Sunday 11 December 2011

श्रद्धांजलि

Late Dr Lakshmi Mal Singhvi 
क्यों चले जाते हैं अक्सर वो लोग,इस जहाँ को छोड़कर
जहाँ जिसे छोडना नहीं चाहती,खोना नहीं चाहती 

नम करती आँखें और बहुत कुछ कहती ये बातें........ ...... ...


लन्दन में भारत के उच्चायुक्त महामहिम 
स्वर्गीय डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी का दौर~~
                                              एक ऐसा दौर जो कभी विस्मृत नहीं हो सकता, भुलाये नही भूलता एक ऐसी हस्ती, ऐसी विभूति जो सबके लिये सम्माननीय रही, पूज्यनीय रही |सहज, सरल, उदार, साधारण सा व्यक्तित्व,प्रतिभाओं के धनी ओजस विचार वाले,स्वभाव में आत्मीयता ऐसे धीर पुरुष जो 'युग-पुरुष' कहलाएं बिरले ही होते हैं | 'महामहिम' उनकी ऊँची पदवी से नहीं वरन उनकी महानता के कारण कहलाते थे वह..., आज हम सब के बीच नहीं रहे | वह अपने-आप में ही एक ऐसी संस्था थे, एक ऐसा मार्गदर्शक थे जो 'स्व' में सीमित नहीं रहे बल्कि लन्दन में बसे सभी भारतवासियों के ह्रदय में बसे थे,समाहित थे, उनकी कमी शायद ही कोई भर पाए | जो-जो कार्य लन्दन में उन्होंने किये चाहे सामाजिक कार्यक्रम हो, धार्मिक हो, राष्ट्रीय हो या फिर पारिवारिक हो हर कार्यक्रम में वह सक्रिय होकर उपस्थित होते थे, अस्वस्थ होते हुए भी पधारते जरुर थे और सबसे अच्छी बात यह थी उनकी कि वो हमेशा आदरणीया कमला आंटी (उनकी धर्मपत्नी) के साथ ही सभी कार्यक्रमों में आते थे एवं समय के पाबंद थे ठीक समय पर आते थे | आप दोनों के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने वाली बात होगी पर दिल कहे बिना,लिखे बिना मानता ही नहीं | श्री सिंघवी जी के पी. ए., हिन्दी ऑफिसर के पद पर नियुक्त,  स्वर्गीय डा.सुरेन्द्र अरोड़ा वह भी बहुत सम्माननीय कहलायेंगे जो अब वह भी हम सब के बीच नहीं रहे...| डा.सिंघवी व कमला आंटी की बात बिना अरोड़ा अंकल के पूरी नहीं होती अधूरी सी लगती है | एक ऐसा सच्चा सेवक, मालिक भक्त, उतने ही उदार, सज्जन सहृदय जो आज के समय  में मिलना असंभव सी बात लगती है | कोई याद करे न करे पर इनलोगों की छाप ह्रदय पर ऐसी पड़ी है जो सदैव अमिट रहेगी वो भी लन्दन जैसे शहर में जहाँ अपने अपनों को भुला देते हैं जहाँ अपने देश 'भारतवर्ष' की माटी की सुगंध भी कुछ सफल व बुलंदियों को छूने वाली हस्तियों को पसंद नहीं आती, वहाँ उन तमाम सफलताओं को हासिल करने के पश्चात एवं आकाश की ऊँचाइयों को छूने के पश्चात भी एक सहज,सरल,साधारण एवं आत्मीय बने रहना, जन-जन के ह्रदय में बसे रहना बहुत बड़ी बात है,सबसे बड़ी उपलब्धि है | इन बड़ी बातों के लिये श्री सिंघवी जैसी शख्सियत ने छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा | वह भीड़ में आते तो थे पर उन्होंने भीड़ को कभी भी भीड़ समझकर नहीं देखा वो भीड़ उनका परिवार बन जाती थी हर एक की उपस्थिति उनके लिये मायने रखती थी  भीड़ में वह बहुत बड़े आदमी बन कर कभी नहीं आये उनकी सादगी, उनका प्रेम भरा ह्रदय हर नज़र से मिलता था | जबतक लन्दन में उनका दौर रहा वह कार्यक्रमों के अधीष्ठाता होते थे, संरक्षक होते हुए भी आयोजक बन जाते, व्यवस्थापक बन जाते और आतिथ्य सत्कार में जुट जाते |
