर रहे थे इतना टाइम हो गया तुमसे मिले हुए ,बुख़ार हो गया है और खांसी भी बहुत आ रही है तो हमने कहा ठीक है हम ज़्यादा बात नहीं करेंगे बस आपकी आवाज़ सुन ली दिल को तसल्ली हो गई गुरू जी की कोई खबर नहीं मिल रही वो कैसे हैं तो बोलीं वो भी ठीक नहीं हैं आजकल हमने कहा अच्छा आँटी अब हम रखते हैं आप आराम कीजिए जब ठीक हो जायेंगीं तब बात करेंगे फिर उन्होंने हमको खूब सारा आशीर्वाद दिया और फ़ोन कट गया । दो या एक दिन बाद ही गुरुजी का व्हाटसैप पे मैसेज आया कि  ‘येस्टर्डे माई वाइफ़ लेफ़्ट अस फ़ॉरएवर ,शी इज़ नो मोर …………’ अरे ,हमारा तो दिल बैठ गया ये क्या हो गया अभी तो हमने बात की है और गुरु जी को हमने सब मैसेज करके बता भी दिया था कि आँटी से हमारी बात हुई है , बात से तो इतनी बीमार नहीं लग रही थीं दिल एकदम चीत्कार करने लगा और गुरु जी के लिए चिंता बहुत बढ़ गई , वो वैसे ही इतना डरे हुए थे अब तो और भी परेशान हो जाएँगे कितने अकेले हो गए ,दोनो लोग हर समय साथ-साथ रहते थे अब वो कैसे रहेंगे ,हमारी हिम्मत ही नहीं हुई कि हम उनको कॉल करें क्या बात करेंगे ,किस मुँह से ,कुछ समझ नहीं आ रहा था ,क्या पूछें ,कैसे हो गया ,बिल्कुल दिमाग़ काम नहीं कर रहा था ,बस हमने लम्बा सा मैसेज डाल दिया उनको ढाँढस बँधाते हुए और कुछ भी नहीं कर पाए ,मन जो इतना रो रहा था गुरु जी के लिए और आँटी की वो सारी बातें याद आने लगीं जब हम सितार सीख़ते थे तो वहीं अपनी माला और चाय लेकर बैठतीं और खूब बातें करतीं कि हमको भी तुम्हारे गुरु जी ने सितार सिखाने की कोशिस की पर हमको बहुत मुश्किल लगा हमने इनसे कहा कि ये हमारे बस नहीं है और छोड़ दिया ,गाना ज़्यादा आसान लगा ,तो हम और गुरु जी खूब हँसने लगे वो भी हँसने लगी ,कितने अच्छे दिन थे ,वे सभी लोग ख़ुश थे ,अपनी -अपनी लाइफ़ में । 

  ( डीयर आँटी एक हाथ में अपनी माला और दूसरे हाथ में चाय लेकर बैठी हैं और रिस्पेक्टेड गुरु जी हमको मींड सिखा रहे हैं।
                सिर्फ़ स्मृतियाँ ही शेष रह गईं , दोनो ही लोग इस दुनिया को छोड़ गए हम सभी को आंसुओं के साथ । )

