Tuesday 4 October 2011

कुछ कहना है .....

एक कहानी सी उपज रही है मालूम नहीं उसमे कितने पात्र हैं क्या शुरुआत है क्या कहानी है क्या अंत है पर फिरभी एक कहानी जैसा मन हो रहा है |अंदर ही अंदर कुछ चल रहा है | बड़ा ही मार्मिक एवं कारुणिक सा कुछ ...
अजीब से चित्र अजीब से किरदार मेरे साथ-साथ हैं | चलते -बैठते-उठते बात करते ,कुछ काम करते विचारों में मंत्रणा चल रही है वो सब पात्र मेरे अगल ही बगल जैसे महसूस हो रहे हैं | मेरे अंदर ही या तो जी रहे हैं या छटपटा रहे हैं वो भी शायद कविताओं की तरह बाहर आना चाहते हैं अंदर की गहराई से बहुत आवाजें आ रही हैं जो मुझे एकांत में कुछ कहानीनुमा लिखने को व्याकुल कर रहीं हैं | इस भागते हुए समय में घर-गृहस्थी बच्चे जिम्मेदारियाँ ,इसी सब में वक्त बीत जाता है एकांत कहाँ मिलता है और दिल की गहराई को छूने के लिए एकांत की गहराई का भी होना उतना ही आवश्यक है | जितनी गहरी बात है ,वो एकांतिक माहौल उस बात को और भी मर्मस्पर्शी बना देता है |
          मेरे लिए वो एकांत रात्रि का मध्यकाल होता है जब चारों ओर सन्नाटा हो ,सारी दुनिया सो रही हो ,सिर्फ झिंगुरों की आवाजें कानों में पड़ रहीं हों तभी मेरा रचनाकाल होता है उस समय कोई अजीब सी शक्ति मुझसे कुछ लिखवा लेती है वो अदृश्य चेतना कहाँ से आती है मस्तिष्क को शब्दों की दुनिया में ले जाकर भावों के साथ पिरो देती है और लेखनी चल पड़ती है | जो भी लिखा है अबतक ,लिखने के लिए नहीं लिखा वरन महसूस होता है उस अनुभव को किसी से भी कहा नहीं जा सकता जो दिल से निकलकर सीधा कागज पर ठहर जाती है | बस यही मेरी विधा है या वो कविता बन जाती , छंद बन जाती ,या गीत | कभी हमने उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जैसी मन में आती हैं वैसी ही आप सभी के सामने पहुंचतीं हैं कोई भी बाहरी ,बनावटी साज-श्रृंगार नहीं करतीं |
                                               आशा है आप सभी को शब्दों की सादगी एवं सरलता पसंद आएगी |
                      जब ह्रदय काव्य गढ़ता है ,तब कोई दूसरा कविहृदय ही इसे समझ सकता है ,ऐसी मेरी मान्यता है | 

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