                                                   उन लोगों ने हमें व हमारे पति श्री पद्मेश गुप्त जी को बहुत प्यार व दुलार दिया | हमे याद है जब हमारे बड़े सुपुत्र चिरंजीव प्रंकित जी का जन्म १९९३ में लन्दन में हुआ तो हमने उन्हें  भी आमंत्रित किया था श्री सिंघवी जी ने उस आमंत्रण पत्र पर प्रिय प्रंकित के नाम के साथ हमारा व पद्मेश जी का नाम जोड़कर बड़ी सुन्दर सी दो पंक्तियाँ लिखकर हमारे पास भिजवाई थी....  
Dr. Preeti Gupta, Prankit Gupta, Mrs. Kamla Singhvi
and Late Shri Kanhayan Lal Nadan
      !!  प्रंकित अंकित प्रीत धरा पर    
       मुकुलित पद्म वसुंधरा पर .  !!   
                                                                                                                        ये थी उनकी सहजता जो बड़ी आसानी से एक आम आदमी के ह्रदय में जगह बना ले | जब भी उनके निवास-स्थल पर   'काव्य-गोष्ठी', श्रीकृष्ण- जन्माष्टमी या कोई अन्य कार्यक्रम होता उसमे वह जगह के हिसाब से उतने ही लोगों को आमंत्रित करते जितने आराम से बैठ सकें | हर व्यवस्था हर सुविधा का ख्याल रखा जाता और भोजन बिल्कुल शुद्ध शाकाहारी बिना लहसुन व प्याज के होता था हमारे पतिदेव लहसुन व प्याज नहीं खाते कमला आंटी इस बात का बराबर ध्यान रखती | अतिथियों का ऐसा आतिथ्य सत्कार करतीं जो लाजवाब था | एक कुशल गृहणी, कुशल पत्नि और कुशल माता होने के साथ-साथ सबसे बड़ी बात एक भारतीय नारी, जो भारत की सभ्यता का प्रतीक थीं वहाँ पर | हर अतिथि की प्लेट में सभी कुछ खाने की सामग्री खुद ही देती थीं कोई रह तो नहीं गया,कोई छूट तो नहीं गया सब खुद ही संभालती थीं | वहाँ इतने सारे नौकर-चाकर होने के बावजूद भी वो खुद ही सभी की देख-रेख करती थीं | जहाँ डा.सिंघवी एक उच्चायुक्त होते हुए भी एक बहुत ही उच्चकोटि के कवि थे वहीँ कमला आंटी भी एक उच्चकोटि की कवयित्री हैं उनकी यह कविता  ''राम मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगी'' बहुत चर्चित रही एवं उनकी प्रिय कविता है | डा.सिंघवी जी की एक रचना बोधगीत जो उन्होंने हमें गाने के लिये कहा था "हिन्दी-सम्मलेन'' के दौरान 'भारतीय विद्या भवन' में एवं 'नेहरु सेंटर' में  हमने गाया था उसकी दो लाइनें हैं....
         !! कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा 
         हिन्दी है पहचान हमारी,हिन्दी हम सब की परिभाषा    !!       
Dilip Kumar, Late Shri Lakshmi Mal Singhvi, Shri Keshri Nath Tripathi,
Dr Dau Ji Gupta,  Ajitabh Bachchan, Ramola Bachchan and Dr. Preeti Gupta