पर जबसे कोरोना आया है हर तरफ़ उदासी छा गई है ,हर कोई डरा हुआ है ,हर घर से बैड न्यूज़ आ रही है ,बहुत ज़्यादा सदमे में दिल चला गया ,कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ,और एक दो दिन बीत जाने पर भी गुरू जी का न कोई मैसेज आया न ही कोई कॉल आइ ,हम समझ गए कि गुरू जी बहुत अकेले हो गए होंगे और ज़रूर डिप्रेस भी हो गए होंगे ,क्या मैसेज अब करें बिचारे उनकी दुनिया ही उजड़ गई ,कैसे उनका मन लग रहा होगा मतलब की हम उनके दिल के इतने क़रीब थे कि उनका दर्द -हम अनुभव कर रहे थे हम खुद कॉल न करके अपनी फ़्रेंड शोभा जी से उनको कॉल करवाये कई बार करने पर कॉल उनकी उठ गई वो बहुत ही हताश थे और आँटी के जाने का उनको बहुत ज़्यादा दुःख था थोड़े बीमार भी हो गए थे उनकी न्यूज़ थोड़ी मिली तो थोड़ा राहत हुआ हमको ,फिर हमने 6 तारीख़ को संडे था शायद उस दिन अपने दिल को मज़बूत बनाते हुए सोचा था की आज हिम्मत करके 12 बजे के बाद हम ज़रूर उनको कॉल करेंगे और बस हम लंच ही कर रहे थे और घड़ी देख रहे थे हमें क्या पता कि हम जिस क्षण का इंतेज़ार कर रहे हैं कि अभी बस कुछ मिनटों में ही गुरू जी से बात हो जायेगी और हम उनकी आवाज़ सुन लेंगे पर हमें क्या पता था कि जिस क्षण का हम बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे हैं वो क्षण बहुत ही बुरी खबर ले कर आने वाली है और हमारे फ़ोन पर वो मनहूस मैसेज भी आ गई कि सतीश जी भी नहीं रहे..... जो मंजू दीक्षित जी ने भेजा था हमें तो एकदम से बिलीव ही नहीं हुआ कि गुरू जी तो बिलकुल ठीक थे हम तो अभी बात करने ही वाले थे उनसे ,ओह हे भगवान वो भी चले गए और हम फ़ोन मिलाने को सोचते ही रह गए ,अरे ये काम हमने पहले ही क्यूँ नहीं कर दिया ,आख़िर शोभा जी का फ़ोंन उठाया न उन्होंने ,हमने इतना संकोच क्यूँ किया ,बहुत ही कोसा हमने अपने को और फिर शोभा जी को कॉल किया और यह दर्दनाक बात बताई और हमदोनो फ़ोन पर ही फूट-फूट कर ,रोने लगे सब कुछ ख़त्म दोनो लोग एक साथ चले गए अब कभी न इनको देख पाएँगे ,न मिल पाएँगे और न ही आवाज़ सुन पायेंगे ,हाँ लेकिन एक बात के लिए हमने अपनी ही पीठ ठोंकी कि न जाने हमको क्या सूझी ,इतनी आँटी की याद आइ और हमने उनको तो कॉल करके बात कर ली थी पर गुरु जी के समय हमने लेट कर दिया बहुत अफ़सोस हुआ ख़ैर होनी को कौन टाल सकता है पर इस तरह से दोनो लोगों का एक साथ जाना बड़ा ही असहनीय हो गया सब जैसे अंदर तक सन्नाटा छा गया । बाद में और लोगों से उनके स्टूडेंट्स से जानकारी ली हमने ,तो पता चला कि दोनो लोगों को कोरोना हो गया था और आँटी के जाने के बाद गुरु जी बहुत टूट गए थे रोते थे तो उनके बेटों ने ही लोगों को बताया की माँ ने पापा को बुला लिया ,उफ़्फ़ कैसी अनहोनी घटना घटी । 
पूरे एक वर्ष हो गए 2021 से 2022 आ गया पर गुरु जी और आँटी को एक पल के लिए भी भूले नहीं उनलोगों की बातें ,यादें सब धरोहर की तरह दिल पर अंकित है और आज भी हम जब सितार लेकर बैठते हैं ,पहले सभी गुरुओं को नमन करते हैं सबका आशीर्वाद लेते हैं तभी रियाज़ करने बैठते हैं हमारे गुरुओं में जिनको हमने मन से ही मान लिया है वो हैं अलाउद्दीन खाँ ,अकबर अली,अन्नपूर्णा देवी,रवि शंकर ,निखिल बैनरजी,विलायत खाँ और रईस खाँ ,और जिनसे बचपन में सीखा है और वो अब नहीं रहे वो हैं जगदीश सिंह गोरखपुर के ,सुरेंद्र मोहन मिश्रा बनारस के , फिर इधर कुछ सालों में जिनसे सीखा और अब वो भी नहीं रहे वो हैं पंडित कमल डेविड लखनऊ,पंडित सतीश चंद्र कानपुर । 
इस प्रकार रही हमारे सितार की जर्नी जब हम लंदन में रह रहे थे तो वहाँ भारतीय विद्या भवन में विजय जगताप जी से कुछ दिन सीखा वो भी बहुत अछे गुरू हैं अभी भी वो लंदन में ही रह रहे और जब 2000 में हम लखनऊ आ गए तो 2010 में भातखण्डेय में भी एडमिशन लिया था एम.पी.ए के लिए जहां कुछ दिन अभिनव सिन्हा सर से सीखा पर एक्सीडेंट की वजह से कन्टीन्यू नहीं कर पाए ।हमारे सीखने की लगन ने किसी को छोड़ा नहीं जहां तक पहुँच पाए अपनी कोशिस जारी रही पर कभी क़िस्मत ने तो कभी हेल्थ ने तो कभी परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया लेकिन अब भी सीखने का प्रयास जारी है सभी गुरू जी लोग जहां कहीं भी हैं हमें आशीर्वाद भेजते हैं और हम जब भी सितार बजाते हैं उनलोगों की गाइडेंस मिलती रहती है ये हमने कई बार अनुभव किया है ।
 एक बार तो हम झाला बजा रहे थे और मिज़राब बहुत फँस रहा था तो पीछे से आवाज़ आइ मिज़राब बदलो और मूड के देखा तो डेविड सर थे और अभी इधर की बात है एक महीने पहले की हम इस साल यानी जनवरी से पीलू ही बजा रहे हैं और कोई राग अभी नही बजा रहे और वो भी मिश्र धुन है जो डेविड सर ने बड़े प्यार से सिखाया था एक लाइन का स्थाई और एक लाइन का अन्तरा पर हम इतने दिन से बजाते बजाते उसमें बहुत सी चीज़ें एड कर दिए हैं तो वो बहुत ही विस्तृत हो गया है अलाप और झाला के साथ काफ़ी बड़ा और अच्छा हो गया है सिर्फ़ झाले की तिहाई नही समझ में आ रही थी कि क्या रखें हमने गुरु जी पंडित सतीश चंद्र से मन में ही कहा की प्लीज़ गाइड कीजिए और जब हम नेक्स्ट मॉर्निंग उठे तो हमारे मन में वो तिहाई चल रही थी तो सुबह सुबह फ़ोन पर गा कर ही रेकर्ड कर लिया कहीं भूल न जाएँ और जब सितार बजाया तो वही तिहाई झाले में जोड़ लिया तो इस प्रकार अदृश्य रूप में भी गुरु लोग हमको सिखा रहे हैं तो हमारे लिए वो लोग अमर हैं । हमने विलायत खाँ को भी सपने में देखा था कि हम उनसे सीखने गए हैं तो वो कह रहे कि बहुत लेट आइ हो बहुत समय तुमने बर्बाद कर दिया ये सब मनगढ़ंत नही हैं सब सत्य हैं हमारे अंदर जो अब भी सीखने की लगन है वही हमको ज़िंदा रक्खे है । 
 यह एक छोटी सी श्र्स्द्धांजलि अर्पित करते हैं हम अपने प्रिय गुरु पंडित सतीश चंद्र जी के लिये उन्हीं की बातें उनका प्यार और आशीर्वाद को याद करते हुए सादर नमन । जबतक हम लिखते रहे आपके बारे में बिल्कुल अपने आप को आपके क़रीब पाते रहे हम आपको क्या दे सकते हैं हमारी इतनी कोई औक़ात ही नही एक कुर्ता सोचा था वो भी नहीं दे पाये अवसर  ही नहीं मिला हम कानपुर ही नहीं जा पाए कोरोना की वजह से और जब गुरु जी घर आए तो ख़रीदने का मौक़ा ही नहीं मिला ,सब अचानक से हो गया , जो आपने दिया अथाह दिया बस इन शब्दों को गुरुदक्षिणा समझ कर स्वीकार कर लीजिए और हमको सिखाना कभी मत छोड़िएगा यही आपसे अनुरोध है गुरु जी ।
गुरु जी के जितने डटूडेंट्स हैं जिनको हम जानते हैं सभी से हमारी बात होती है उन्ही से यह भी ज्ञात हुआ कि गुरु जी ने एक स्टूडेंट की प्रभाकर की फ़ीस भी भरी थी पर बाद में जब उस स्टूडेंट के पास पैसे आए तो उसने लौटा दिया तो गुरु जी ने कहा कि तुम हमारा पैसा नहीं रखना चाहती हो तभी लौटा दी हमको ये सब जानकर कितना दुःख हो रहा कि साक्षात ईश्वर थे हमारे गुरु जी ,जो पूरी ज़िंदगी देते ही रहे सभी को ,चाहे वो प्यार हो ,सम्मान हो ,या शिक्षा हो ,हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिला उनसे ,एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा और सच्चा  कलाकार बनने की चाहत । सभी स्टूडेंट्स से उनकी चर्चा होती रहती है वो यह भी  बताते हैं हमको कि वो आपकी बहुत तारीफ़ करते थे कि बहुत टैलेंटेड हैं सितार में हाथ बहुत अच्छा है लय,सुर का ज्ञान बहुत अच्छा है ये सब सुनकर हमारे आँख से आँसू गिरते हैं कि हम पहले गए होते तो आज अच्छा बजा रहे होते पर फिरभी हमने हिम्मत नही छोड़ी है जितना भी आता है और जैसा भी आता है बजाते रहते हैं फेसबुक और यूट्यूब पे अपलोड करते रहते हैं गुरु जी तो हमको आकाशवाणी और स्टेज पर बजवाना चाहते थे पर वो समय कब आएगा मालूम नहीं सब गुरू जी के हाथ में है । इन्हीं शब्दों के साथ अश्रुपूरित नैनों से गुरु जी आपको शत शत नमन । 
कहीं कोई त्रुटि हो गई हो तो हाथ जोड़कर क्षमा -याचना  है आपसे । 🙏
                           
                                    गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरू देवो महेश्वरा  ।
                                                           गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः, 
                                                                            तस्मै श्री गुरूवे नमः, तस्मै श्री गुरूवे नमः ।।


                                                             गुरु जी का सूक्ष्म परिचय ।

1 comment:

  1. गुरुजी की सारी बातें आप पहले भी साझा करती थीं। बहुत भावुक संस्मरण लिखा आपने। उनका आशीर्वाद सदैव आपके साथ था, है और रहेगा। खूब प्यार आपको और नमन गुरुजी को 🌺🙏

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