Late Dr. Lakshmi Mal Singhvi with Sagar ji Maharaj
and Late Dr Surendra Arora

Dr. Padmesh Gupta reciting poetry at
Dr. Singhvi's place
              ये सब स्मृतियाँ हैं जो कभी विस्मृत नहीं हो सकतीं हमेशा-हमेशा के लिये अंकित हो गईं हैं | एक छोटी सी घटना, एक ऐसी अनुभूति जो उनकी आखिरी निशानी बन गई मेरे पास | करीब १२ वर्ष पहले हम भारत आ गये एवं उससे एक दो वर्ष पूर्व वह भी परिवार सहित दिल्ली आ गये थे | २००६ में मेरा पहला काव्य संग्रह ''भावनाओं के रंग'' प्रकाशित हुआ और हमने अपनी एक पुस्तक उन्हें दिल्ली भेज दिया दूसरे दिन ही सायंकाल      डा.सिंघवी अंकल व कमला आंटी का मेरे मोबाइल पर फोन आया बधाई देने के लिये बहुत खुशी हुई इतने सालों बाद हमने उन दोनों लोगों की आवाज़ सुनी दिल भर आया वो बोले कि बेटा हम अस्वस्थ चल रहे हैं वर्ना तुम्हारे किताब के लोकार्पण पर जरूर आते उन दिनों हम गोरखपुर में थे अपनी पी.एच.डी. कम्प्लीट कर रहे थे उहोने हाल-चाल पूछा छोटे सुपुत्र का नाम पूछा ढेरों आशीर्वाद दिया फोन पर ही हमने समीक्षा के लिये कहा उहोने कहा अभी तो पुस्तक हाथ में है तुरंत मिली है पूरी पढकर फिर लिखेंगे इतने दिनों बाद बातचीत करके बहुत अच्छा लगा | १० दिन बाद जब  हम लखनऊ आ गये पता चला की उनका एक पत्र आया है जिसमे उन्होंने पुस्तक की चर्चा की है एवं अपनी अस्वस्थता के बारे में लिखा है कुछ दिनों पश्चात एक और पत्र आया उनके लेटर-हेड पर जिसमे उन्होंने बहुत ही भावुकता से मेरे पुस्तक की समीक्षा लिखी है बहुत ही मार्मिक ढंग से, ह्रदय से पढ़ी है मेरी पुस्तक ....| हम उनको  धन्यवाद कहने के लिये सोच ही रहे थे और हिन्दुस्तान में  लखनऊ में होते हुए भी हमको उनकी दुखद घटना का पता नहीं चल पाया वो तो मेरे पुत्र प्रंकित ने लन्दन से ढाई बजे रात में फोन पर बताया कि मम्मा तुम्हे पता है सिंधवी अंकल की डेथ हो गई है हमने कहा अरे नहीं बेटा तुम किसी और को समझ रहे होगे अभी तो हमारी बात हुई थी उनसे...बड़ा ही रिलैक्स होकर कहा हमने ..पर फिर बेटे ने कहा नहीं मम्मा डैडी बहुत दुखी हैं !!!!!! बस इतना सुनना और आधी रात को मेरे मुह से चीख निकल गई हाय राम...और आँसुओं की धारा बह पड़ी...दिल रो पड़ा...एक ऐसे सच्चे इंसान के लिये,एक इतना बड़ा नुक्सान,एक इतनी बड़ी अनुपस्थिति जो कभी भी कोई भी पूरी नहीं कर सकता  उनकी सच्चाई एवं सादगी का, आत्मीयता का, एक अपने होने का एहसास जो न जाने कहाँ से हमलोगों को सफ़र में मिल गये और इतने अपने हो गये इतने प्रिय हो गये जैसे अपने पिता | बस अफ़सोस ये है कि उन्हें धन्यवाद के जगह श्रद्धांजलि देनी पड़ रही है | उनकी याद उनका व्यक्तित्व, उनका काम करने का तरीका ये सब अब उनकी सिर्फ मधुर स्मृतियाँ  हैं जिनका मेरे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाब है और रहेगा, उन जैसा कुछ भी  यदि भविष्य में कर पाऊं तो मेरा जीवन एक सार्थक जीवन बन पायेगा | इस घटना ने मुझे झकझोर के रख दिया और मन के उदगार व्यक्त हो गये ~~~~~
                         '' कोटि-कोटि कण्ठों की भाषा ''
                              कोटि-कोटि कण्ठों की याद बन गई 
                                   एक अमिट इतिहास बन गई ........शत-शत नमन आपको ...
                                                                                         '' भावभीनी श्रद्धांजलि ''
                                                                                                                                          डा.प्रीति गुप्ता
                                                                                                                                                 लखनऊ                          
                                                             


6 comments:

  1. Apki Shradhanjali ke sath mera bhi unhe sat sat naman. Sach kanhu Preeti ji apki yah rachna hi waqai me unke liye ek sachchi shradhanjali hai, etanha khubsurati se jeevant prastuti hai yah ki shabd chitra ki bhanti mahsus ho raha tha, aisa lag raha tha jaise mai unhe karib se janta hun, yah ek bahut hi dil se di hue sachchi shradhanjali hai, sadhubad.

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  2. acchi sarthak post

    navvarsh ki badhai aapko v aapke parivar ko

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  3. सच्चे मन से बहुत ही भावुकता-भरा स्मरण किया है प्रीति गुप्ता जी, एक एक शब्द पढ़कर लगता है जैसे अभी भी उन्हीं स्नेहपूर्ण सामीप्य के क्षणों को जी रही है आपके हृदय की हर धड़कन ।

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  4. sunder baten madhur smriti padh kar achchha laga
    rachana

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  5. सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद अपना अमूल्य समय देने के लिये एवं इस श्रद्धांजलि को सार्थक बनाने के लिये ....

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